परिचय
तनाव के बगैर जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती है। एक हद तक मनोवैज्ञानिक तनाव हमारे जीवन का एक ऐसा हिस्सा होता है, जो सामान्य व्यक्ति विकास के लिए आवश्यक साबित हो सकता है। हालांकि यदि ये तनाव अधिक मात्रा में उत्पन्न हो जाएं तब मनोचिकित्सा की आवश्यकता पड़ सकती है, अन्यथा ये आपको मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार बना सकते हैं और आपमें मनोव्यथा उत्पन्न कर सकते हैं। सामान्यतः असमान्य मनोविज्ञान पर तनाव के महत्व का अच्छा प्रमाण पाया गया है, यद्यपि इससे पैदा होने वाले विशेष जोखिम और सुरक्षात्मक प्रणालियों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। नकारात्मक या तनावपूर्ण जीवन की घटनाओं से कई प्रकार के मानसिक व्यवधान पैदा होते हैं, जिनमें मूड तथा चिंता से जुड़े व्यवधान शामिल हैं। यौन शोषण, शारीरिक दुर्व्यवहार, भावनात्मक दुर्व्यवहार, घरेलू हिंसा तथा डराने-धमकाने समेत बचपन और वयस्क उम्र में हुए दुर्व्यवहार को मानसिक व्यवधान के कारण माने जाते हैं, जो एक जटिल सामाजिक, पारिवारिक, मनोवैज्ञानिक तथा जैववैज्ञानिक कारकों के जरिए पैदा होते। मुख्य खतरा ऐसे अनुभवों के लंबे समय तक जमा होने से पैदा होता है, हालांकि कभी-कभी किसी एक बड़े आघात से भी मनोविकृति उत्पन्न हो जाती है, जैसे- PTSD। ऐसे अनुभवों के प्रति लचीलेपन में अंतर देखा जाता है और व्यक्ति पर किन्हीं अनुभवों के प्रति कोई असर नहीं पड़ता, पर कुछ अनुभव उनके लिए संवेदनशील साबित होते हैं। लचीलेपन में भिन्नता से जुड़े लक्षणों में शामिल हैं- जेनेटिक संवेदनशीलता, स्वभावगत लगण, प्रज्ञान समूह, उबरने के पैटर्न तथा अन्य अनुभव।
तनाव क्या है ?
तनाव को किसी ऐसे शारीरिक, रासायनिक या भावनात्मक कारक के रूप में समझा जा सकता है, जो शारीरिक तथा मानसिक बेचैनी उत्पन्न करे और वह रोग निर्माण का एक कारक बन सकता है। ऐसे शारीरिक या रासायनिक कारक जो तनाव पैदा कर सकते हैं, उनमें - सदमा, संक्रमण, विष, बीमारी तथा किसी प्रकार की चोट शामिल होते हैं। तनाव के भावनात्मक कारक तथा दबाव कई सारे हैं और अलग-अलग प्रकार के होते हैं। कुछ लोग जहां “स्ट्रेस” को मनोवैज्ञानिक तनाव से जोड़ कर देखते हैं, तो वहीं वैज्ञानिक और डॉक्टर इस पद को ऐसे कारक के रूप में दर्शाने में इस्तेमाल करते हैं, जो शारीरिक कार्यों की स्थिरता तथा संतुलन में व्यवधान पैदा करता है। जब लोग अपने आस-पास होने वाली किसी चीज़ से तनाव ग्रस्त महसूस करते हैं, तो उनके शरीर रक्त में कुछ रसायन छोड़कर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। ये रसायन लोगों को अधिक ऊर्जा तथा मजबूती प्रदान करते हैं।
हल्के मात्रा में दबाव तथा तनाव कभी-कभी फ़ायदेमंद होता है। उदाहरण के लिए कोई प्रोजेक्ट या असाइन्मेंट पूरा करते समय हल्का दबाव मसहूस करने से हम प्रायः अपना काम अच्छी तरह से पूरा कर पाते हैं और काम करते समय हमारा उत्साह भी बना रहता है। तनाव दो प्रकार के होते हैं: यूस्ट्रेस ("सकारात्मक तनाव ") तथा डिस्ट्रेस (नकारात्मक तनाव), जिसका सामान्य अर्थ चुनौती तथा अधिक बोझ होता है। जब तनाव अधिक होता है या अनियंत्रित हो जाता है, तब यह नकारात्मक प्रभाव दिखाता है।
