नामकरण संस्कार: जानें संपूर्ण विधि और वैदिक महत्व
हिन्दू धर्मशास्त्र में अंकित सभी सोलह संस्कारों में नामकरण को पांचवां संस्कार माना जाता है। इस दुनिया में जो जन्म लेता है उसे किसी ना किसी नाम से ज़रूर पुकारा जाता है। ये नाम यूँ ही नहीं रखे जाते बल्कि हिन्दू धर्म में शिशु के जन्म के बाद विशेषतौर पर नामकरण संस्कार के जरिये उसका एक ख़ास नाम रखा जाता है।
शिशु का नाम रखे जाने के क्रम में विशेष रूप से ज्योतिष आकलनों का सहारा भी लिया जाता है। अमूमन लोग आजकल बच्चे के जन्म के बाद बिना नामकरण संस्कार के ही उसे अपने मन मुताबिक किसी भी नाम से पुकारने लगते हैं। जबकि धार्मिक और ज्योतिषीय आधारों पर ऐसा कदापि नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसका नकारात्मक प्रभाव शिशु के आने वाले जीवन पर पड़ सकता है।
ऐसे में ये बेहद ज़रूरी है कि आप शिशु का सही विधि से नामकरण संस्कार अवश्य करें। शिशु के नामकरण संस्कार में आमतौर पर काफी लोगों को आमंत्रित किया जाता है |
आज इस लेख के जरिये हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर जन्म के बाद नामकरण संस्कार का क्या है विशेष महत्व? तो देर किस बात की आईये विस्तार से जानते हैं नामकरण संस्कार के महत्व और विधि के बारे में।
नामकरण संस्कार के संपन्न करने का उचित समय
हमारे पौराणिक हिन्दू शास्त्रों के अनुसार शिशु के जन्म के दसवें दिन ही संपूर्ण विधि विधान से नामकरण संस्कार करवाने के बाद ही उसका नाम रखा जाता है। अमूमन नामकरण संस्कार के दौरान शिशु के दो नाम रखें जाते हैं जिसमें से एक गुप्त नाम होता है जिसे केवल शिशु के माता-पिता ही जानते हैं और दूसरा प्रचलित नाम होता है जिसका इस्तेमाल स्कूल आदि में एडमिशन के दौरान किया जाता है, और लोग उसे उसी प्रचलित नाम से जानते हैं।
शिशु के जन्म के बाद उसके ग्रह नक्षत्र आदि के अनुसार ही गुप्त नाम रखा जाता है जिसे उसके राशि के अनुसार रखा जाने वाला नाम भी कहा जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शिशु के आने वाले जीवन में उसके भविष्य फल आदि उसी गुप्त नाम के अनुसार ही देखे जाते हैं।
नामकरण संस्कार का विशेष महत्व
हिन्दू सनातन धर्म में नामकरण संस्कार को विशेष महत्व दिया गया है। बच्चे के जन्म के बाद नामकरण संस्कार पहला वो संस्कार है जिसे क्रियान्वित किया जाता है। इस प्रकार नामकरण संस्कार का महत्व अपने आप काफी बढ़ जाता है। नामकरण संस्कार के दौरान मंत्रोच्चार और पूजा का ख़ास महत्व है और इसका प्रभाव शिशु के जीवन पर सकारात्मक रूप से पड़ता है।
शिशु की कुंडली के अनुसार चंद्रराशि के आधार पर ही उसकी राशि के पहले अक्षर से शिशु का नाम रखा जाता है। किसी भी व्यक्ति का अस्तित्व उसके नाम से ही जुड़ा होता है, इसलिए नामकरण संस्कार का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस संस्कार के दौरान उच्चारित किये जाने वाले मन्त्रों का प्रभाव शिशु के विकास के लिए ख़ासा महत्वपूर्ण माना गया है।
