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10 महाविद्या: हर संकट से तुरंत उबारती हैं ये महाविद्याएं, जानिए उपासना का महत्व और मंंत्र OmAsttro

 हमारे शास्त्रों में दस महाविद्याओं का उल्लेख किया गया है। तंत्र क्रिया में विद्या में इन 10 महाविद्याओं का विशेष महत्व होता है।  इन 10 विद्याओं की साधना और उपासना से विशेष फल की प्राप्ति होती है। ये महाविद्याओं को दशावतार माना गया है। 10 महाविद्याएं मां दुर्गा के ही रूप है जिसे सिद्धि देने वाली मानी जाती है। मां दुर्गा के इन दस महाविद्याओं की साधना करने वाला व्यक्ति सभी भौतिक सुखों को प्राप्त कर बंधन से भी मुक्त हो जाता है। मां को प्रसन्न करने के लिए तांत्रिक साधकों द्वारा यह पूजा की जाती है। 


दिव्योर्वताम सः मनस्विता: संकलनाम ।

त्रयी शक्ति ते त्रिपुरे घोरा छिन्न्मस्तिके च।।

 

देवी, अप्सरा, यक्षिणी, डाकिनी, शाकिनी और पिशाचिनी आदि में सबसे सात्विक और धर्म का मार्ग है 'देवी' की पूजा, साधना और प्रार्थना करना। कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी सती ने दूसरा जन्म पार्वती के रूप में लिया था। इनके दो पुत्र हैं गणेश और कार्तिकेय। मां पार्वती अपने पूर्व जन्म में सती थीं। नौ दुर्गा भी पार्वती का ही रूप हैं। इस माता सती और पार्वती की पूजा-साधना करना सनातन धर्म का मार्ग है बाकि की पूजा आराधना सनातन धर्म का हिस्सा नहीं है।

 

शास्त्रों अनुसार इन दस महाविद्या में से किसी एक की नित्य पूजा अर्चना करने से लंबे समय से चली आ रही ‍बीमार, भूत-प्रेत, अकारण ही मानहानी, बुरी घटनाएं, गृह कलह, शनि का बुरा प्रभाव, बेरोजगारी, तनाव आदि सभी तरह के संकट तत्काल ही समाप्त हो जाते हैं और व्यक्ति परम सुख और शांति पाता है। इन माताओं की साधना कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फलदायक और सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सहायक मानी गई है।


उत्पत्ति कथा : पुराणों अनुसार जब भगवान शिव की पत्नी सती ने दक्ष के यज्ञ में जाना चाहा तब शिवजी ने वहां जाने से मना किया। इस इनकार पर माता ने क्रोधवश पहले काली शक्ति प्रकट की फिर दसों दिशाओं में दस शक्तियां प्रकट कर अपनी शक्ति की झलक दिखला दी। इस अति भयंकरकारी दृश्य को देखकर शिवजी घबरा गए। क्रोध में सती ने शिव को अपना फैसला सुना दिया, 'मैं दक्ष यज्ञ में जाऊंगी ही। या तो उसमें अपना हिस्सा लूंगी या उसका विध्वंस कर दूंगी।'

 

हारकर शिवजी सती के सामने आ खड़े हुए। उन्होंने सती से पूछा- 'कौन हैं ये?' सती ने बताया,‘ये मेरे दस रूप हैं। आपके सामने खड़ी कृष्ण रंग की काली हैं, आपके ऊपर नीले रंग की तारा हैं। पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोड़शी हैं और मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देने के लिए आपके सामने खड़ी हूं।' यही दस महाविद्या अर्थात् दस शक्ति है। बाद में मां ने अपनी इन्हीं शक्तियां का उपयोग दैत्यों और राक्षसों का वध करने के लिए किया था।

नौ दुर्गा : 1.शैलपुत्री, 2.ब्रह्मचारिणी, 3.चंद्रघंटा, 4.कुष्मांडा, 5.स्कंदमाता, 6.कात्यायनी, 7.कालरात्रि, 8.महागौरी और 9.सिद्धिदात्री।

दस महा विद्या : 1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।


प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं।


पहला : - सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला),

दूसरा : - उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी),

तीसरा : - सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)।



ये दस महाविद्याएं इस प्रकार है- काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। 

1- काली

सभी 10 महाविद्याओं में काली को प्रथम रूप माना जाता है। माता दुर्गा ने राक्षसों का वध करने के लिए माता ने यह रूप धारण किया था। सिद्धि प्राप्त करने के लिए माता के इस रूप की पूजा की जाती है। जिस तरह से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न और जल्द रूठने वाले देवता है उसी तरह काली माता भी स्वभाव है। इसलिए जो भी भक्त इनकी साधना कर चाहता है उसे एकनिष्ठ और पवित्र मन का होना चाहिए। देवताऔं और दानवों के बीच हुए युद्ध में मां काली ने ही देवताओं को विजय दिलवाई थी। कोलकाता, उज्जैन और गुजरात में महाकाली के जाग्रत चमत्कारी मंदिर हैं।

