Type Here to Get Search Results !

Shop Om Asttro

1 / 3
2 / 3

ad

नवरात्रि के पहले दिन इस विधि से करें माँ शैलपुत्री की पूजा, होगी हर मुराद पूरी! Om Astro

नवरात्रि के पहले दिन इस विधि से करें माँ शैलपुत्री की पूजा, होगी हर मुराद पूरी!



मां शैलपुत्री की पूजा के लिए मंत्र

-ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥

-वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ 

सफेद मिठाई का भोग है माता को प्रिय

पूजा में देवी को लगाया जाने वाला भोग भी बेहद महत्व रखता है। इसीलिए भक्तों को भोग का ध्यान खासतौर पर रखना चाहिए। मां शैलपुत्री को सफेद वस्‍तु बहुत प्रिय है, इसलिए नवरात्रि के पहले दिन की पूजा में मां को सफेद वस्‍त्र और सफेद फूल अवश्य चढ़ाएं और साथ ही सफेद रंग की मिठाई का भोग भी लगाएँ। मां शैलपुत्री की सच्चे मन से आराधना करने पर मनोवांछित फल और कन्‍याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है। शैल का मतलब होता है पत्‍थर और पत्‍थर को दृढ़ता की प्रतीक माना गया है। इसीलिए मां का यह स्‍वरूप जीवन में स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। महिलाओं को खासतौर पर इनकी पूजा से विशेष फलों की प्राप्ति होती है।



ऐसा होता है माँ शैलपुत्री का स्वरूप

माता शैलपुत्री का जन्म पर्वत राज हिमालय के घर हुआ था। इसी कारण से उन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। माता के स्वरूप की बात करें, तो उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल व और बाएँ हाथ में कमल का फूल है। देवी के माथे पर अर्ध चंद्र सुशोभित है। नंदी बैल यानि वृषभ माता की सवारी है, इसलिए देवी शैलपुत्री  को वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। माँ शैलपुत्री ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। माँ के इस रूप को करुणा और स्नेह का प्रतीक माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार माँ शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं, इसलिए चंद्रमा की उपासना करने से इसके द्वारा व्यक्ति पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव निष्क्रिय हो जाते हैं।


क्यों पहले दिन की जाती है माँ शैलपुत्री की पूजा 

शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि माँ शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। हिमालय को पर्वतों का राजा माना जाता है, जो हमेशा अपने स्थान पर कायम रहता है। ऐसी मान्यता है कि, यदि कोई भक्त अपने आराध्य देवता या देवी के लिए ऐसी ही अडिग भावना रखे, तो उसे इसका भरपूर फल मिलता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ही नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। 


माता शैलपुत्री की पवित्र कथा

एक बार राजा दक्ष प्रजापति के आगमन पर वहां मौजूद सभी लोग उनके स्वागत के लिए खड़े हुए, लेकिन भगवान शंकर अपने स्थान से नहीं उठे। राजा दक्ष को अपनी पुत्री सती के पति भगवान शिव की यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने इसे अपना अपमान समझ लिया। कुछ समय बाद दक्ष ने एक बार अपने निवास पर एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को उस यज्ञ का निमंत्रण दिया, लेकिन अपने अपमान का बदला लेने के लिए राजा ने शिव जी को वहां आमंत्रित नहीं किया। 

सती ने अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की इच्छा ज़ाहिर की। सती के आग्रह पर भगवान शंकर ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। जब सती यज्ञ में पहुंचीं, तो केवल उनकी मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। उनकी बहनों की बातें व्यंग्य और उपहास के भाव से भरी थी। सती के पिता दक्ष ने भरे यज्ञ में भगवान शंकर के लिए अपमानजनक शब्द और बहुत भला-बुरा कहा। 

वहां मौजूद सती ने जब अपने पिता के द्वारा शिव जी के लिए कही गयी कठोर बातें सुनी, तो वह देवताओं से भरे यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई और यज्ञ वेदी मे कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। सती का अगला जन्म शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ और वे शैलपुत्री कहलाईं। पार्वती और हेमवती भी देवी शैलपुत्री के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शिव से हुआ था। 


आशा करते हैं इस लेख में दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी। Om Astro से जुड़े रहने के लिए आप सभी का धन्यवाद।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.