तनाव के सामान्य स्रोत
जीवन रक्षा तनाव (सर्वाइवल स्ट्रेस):
जब किसी व्यक्ति को इस बात का भय हो कि कोई व्यक्ति या कोई चीज़ उसे शारीरिक रूप से चोट पहुंचा सकता है, तब उसका शरीर स्वाभाविक रूप से ऊर्जा अतिरेक के साथ प्रतिक्रिया प्रदर्शित करता है ताकि वह उस खतरनाक परिस्थिति (युद्ध) में बेहतर रूप से जीने में सक्षम हो जाए या पूरी तरह से उससे (युद्ध से) पलायन ही कर जाए। यह जीवन बचाने का तनाव है।
आंतरिक तनाव
आंतरिक तनाव वह तनाव है जहां लोग स्वयं को ही तनावग्रस्त बना डालते हैं। प्रायः जब हम ऐसी चीज़ों के प्रति डर जाते हैं जिनपर हमारा नियंत्रण न हो या हम स्वयं को तनाव पैदा करने वाली परिस्थिति में डाल दें, तो प्रायः आंतरिक तनाव उत्पन्न होता है। कुछ लोग भाग-दौड़, तनावग्रस्त जीवन पद्धति के आदी हो जाते हैं, जो दबाव में जीने की वजह से पैदा होता है। वे तब तनावपूर्ण स्थितियों की तलाश में रहते हैं और यदि उन्हें तनावग्रस्त स्थिति न मिले तो वे इस बात से तनाव महसूस करने लगते हैं।
पर्यावरणीय दबाव
यह उन चीजों के प्रतिक्रिया स्वरूप पैदा होता है, जो तनाव पैदा करता है, जैसे शोर-शराबा, भीड़-भाड़, तथा कार्य या परिवार की ओर से दबाव। इन पर्यावरणीय दबावों की पहचान कर और उनसे बचने या उनसे मुकाबला करने के बारे में सीखने से हमें तनाव के स्तर को कम करने में मदद मिल सकती है।
दुर्बलता तथा अत्यधिक काम
इस प्रकार का तनाव लंबे समय के बाद पैदा होता है और इसका आपके शरीर पर गंभीर असर पड़ सकता है। यह अपनी नौकरी, स्कूल या घर में अत्यधिक काम करने से पैदा होता है। आप यदि समय का नियोजन नहीं पाते हैं या आप आराम या सुस्ताने के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं तो यह उस स्थिति में पैदा होता है। यह एक प्रकार का कठिन तनाव है, जिससे बचा जाना चाहिए, क्योंकि लोग इसे अपने नियंत्रण से बाहर मानते हैं।
तनाव पैदा करने वाले कारकों को छोटी अवधि (ऐक्यूट) या लंबी अवधि (क्रॉनिक) के रूप में वर्णित किया जाता है:
- छोटी अवधि (ऐक्यूट) का तनाव तुरंत पैदा होने वाले खतरे के प्रति प्रतिक्रिया होता है, जिसे युद्ध या युद्धक प्रतिक्रिया भी कहते हैं। यह तब होता है, जब मस्तिष्क का प्रारंभिक हिस्सा और मस्तिष्क के अंदर के कुछ रासायन संभावित हानिकारक दबाव कारक या चेतावनी के प्रति अपनी प्रतिक्रिया प्रदर्शित करते हैं।
- लंबी अवधि (क्रॉनिक) के तनाव कारक ऐसे दबाव होते हैं, जो लड़ाई करने की चाहत दब जाने के बाद चालू रहते हैं और आगे भी जारी रहते हैं। क्रॉनिक तनाव कारकों में शामिल होते हैं: वर्तमान में जारी दबावपूर्ण कार्य, वर्तमान में जारी संबंध से जुड़ी समस्या, अलगाव, तथा निरंतर वित्तीय चिंताएं।
तनाव तथा तनाव की अतिसंवेदनशीलता के प्रभावों पर असर डालने वाले कारक
तनाव के प्रति किसी व्यक्ति की संवेदनशीलता को किसी एक या इन सभी कारकों द्वारा प्रभावित किया जा सकता है, यानि इसका मतबल है कि हर व्यक्ति का तनाव के कारकों के प्रति सहनशीलत अलग-अलग होती है। और ये कारकों उनके लिए निश्चित नहीं रहते, अतः समय के साथ हरेक व्यक्ति की तनाव सहनशीलता बदलती रहती है:
- बचपन का अनुभव (कोई दुर्व्यवहार जो तनाव की संवेदनशीलता को बढ़ा सकती है)
- व्यक्तित्व (कुछ व्यक्तित्व अन्य की अपेक्षा तनाव के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।)
- जेनेटिक्स (खासकर वंशानुगत ‘रिलेक्सेशन रेस्पोंस’, जो सेरोटोनिल स्तर से जुड़ा हो, जो मस्तिष्क के ‘स्वास्थ्य का रसायन’ होता है।)
- रोगनिरोधी असामान्यता (कुछ रोग उत्पन्न कर सकते हैं, जैसे गठिया तथा एक्जिमा, जिससे तनाव के प्रति लचीलापन कम हो सकता है।)
- लाइफस्टाइल (मुख्यतः अपर्याप्त आहार तथा व्यायाम की कमी)
- तनाव पैदा करने वाले कारकों की अवधि तथा उनकी तीव्रता।
तनाव की उपस्थिति के लिए त्वरित जांच के सूचक
- निद्रा व्यवधान
- भूख की कमी
- अपर्याप्त एकाग्रता या अपर्याप्त याददाश्त
- प्रदर्शन में कमी
- अलक्षणात्मक त्रुटियां या पूरा न की गई समय सीमा
- क्रोध या चिड़चिड़ापन
- हिंसक या समाज के खिलाफ व्यवहार
- भावनात्मक आवेग
- शराब या ड्रग की आदत
- घबराहट की आदत
तनाव के प्रभाव
शारीरिक प्रभाव
तनाव के शारीरिक प्रभाव मुख्तः न्यूरो-एंडोक्राइनो-इम्युनोलॉजिकल मार्ग से उत्पन्न होते हैं। तनाव के कारक की जो भी प्रकृति हो पर उनके प्रति शरीर की प्रतिक्रिया सदैव एक समान रहती है। नीचे हमारे शरीर के ऊपर पड़ने वाले तनाव के शारीरिक प्रभाव दिए जा रहे हैं:
- धड़कन : हृदय का स्पंदन बढ़ जाता है।
- सांस बढ़ जाती है, और इसकी लंबाई छोटी हो जाती है।
- थरथराहट
- जुकाम, अत्यधिक चिपचिपाहट /पसीना छूटना
- गीली भौंह
- मांसपेशियों का कड़ापन, उदरीय मांसपेशियों का कड़ापन दिखना, तने हुए हाथ तथा पैर, दबे हुए जबड़े जहां दांत एक-दूसरे के साथ गुंथे हों।
- डिस्पेप्सिया /आंत में व्यवधान
- बार-बार पेशाब के लिए जाना
- बाल झड़ना
मानसिक प्रभाव
यदि पहचान न की जाए और सही तरीके से सुधारा न जाए तो तनाव के मानसिक प्रभाव कई रूप में दिखाई पड़ते हैं। यह अच्छी तरह से ज्ञात है कि भावनात्मक तनाव को यदि दूर न किया गया तो यह इससे मानसिक कष्ट उत्पन्न हो सकता है और उससे शारीरिक परेशानी (मनोशारीरिक बीमारी के रूप में जाना जाता है) उत्पन्न हो सकती है।
अन्य सामान्य मानसिक प्रभाव हैं:
- एकाग्र करने में अक्षम होना।
- निर्णय न ले पाना।
- आत्मविश्वास की कमी।
- चिड़चिड़ापन या बार-बार गुस्सा आना।
- अत्यधिक लोभ वाली लालसा।
- बेवजह चिंता करना, असहजता तथा चिंता।
- बेवजह भय सताना।
- घबड़ाहट का दौरा।
- गहरे भावनात्मक तथा मूड विचलन।
व्यवहार प्रभाव
तनाव के व्यवहारगत प्रभावों ऐसे तरीके शामिल हैं, जिनमें कोई व्यक्ति तनाव के प्रभाव में कार्य करते हैं और व्यवहार प्रदर्शित करते हैं।
नीचे तनाव के कुछ व्यवहारगत प्रभाव दिए जा रहे हैं:
- अत्यधिक धुम्रपान
- नर्वस होने के लक्षण
- शराब या ड्रग्स का अत्यधिक सेवन।
- नाखून चबाने तथा बाल खींचने जैसी आदत।
- अत्यधिक तथा काफी कम खाना।
- मन का कहीं और खोना।
- जब-तब दुर्घटना का शिकार होना।
- जरा-जरा सी बात पर आक्रामक होना।