शिशु के जन्म के पश्चात माता-पिता की ये विशेष ज़िम्मेदारी होती है कि वो नामकरण संस्कार के द्वारा ही शिशु का उचित नाम रखें। नामकरण संस्कार का महत्व तब और भी बढ़ जाता है जब इसकी शुरुआत कुल देवता के आशीर्वाद के साथ होती है। इस दौरान सभी देवी देवताओं के साथ ही परिवार के बड़े बजुर्गों का आशीर्वाद भी बच्चे के लिए ख़ासा अहमियत रखता है। आगे जाकर उसका भविष्य कैसा होगा इसकी शुरुआत इस संस्कार पर भी निर्भर करता है।
हालाँकि इस वक़्त देश में चल रही कोरोना महामारी की वजह से सलाह दी जाती है कि अभी शिशु का सामान्य ढंग से नामकरण कर लें, एक बार स्थिति सामान्य होने के बाद आप चाहें तो बच्चे के पहले जन्मोत्सव पर दावत रख कर लोगों का आशीर्वाद ले सकते हैं।
इस प्रकार से करें नामकरण संस्कार की तैयारी
- शिशु के जन्म के दसवें दिन ही नामकरण संस्कार की विधि पूरी कर ली जानी चाहिए।
- इस दिन सुबह सवेरे शिशु के साथ ही साथ माता-पिता भी स्नान आदि करने के बाद नववस्त्र धारण करें।
- इसके बाद माता पिता शिशु को अपनी गोद में लेकर पूजा स्थल पर बैठें।
- जहाँ पर नामकरण संस्कार का आयोजन किया जाना हो उस जगह की भली-भांति साफ़ सफाई जरूर करवा लें।
- पूजास्थल पर एक कलश की स्थापना करें और इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कलश पर कलावा या रोली बंधी हो और साथ ही साथ उसपर स्वास्तिक का शुभ चिन्ह भी बना हो।
मेखला बंधन
इसके पश्चात शिशु के कमर में एक रंगीन धागा भी बाँधा जाता है जिसे मेखला बंधन कहते हैं। बहुत से जगहों पर इसे कौंधनी, करधनी और छूटा के नाम से भी जाना जाता है। शिशु के नामकरण संस्कार में शामिल होने वाले सभी प्रियजनों के मन में शिशु के लिए अच्छी भावना होनी चाहिए और वहां मौजूद सभी लोग शिशु के लिए विशेष कामना करें कि वो बड़ा होकर अच्छा इंसान बने और जीवन के हर क्षेत्र में उसे सफलता मिले।
अगर आपके परिवार के सभी सदस्य साथ रहते हैं तब तो आप सामान्य रूप से बच्चे का नामकरण कर सकते हैं लेकिन, अगर सभी अलग-अलग जगहों पर रहते हैं तो इस समय के दौरान उत्साह में किसी को घर पर बुलाने की गलती ना करें। एक बार स्थिति सामान्य होने पर आप बच्चे को सभी परिवारजनों से मिलवा सकते हैं।
शिशु के कमर पर बाँधा जाने वाला ये मेखला बंधन असल में स्फूर्ति, चुस्ती और मुस्तैदी के लिए बांधा जाता है। मनुष्य में इन गुणों को प्रारंभिक गुण माना जाता है। यदि इन गुणों में ही कमी रहे तो फिर मनुष्य को दीन-हीन समझा जाता है। शिशु को इन गुणों से परिपूर्ण करने के लिए ही नामकरण संस्कार के दौरान उसके कमर पर ये मेखला बाँध दी जाती है।
मंत्र- ॐ इयं दुरुक्तं परिबाधमाना, वर्ण पवित्रं पुन्तीम आगात।
प्राणापानाभ्यां बालमादधाना, स्वसादेवी सुभगा मेखलेयम (पार.गृ.सू.२.२.७)
ऊपर दिये गए मंत्र के उच्चारण के साथ शिशु के पिता को उसकी कमर पर मेखला बांधनी चाहिए। पिता को शिशु के अंदर जागरूकता, संयमशीलता आदि जैसी प्रवृतियों के आने की कामना करनी चाहिए।
अभिषेक
किसी भी बच्चे का जब जन्म होता है तो ऐसा माना जाता है कि वो अनेक योनियों से होते हुए मनुष्य योनि में पैदा हुआ है। लिहाजा बच्चे के मस्तिष्क पर पूर्व योनि का प्रभाव यथावत रह सकता है जिसे हटाया जाना बेहद आवश्यक होता है।