मुख्य बातें-

- दस महाविद्या में काली प्रथम रूप है।

- माता का स्वरूप हाथ में त्रिशूल और तलवार

- पूजा के लिए विशेष दिन शुक्रवार और अमावस्या

- कालिका पुराण में इनका विस्तार से वर्णन किया गया है

- काली को ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा के प्रसन्न किया जा सकता है।

- कोलकाता, उज्जैन और गुजरात में महाकाली के जाग्रत चमत्कारी मंदिर हैं।

 

2- तारा

सर्वप्रथम महर्षि वशिष्ठ ने तारा की आराधना की थी। यह तांत्रिकों की मुख्य देवी हैं। देवी के इस रूप की आराधना करने पर आर्थिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में तारापीठ है इसी स्थान पर देवी तारा की उपासना महर्षि वशिष्ठ ने करके तमाम सिद्धियां हासिल की थी। तारा देवी का दूसरा प्रसिद्ध मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में स्थित है।

मुख्य बातें-

- चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है।

- तारा मां को जगृति करने के लिए ऊँ ह्नीं स्त्रीं हुम फट' मंत्र का जाप कर सकते हैं।

- परेशनियों को दूर करने के कारण इन्हें तारने वाली माता तारा कहा जाता है। 


3- त्रिपुर सुंदरी

इन्हें ललिता, राज राजेश्वरी और त्रिपुर सुंदरी भी कहते हैं। त्रिपुरा में स्थित त्रिपुर सुंदरी का शक्तिपीठ है। यहां पर माता की चार भुजा और 3 नेत्र हैं। नवरात्रि में रुद्राक्ष की माला से ऐं ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम: मंत्र का जाप कर सकते हैं।

मुख्य बातें-

- इनकी चार भुजा और तीन नेत्र हैं।

- ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम: मंत्र का जाप कर सकते हैं।

 

4- भुवनेश्वरी

पुत्र प्राप्ति के लिए माता भुवनेश्वरी की आराधना फलदायी मानी जाती है। यह शताक्षी और शाकम्भरी नाम से भी जानी जाती है। इस महाविद्या की आराधना से सूर्य के समान तेज ऊर्जा प्राप्ति होती है और जीवन में मान सम्मान मिलता है।


मंत्र- ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नम:

 

5- छिन्नमस्ता

इनका स्वरूप कटा हुआ सिर और बहती हुई रक्त की तीन धाराएं से सुशोभित रहता है। इस महाविद्या की उपासना शांत मन से करने पर शांत स्वरूप और उग्र रूप में उपासना करने पर देवी के उग्र रूप के दर्शन होते है। छिन्नमस्तिके का यह मंदिर झारखंड की राजधानी रांची में स्थिति है। कामाख्या के बाद यह दूसरा सबसे लोकप्रिय शक्तिपीठ है।

मंत्र- 

 'श्रीं ह्नीं ऎं वज्र वैरोचानियै ह्नीं फट स्वाहा


6-भैरवी

भैरवी की उपासना से व्यक्ति सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है। इनकी पूजा से व्यापार में लगातार बढ़ोतरी और धन सम्पदा की प्राप्ति होती है। 

मंत्र- ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:


7-धूमावती

धूमावती माता को अभाव और संकट को दूर करने वाली माता कहते है। इनका कोई भी स्वामी नहीं है। इनकी साधना से व्यक्ति की पहचान महाप्रतापी और सिद्ध पुरूष के रूप में होती है। ऋग्वेद में इन्हें 'सुतरा' कहा गया है।


मंत्र- ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:


8- बगलामुखी

बगलामुखी की साधना दुश्मन के भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। जो साधक नवरात्रि में इनकी साधना करता है वह हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। महाभारत के युद्ध में कृष्ण और अर्जुन ने कौरवों पर विजय हासिल करने के लिए माता बगलामुखी की पूजा अर्चना की थी। भारत में मां बगलामुखी के तीन प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं।


मंत्र-

- ऊँ ह्नीं बगुलामुखी देव्यै ह्नीं ओम नम:' 

- 'ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ॐ स्वाहा

 

9- मातंगी

जो भक्त अपने गृहस्थ जीवन को सुखमय और सफल बनाना चाहते हैं उन्हें मां मातंगी की आराधना करना चाहिए। मतंग भगवान शिव का भी एक नाम है। जो भक्त मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करता है वह अपने खेल, कला और संगीत के कौशल से दुनिया को अपने वश में कर लेता है।


मंत्र- ऊँ ह्नीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:


10- कमला

मां कमला की साधना समृद्धि, धन, नारी, पुत्र की प्राप्ति के लिए की जाती है। इनकी साधना से व्यक्ति धनवान और विद्यावान हो जाता है।


मंत्र- हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:

 


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