यह देखा गया है कि व्यवहारगत तनाव के काफी खतरनाक प्रभाव होते हैं और इससे अभिव्यक्ति तथा सामाजिक संबंध प्रभावित होते हैं।
कुछ प्रकार के क्रॉनिक तथा अधिक आंतरिक तनाव अकेलेपन, गरीबी, वियोग, भेदभाव के कारण पैदा होने वाले अवसाद व हताशा से उपजते हैं, जिससे विषाणु के आक्रमण से लड़ने की शरीर की क्षमता कम हो जाती है और जुकाम, हर्पीस से लेकर एड्स व कैंसर जैसी बीमारियां पैदा हो जाती हैं।
तनाव अन्य हॉर्मोनों, मस्तिष्क न्युरो-ट्रासमिटरों, अन्य हिस्सों में थोड़े अतिरिक्त रसायनिक संदेशों, प्रोस्टैग्लैंडिंस और साथ ही अहम एंजाइम सिस्टम व चयापचय क्रियाओं पर अपने प्रभाव छोड़ सकता है, जिनके बारे में पूरी जानकारी नहीं है।
तनाव से जुड़े कुछ रोग
- ऐसिड पेप्टिक रोग
- शराब की लत
- दमा
- दुर्बलता
- तनाव से होने वाला सिरदर्द
- हाइपरटेंशन
- स्मृतिलोप
- आंत में गड़बड़ी पैदा होना
- इस्केमिक हॄदय रोग
- मनोवैज्ञानिक रोग
- यौन दुर्बलता
- सोराइसिस, लाइके प्लैनस, युटिकैरिया, रुराइटस, न्युरोडर्मैटाइटिस इत्यादि जैसे त्वचा रोग, यह सूची पूरी नही है।
तनाव द्वारा उत्पन्न होने वाले रोगों को समझने में और तनाव और तनावजन्य रोगों से बचाव के लिए उपरोक्त अवधारणाओं को समझ कर काफी अहम है। क्लिनिकल स्तर पर किसी व्यक्ति में तनाव को ऐड्रीनल ग्रंथि से स्रावित दो हॉर्मोनों- कॉर्टिसोल तथा DHEA (डीहाइड्रोएपियनड्रोस्टेरोन) द्वारा समझा जाता है। तनाव मापने के होम्स तथा राहे (Rahe) पैमाने के अनुसार ‘जीवन परिवर्तन यूनिट्स’, जो किसी व्यक्ति के पिछले साल के जीवन की घटनाओं में लागू होते हैं, को भी उसके जीवन में शामिल कर लिया जाता है और अंतिम स्कोर निकाला जाता है। उदाहरण के लिए जीवनसाथी की मृत्यु से 100 का स्कोर दिया जाता है।
- 300+ का स्कोर: बीमारी का खतरा
- 150-299+ का स्कोर: बीमारी का हल्का खतरा (उपरोक्त खतरे से 30% कम)।
- 150- स्कोर: बीमारी का काफी कम खतरा
तनाव का नियंत्रण
भौतिक प्रभाव
तनाव का नियंत्रण उसकी पहचान करने से आरंभ होता है। पर यह आसान नहीं होता।
तनाव के वास्तविक स्रोतों की पहचान करने के लिए अपने नजरिए, आदत और आप बचने के लिए जो बहानें बनाते हैं उनपर आपको निकट से ध्यान रखना होगा:
- क्या आप अपने तनाव को अस्थायी मानते हैं और भले ही आपको यह याद न हो कि पिछली बार कब आप इसके शिकार हुए थे?
- क्या आप तनाव को अपने काम या घरेलू जीवन अथवा अपने व्यक्तित्व के एक अहम हिस्से के रूप में देखते हैं?
- क्या आप अपने तनाव के लिए अन्य व्यक्ति या बाहरी घटनाओं को जिम्मेदाद ठहराते हैं अथवा इसे आप पूरी तरह से सामान्य या अप्रत्याशित मानते हैं?
जबतक आप अपने तनाव के निर्माण या उसे बनाए रखने में अपनी भूमिका को स्वीकार नहीं कर लेते, आपका तनाव आपके नियंत्रण में नहीं आएगा।
एक तनाव विवरणिका लिखना आरंभ करें
तनाव विवरणिका आपको जीवन के नियमित तनाव कारकों को पहचानने और उनसे निपटने में मदद करेगी। जब कभी तनाव महसूस करें आप उसके विवरणों को लिख लें। दैनिक रूप से विवरण लिखने से आपको तनाव के पैटर्न और सामान्य विषयों का अंदाजा मिल जाएगा। विवरण इस प्रकार लिखें:
- आपके तनाव का कारण (यदि आपको ठीक-ठीक पता न चले तो अंदाजा लगा सकते हैं।)?
