दीय नवरात्रि तीसरा दिन, चंद्रघंटा देवी : 19 अक्टूबर 2020 (सोमवार)!
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के 9 स्वरूपों में से मां चंद्रघण्टा उनकी तीसरी स्वरूप हैं। चंद्रघंटा देवी अपने भक्तों को हर प्रकार के भय से मुक्त करके उन्हें साहस प्रदान करती हैं। माता की विधिवत पूजा से जातक के जीवन से सभी दुःख दूर होते हैं, जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का वास रहता है और संसार में यश, कीर्ति और सम्मान मिलता है। मां का यह रूप राक्षसों का वध करने के लिए जाना जाता है। आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्रदान करने वाली माता चंद्रघंटा की उत्पत्ति ही धर्म की रक्षा और संसार से अंधकार मिटाने के लिए हुई। तो चलिए आपको बताते हैं कि इस महापर्व के तीसरे दिन माता के चंद्रघंटा स्वरूप की किस प्रकार पूजा करने से देवी मां का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
माँ का नाम चंद्रघंटा क्यों पड़ा?
नवरात्रि के तीसरे दिन माता दुर्गा के तीसरे रूप चंद्रघंटा देवी की वंदना और पूजा करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि देवी के इस रूप की पूजा करने से जातक के मन को अलौकिक शांति प्राप्त होती है। माता के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है, इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।
ऐसा है माँ चंद्रघंटा का स्वरूप
देवी दुर्गा का यह स्वरूप शक्ति और समृद्धि का प्रतीक जाता है। मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप का नाम चंद्रघंटा है। मां चंद्रघंटा शेर की सवारी करती हैं। उनका शरीर सोने की तरह चमकता हुआ प्रतीत होता है। देवी की 10 भुजाएं हैं, जिनमें से उन्होंने एक तरफ की चार भुजाओं में त्रिशूल, गदा, तलवार, और कमण्डलु धारण किया है। माता का पांचवा हाथ वर-मुद्रा में होता है। वहीँ दूसरे तरफ देवी की अन्य चार भुजाओं में कमल का पुष्प, तीर, धनुष, जप माला होती है और पांचवा हाथ अभय मुद्रा में होता है। मां चंद्रघंटा ने गले में सफेद फूलों की माला धारण की हुई है और इनकी तीन आँखें हैं।
मां चंद्रघंटा की पूजा में करें इस मंत्र का जाप
माता की पूजा के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करने से जातक को विशेष फल की प्राप्ति होती है।
“या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः”
इस रंग का वस्त्र पहनकर करें माँ चंद्रघंटा की पूजा
शक्ति और जीवन में समृद्धि की प्रतीक माने जाने वाली देवी चंद्रघंटा देवी की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। चंद्रघंटा देवी ने रक्त वर्ण के रंग का वस्त्र धारण किया हुआ है। ज्योतिष में इसका सीधा संबंध मंगल ग्रह से होता है। इसीलिए अगर कोई व्यक्ति नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा देवी की पूजा गहरे लाल रंग के वस्त्र पहनकर करे, तो इससे इंसान के जीवन में सुख समृद्धि का वास रहता है।
देवी चंद्रघंटा की ऐसे करें पूजा
चंद्रघंटा माता की पूजा से जातक के जीवन में सुख-समृद्धि आती है, इसीलिए माता की पूजा के लिए आपको शुभ मुहूर्त का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
- नवरात्रि के तृतीया यानि तीसरे दिन माँ दुर्गा के चंद्रघंटा रूप की पूजा के लिए प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान आदि कर लें।
- माँ की पूजा के लिए आप लाल वस्त्र ही धारण करें।
- पूजा में सबसे पहले देवी को केसर और केवड़ा के जल से स्नान कराएं।
- उसके बाद माता चंद्रघंटा को सुनहरे रंग के वस्त्र पहनाकर उन्हें अच्छी तरह सजा लें।
- पूजा में माता को केसर और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएँ। इसके अलावा माँ चंद्रघंटा को गुड़ व लाल सेब भी ज़रूर चढ़ाएं। ये सारी वस्तुएँ माता रानी को बहुत प्रिय हैं।
- अब माँ चंद्रघंटा को सफ़ेद कमल और पीले गुलाब की माला पहनाएं।
- मां को लाल फूल, तांबे का सिक्का या तांबे की वस्तु चढ़ाएं।
- पूजा के दौरान ऊपर बताए मंत्र का जाप अवश्य करें।
- इसके बाद माता की आरती करें और आरती के समय घंटा बजाएं।
- चंद्रघंटा देवी की पूजा के बाद प्रसाद के रूप में गाय का दूध चढ़ाया जाता है। ऐसा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
- ध्यान रहे यदि आपने नौ दिनों का व्रत रखा है, तो पूजा के बाद केवल एक समय ही फलहार करें।
देवी चंद्रघंटा की पूजा से होने वाले लाभ
देवी चंद्रघंटा की पूजा नवरात्रि में तीसरे दिन की जाती है। माँ चंद्रघंटा की पूजा करने से जातक के सभी पाप और बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। देवी के इस रूप की साधना करने से इंसान जीवन में पराक्रमी और निर्भय बनता है। ऐसी मान्यता है कि माता चंद्रघंटा इंसानों की प्रेत-बाधा से भी रक्षा करती हैं। चंद्रघंटा देवी की पूजा से इंसान के अंदर वीरता और निडरता के साथ-साथ सौम्यता, इंसान के नेत्र, मुख, और पूरी काया का भी विकास होता है। सच्चे मन से की गयी देवी की पूजा-उपासना इंसान को सभी सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलाने में मदद करती है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी चंद्रघंटा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं, इसीलिए इसीलिए जिस भी व्यक्ति पर शुक्र ग्रह का अशुभ प्रभाव हो वह चंद्रघंटा देवी की पूजा कर के शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव भी कम कर सकता है।
मां चंद्रघंटा की पवित्र कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा, तब असुरों का संहार करने के लिए मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार लिया। उस समय असुरों का स्वामी महिषासुर था, जिसका देवताओं के साथ भयंकर युद्ध चल रहा था। महिषासुर देव राज इंद्र का सिंहासन और स्वर्ग-लोक पर राज करना चाहता था। उसकी आतंक से परेशान होकर सभी देवता इस समस्या से निकलने का समाधान जानने के लिए त्रिदेवों यानि भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समक्ष पहुचें।
देवताओं की परेशानी को सुनने के बाद त्रिदेवों को अत्यंत क्रोध आया और क्रोध के चलते उनके मुख से एक ऊर्जा निकली, जिससे एक देवी अवतरित हुईं। देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य सभी देवी- देवताओं ने भी माता को अपने अस्त्र सौंप दिए। देव राज इंद्र ने भी देवी को एक घंटा दिया। सूर्य देव ने अपना तेज और तलवार दी, साथ सवारी के लिए माता को सिंह प्रदान किया।
सभी अस्त्र-शस्त्र के साथ मां चंद्रघंटा महिषासुर से युद्ध करने पहुंची। मां का रूप देखकर महिषासुर को यह आभास हो गया कि उसका काल समीप आ गया है। महिषासुर और देवी में और देवताओं व असुरों में भयंकर युद्ध शुरू हो गया। और अंत में मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर देवताओं की रक्षा की।
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