- आप शारीरिक और मानसिक रूप से कैसा महसूस करते हैं।
- प्रतिक्रियास्वरूप आप कैसे कार्य करते हैं।
- क्या करने से आप बेहतर महसूस करते हैं।
आपने हाल में जिस तरीके से तनाव से निपटा था, उनपर विचार करें। आपकी तनाव विवरणिका से आप उन बातों को पहचान सकते हैं। क्या आप सही तरीके का इस्तेमाल कर रहे हैं, या आप तनाव से निपटने के लिए अस्वास्थ्यकर, मददगार या अरचनात्मक विधियों का इस्तेमाल कर रहे हैं? दुर्भाग्यवश कई लोग अपने तनाव से निपटने के लिए ऐसी विधियां अपना लेते हैं, जिससे उनकी समस्या और बढ़ जाती है।
तनाव से निपटने के स्वास्थ्यकर तरीके
- धुम्रपान
- अत्यधिक पानी पीना।
- अत्यधिक या काफी कम खाना।
- घंटों टीवी या कंप्यूटर के सामने बैठना।
- दोस्तों, परिवार वालों तथा क्रियाकलापों से बचना ।
- राहत पाने के लिए गोलियों या ड्रग्स का इस्तेमाल करना।
- अत्यधिक नींद लेना।
- टाल-मटोल की आदत
- समस्या से बचने के लिए हमेशा अपने आप को किसी अन्य चीज़ में उलझाए रखना।
- अपने तनाव को दूसरे के सिर मढ़ना (घोर निंदा करना, काफी गुस्सा दिखाना, शारीरिक हिंसा)
- तनाव से निपटने के कई सही तरीके हैं, पर उन सभी के लिए बदलाव लाने की जरूरत होती है। या तो हम उन परिस्थितियों को बदल दें या उनके प्रति अपनी प्रतिक्रिया में परिवर्तन ले आएं। इन बातों के बारे में गंभीरता से सोचें तथा दूसरे व्यक्तियों से इसके बारे में बात करें, साथ ही उन्हें दूर करने या कम करने के उपाय अपनाएं या तनाव ग्रस्त व्यक्ति को उस स्थिति से बाहर निकालने का प्रयास करें, जो उसके तनाव का कारण है।
- तनाव ग्रस्त व्यक्ति को प्रभावित करने वाले कारक और तनाव की संवेदनशीलता पैदा करने कारकों की पहचान करें- इसके लिए आप को यह ध्यान में रखना चाहिए कि आप जिस समस्या से निपट रहे हैं, वह तनाव नियंत्रण विधि के विकास के लिए आवश्यक है।
परिस्थिति को बदलें
- तनाव पैदा करने वाले कारकों से बचे।
- तनाव पैदा करने वाले कारकों को बदलें।
अपनी प्रतिक्रिया में बदलाव लाएं
- तनाव पैदा करने वाले कारकों के मुताबिक अनुकूलित हो जाएं।
- तनाव पैदा करने वाले कारकों को स्वीकार कर लें।
अनावश्यक तनाव से बचें
- ‘ नहीं’ कहना सीखें– अपनी सीमा को जानें और हमेशा उसका ध्यान रखें। व्यक्तिगत या व्यावसायिक जीवन हो आप क्षमता से अधिक जिम्मेदारी लेने से बचें। क्षमता से अधिक जिम्मेदारी उठाने से आप तनाव के शिकार हो सकते हैं।
- ऐसे लोगों से बचें जिनसे आपको तनाव पैदा होता है: यदि कोई व्यक्ति आपके जीवन में निरंतर रूप से तनाव पैदा कर रहा है और आप उस संबंध को सही नहीं कर पा रहे हैं, तो आप उस व्यक्ति के साथ व्यतीत करने वाले समय में कमी कर दें या उस संबंध को पूरी तरह से समाप्त कर लें।
- अपने परिवेश को नियंत्रण में रखें: यदि शाम की ख़बरें आपको चिंतित कर जाती हैं, तो आप शाम में टीवी ऑफ रखें। यदि ट्रैफिक से आप तनाव ग्रस्त हो जाते हैं तो भले ही दूर वाली पर कम भीड़-भाड़ वाली सड़क लें। यदि आपको बाजार जाना अच्छा नहीं लगता तो आप ऑनलाइन शॉपिंग कर लें।
- गर्मागर्म विषय से बचें: यदि आप धर्म या राजनीति की चर्चा पर परेशान हो जाते हैं तो आप उनपर बातचीत करने से बचें। यदि आप एक टॉपिक की हमेशा चर्चा उसी इंसान से करेंगे तो आप चर्चा करने से अपने आप को बचाएं या उसे टाल जाएं।
- आपको क्या करना है उसकी सूची बनाएं: अपने कार्यक्रम, जिम्मेदारियों और दैनिक कार्यों का विश्लेषण करें। यदि बहुत सारी चीज़ें शामिल हो जाती हैं तो आप उनमें से ‘करने लायक’ या ‘जरूरी’ के रूप में छांट लें। जो कार्य जरूरी न हों आप उन्हें हटा सकते हैं, या से सूची में सबसे नीचे रखें।
परिस्थिति में बदलाव लाएं
- अपनी भावनाओं को दबाने की बजाएं उसे व्यक्त करें। यदि कोई व्यक्ति या कोई चीज़ आपको परेशान करती है तो उसके बारे में आप उस व्यक्ति से खुलकर पर सम्मानपूर्ण तरीके से बात करें। यदि आप अपनी भावनाओं का इज़हार नहीं करेंगे तो आपके मन में असंतोष पैदा होगा और स्थिति जस की तस बनी रह सकती है।
- समझौता करने की चाह रखें: यदि आप किसी व्यक्ति को उसका व्यवहार बदलने के लिए कहते हैं तो आप भी अपने आप में बदलाव लाने के लिए तैयार रहें। यदि आप दोनों थोड़ा भी बदलाव ला सकें तो आपकी स्थिति बेहतर हो सकती है।
- अधिक निश्चयात्मक बनें: अपनी जीवन के पिछले पायदान पर न रहें। सामने जो भी समस्या आये उसका डट कर और दक्षता पूर्वक मुकाबला करें। यदि आपकी परीक्षाएं आने वाली हैं और आपका बातूनी दोस्त आपके यहां आ जाए तो आप ठान लें कि आपको उसके साथ केवल कुछ मिनटों की बातचीत करनी है।
- अपने समय का बेहतर प्रबंधन करें: समय का सही तरह से नियोजन न करने से तनाव पैदा हो सकता है। जब आपके पास समय कम पड़ रहा हो या आप समय के साथ पिछड़ रहे हों तो शांत और एकाग्र रहना नामुमकिन हो जाता है। पर यदि आप नियोजन के साथ चलेंगे तो आपको परेशान नहीं होना पड़ेगा और आप अपने तनाव को काफी कम कर सकते हैं।
तनाव पैदा करने वाले कारकों के अनुसार अनुकूलित होना
- समस्याओं को नए नजरिए से देखिए: तनावग्रस्त परिस्थितियों को अधिक सकारात्मक नजरिए से लें। किसी ट्रैफिक जाम पर गुस्सा होने की बजाए, आप उसका इस्तेमाल विराम लेने, अपने आप को पुनः तैयार करने, रेडियो पर अपनी पसंदीदा रेडियो स्टेशन के कार्यक्रम सुनने और कुछ समय अकेले में बिताने के एक मौके के रूप में करें।
- बड़ी तस्वीर पर नजर डालें। तनाव ग्रस्त परिस्थिति के नजरिए से देखें: अपने आप से पूछें कि लंबे समय तक इसका रहना कितना अहम होगा। क्या यह एक महीने, एक साल तक चलेगा? या यह लंबे वक्त तक चलेगा? क्या सचमुच इससे परेशान हुआ जा सकता है? उत्तर यदि नहीं होता है, तो अपना ध्यान और ऊर्जा किसी अन्य जगह लगाएं।
- अपने मानदंडों को समायोजित करें: हर काम को पूरी दक्षता (पर्फेक्शन के साथ) से करने से तनाव से बचा जा सकता है। महज पर्फेक्शन की मांग की वजह से आप अपने आप को असफलता के हवाले न कर दें। अपने तथा अन्य व्यक्तियों के लिए उचित मानदंड तय करें और ‘पर्याप्त गहराई’ के साथ काम करने की आदत डालना सीख लें।
- सकारात्मक बातों पर ध्यान केंद्रित करें: तनाव जब आप तनाव के गिरफ्त में आ रहे हों तो आप उन सभी चीजों के बारे में सोचें जिनकी आप अपने जीवन में तारीफ करते हैं, जिनमें आपके सकारात्मक गुण और ईश्वर के दिए तोहफे भी शामिल हैं। इन सरल उपायों से आपको सही दृष्टिकोण विकसित करने में मदद मिलेगी।
जिन चीज़ों को बदल न सकें उसे स्वीकार करना सीखें
तनाव के कुछ स्रोत अनिवार्य होते हैं। ऐसे कारकों से आप बच नहीं सकते या आप उन्हें बदल भी नहीं सकते, जैसे किसी परिजन की मृत्यु, कोई गंभीर बीमारी, या कोई राष्ट्रीय मंदी। ऐसी स्थिति में उपजे तनाव से उबरने का सबसे अच्छा तरीका है चीजों को उसी रूप में स्वीकार कर लेना। भले ही स्वीकार करना कठिन होगा पर दीर्घकालिक रूप से उस परिस्थिति के विरोध में खड़ा होना जिसे आप बदल नहीं सकते, के मुकाबले यह अधिक आसान और फ़ायदेमंद होगा।
- नियंत्रण न हो सकने वाली चीज़ों पर नियंत्रण करने का प्रयास न करें। जीवन में कई चीज़ें नियंत्रण से बाहर होती है- खासकर अन्य लोगों के व्यवहार। उनसे परेशान होकर तनाव लेने बेहतर होगा कि आप ऐसी चीज़ों पर अपना ध्यान केंद्रित करें जिन्हें आप अपने नियंत्रण में ला सकते हैं, जैसे कि ऐसा तरीका जिसे आप समस्याओं से निपटने के लिए चुनते हैं।
- सदैव आगे की ओर देखें। कहते हैं: “जो हमें मार नहीं सकता, वह हमें मजबूत बनाता है।” बड़ी चुनौतियों से मुकाबला करते समय आप उन्हें अपने निजी अनुभव के एक मौके के रूप में देखें। यदि आपका गलत चयन आपको तनाव का शिकार बना डालता है, तो आप उनपर विचार करें और अपनी गलतियों से सीखें।
- अपनी भावनाओं को बांटें: भरोसेमंद लोगों से बात करें या किसी थेरॉपिस्ट से परामर्श प्राप्त करें। यदि आपनी भावनाओं को दूसरों को बताते हैं, तो भले ही आप उसे बदल न सकें पर इससे आप हल्का महसूस करेंगे।
- माफ करना सीखें: इस तथ्य को स्वीकार करें कि हम एक हम एक अधूरी दुनिया में जी रहे हैं, जहां लोग बार-बार गलतियां करते हैं। क्रोध और नाराजगी को मन से बाहर निकालें। दूसरों को माफ कर आप अपनी नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त होते हैं और जीवन में आगे की ओर बढ़ते हैं। यदि आप नियमित रूप से मस्ती और आराम के लिए समय निकालते रहेंगे तो आप तनाव के कारणों से बखूबी निपट सकेंगे।
विश्राम करने तथा ऊर्जावान बनने के स्वस्थ्य तरीके
- सैर पर जाएं।
- प्रकृति के साथ वक्त बिताएं।
- किसी अच्छे दोस्त को कॉल करें।
- अच्छे व्यायाम के साथ तनाव से मुक्ति पाएं।
- अपनी विवरणिका में तनाव के बारे में दर्ज करें।
- लंबे समय तक स्नान करें।
- सुगंधित मोमबत्ती जलाएं। गर्मागर्म कॉफी या चाय पीएं।
- अपने पालतू जानवर के साथ खेलें।
- अपने बगीचे में बागवानी करें।
- मालिश कराएं।
- अच्छी पुस्तक पढ़ें।
- संगीत का आनंद लें।
- कॉमेडी फिल्म का मज़ा उठाएं।
- विश्राम करने का वक्त निकालें। अपने दैनिक कार्यक्रम में विरान तथा आराम करना शामिल करें। उस समय में दूसरा का न करें। यह ऐसा वक्त होगा जब आप हर चीज से मुक्त होकर अपने आप में नई ऊर्जा भरेंगे।
- दूसरों के साथ जुड़िए। सकारात्मक विचारों वाले व्यक्तियों के साथ वक्त गुजारिए, जिससे आपको जीवन में नई ऊर्जा मिलेगी। तनाव के नकारात्मक प्रभावों से मुकाबला करने की आपमें मजबूती आएगी।
- हर दिन आनंद देने वाला कोई काम करें। हर दिन ऐसे क्रियाकलापों के लिए समय निकालें जिससे आपको आनंद मिलता है, जैसे तारों को देखना, पियानो बजाना अपनी बाइक चलाना।
- अपने हास्यबोध को बनाए रखें। इसमें अपने आप पर हंसना भी शामिल करें। हंसने से तनाव से मुक्ति मिलती है।
जीवन जीने के स्वस्थ्य तरीके
- खानपान में सुधार करें- विटामिन B तथा मैग्नेशियम का सेवन जरूरी होता है, पर अन्य विटामिन भी लेना चाहिए। तनाव से मुक्ति में विटामिन C अहम माना जाता है। विटामिन D आपके शरीर की दशा बनाए रखता है,खासकर आपकी हड्डियों को मजबूत रखता है। पर्याप्त मात्रा में खनिजों का सेवन करें, क्योंकि ये आपके स्वस्थ्य शरीर तथा मस्तिष्क के लिए जरूरी होते हैं, और इस प्रकार ये तनाव के शिकार होने से बचने में भी आपकी मदद करते है। अपने मौजूदा आहार का मूल्यांकन करें और जहां आपको सुधार नजर आता है, उसपर विचार करें। बेक किए आहार, डब्बा बंद आहार, अत्यधिक नमक, गोलियां और टैब्लेट्स से परहेज करें।
- विषैले पदार्थों के सेवन से बचें- स्पष्ट रूप से तंबाकू, शराब भले ही आप अस्थायी रूप से राहत प्रदान करते दिखते हों पर वे शरीर के संतुलन के खिलाफ कार्य करते हैं और इससे आपके तनाव के शिकार होने की संभावना और बढ़ जाती है।
- ज्यादा से ज्यादा व्यायाम करें- खासकर तब जब आपको तनाव महसूस हो:
- व्यायाम से आपके शरीर का ऐड्रेनेलिन समाप्त होता है और सहायक रसायनों का निर्माण होता है, जिससे आप सकारात्मक ऊर्जा महसूस करते हैं।
- व्यायाम आपको तनाव की परिस्थियों से हटाता है।
- व्यायाम से आपकी मांसपेशियां और ऊतक में गर्मी आती है, सर्दी में आराम मिलता है और इससे तनाव से राहत मिलती है।
- व्यायाम करने से मस्तिष्क की ओर रक्त प्रभाव बढ़ जाता है, जो हमारे शरीर के लिए अच्छा होता है।
- व्यायाम से हमारे शरीर का विकास होता है और वह स्वस्थ रहता है, जिससे प्रत्यक्ष रूप से तनाव के शिकार होने से हम बच जाते हैं।
- अपने मूड और भावनाओं के प्रति जागरुकता बढ़ाएं- तनाव के अधिक गंभीर स्थिति में पहुंचने से पहले ही उससे मुकाबला करने का ध्यान रखें। विराम करने के तरीकों की खोज करें- जैसे योग, ध्यान, सेल्फ-हिप्नोसिस, मालिश, खुली हवा में सांस लेने, और कोई अन्य लाभदायक कार्य करने से फ़ायदा पहुंचता है।
- नींद और आराम एक स्वस्थ संतुलित जीवन के लिए आवश्यक होते हैं। दिन के समय झपकी लेना महत्वपूर्ण माना जाता है। इससे आप में फिर से ऊर्जा भर जाती है और अपके दिमाग से दबाव और अप्रिय एहसास खत्म होते हैं।
- कार्य स्थल पर गुस्सा आना तनाव का लक्षण होता है। गुस्से (तथा उस विषय के लिए किसी अन्य भावनात्मक व्यवहार) व उस तनाव को नियंत्रण में रखें, जिससे आपको गुस्सा आता हो और इसमें तभी सुधार लाया जा सकता यह यदि आपमें चाहत, स्वीकार करने की भावना, प्रज्ञान तथा समर्पण हो। जागरुकता पहली शर्त है। कुछ गुस्सैल व्यक्ति अपने गुस्से पर गर्व का अनुभव करते हैं और कभी बदलना नहीं चाहते; तो कुछ अपने आप पर और दूसरों पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाते। गुस्से पर नियंत्रण करना केवल तभी संभव होता है, जब गुस्सैल व्यक्ति बदलाव के लिए स्वीकार करें और उसके लिए समर्पित रहें। मूल कारण को समझने के लिए परामर्श आवश्यक होता है। व्यक्ति को अपने गुस्से से दूसरों पर होने वाले परिणाम को वस्तुनिष्ठ रूप से और संवेदनशील नजरिए (अपने और दूसरों के लिए) से देखना चाहिए। गुस्सैल व्यक्ति को यह एहसास दिलाकर कि उनका व्यवहार विनाशक और नकारात्मक है, आप इस दिशा में एक अहम कदम बढ़ाएंगे। व्यक्ति को अपने अंदर से चीजों को खुद निकालने दें। गुस्से पर नियंत्रण की दिशा में अगला कदम है- गुस्सैल प्रवृत्ति के कारण को समझना, जो तनाव के कारण तथा तनाव की संभावना वाली परिस्थियों का एक संयोजन होता है। ऐसे व्यक्तियों में पर्याप्त भरोसा तथा तालमेल जगाने के लिए परामर्शदाता को कई सत्र आयोजित करने की जरूरत पड़ सकती है।