सोचने वाली बात है कि यदि मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद भी बच्चे के ऊपर पूर्व योनि का प्रभाव बना रहे तो फिर मनुष्य योनि में जन्म लेने का मतलब ही यथार्थ नहीं होता। शिशु को पूर्व योनि के प्रभावों से मुक्त करने के लिए नामकरण स्थल पर प्रवेश करते ही सर्वप्रथम उसका अभिषेक किया जाता है।
इसके पश्चात कलश का थोड़ा सा जल लेकर या गंगाजल लेकर बच्चे का नामकरण संस्कार करने वालों और उपकरणों पर मंत्रोच्चारण के साथ उसका छिड़काव किया जाता है। इस दौरान नीचे दिये गये मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
मंत्र- ॐ आपो हिष्ठा मयोभुवः, ता ना ऊर्जे दधातन, महे रणाय चक्षसे।
ॐ यो वः शिवतमो रसः, तस्य भाजयतेह नः। उशतीरिव मातरः।
ॐ तस्माअरंगमामवो, यस्य क्षयाय जिन्वथ।
आपो जान यथा च नः।(३६.१४-१३)
मधु प्राशन
नामकरण संस्कार के दौरान शिशु का मधु प्राशन करवाया जाता है, नवजात को चांदी के चम्मच, अंगूठी या फिर सिक्के से शहद चटाया जाता है। इस दौरान
“ॐ प्रते ददामि मधुनो घृतस्य, वेदं सवित्रा प्रसूतम मघोनाम।
आयुष्मान गुप्तो देवताभिः, शतं जीव शारदो लोके अस्मिन”(आश्रव.गृ.सू.१.१४.१)
मंत्र का मंत्रोच्चारण विशेष रूप से किया जाना चाहिए। नामकरण संस्कार के दौरान मधुप्राशन इसलिए करवाया जाता है ताकि शिशु की वाणी मधुर हो और आगे जाकर वो सभी के साथ मधुर भाव से पेश आये।
वाणी में शालीनता और मधुरता होना ख़ासा आवश्यक माना गया है, लिहाजा इस संस्कार के दौरान शिशु को शहद चटाने का यही आशय होता है। मंत्रोउच्चारण के साथ ही शिशु को शहद चटाना चाहिए और मौजूद परिजनों को शिशु की वाणी में शालीनता, हित और मधुरता का भाव आने की ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए।
भूमि पूजन स्पर्शन
जन्म के पश्चात बच्चे को जमीन पर नहीं लिटाया जाता है। हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार नामकरण संस्कार के बाद ही शिशु को जमीन पर लिटाया जाता है या उसे भूमि स्पर्श करवायी जाती है। माता-पिता नामकरण संस्कार के दौरान जिस स्थान पर शिशु को लेकर बैठते हैं उसके समीप ही जमीन पर फूल, अक्षत, गंध, धूप आदि से उस जगह की पूजा करते हैं और उसके बाद शिशु को वहां बिठाया जाता है।
इस दौरान जन्म के बाद पहली बार शिशु भूमि को स्पर्श करता है। इस दौरान बच्चे को जन्मभूमि, देवभूमि और धरती माता से परिचित करवाया जाता है। साथ ही नीचे दिये गये मंत्र को उच्चारित किया जाता है।
मंत्र-ॐ मही धौः पृथिवी च ना, इमं यज्ञं मिमिक्षाताम।
पिपृतां नो भरिमभिः। ॐ पृथिव्यै नमः।
आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि ध्यायामि(-७.३२)
इस मन्त्र के उच्चारण के साथ ही बच्चे की माँ उसे जमीन पर लिटा कर सभी परिजनों के साथ हाथ जोड़कर ईश्वर से प्रार्थना करें कि जिस प्रकार शिशु माता की गोद में सुरक्षित रहता है उसी प्रकार धरती माता भी उसे अपनी गोद में सुरक्षित रखेगी।
इस समय में ध्यान देने वाली बात, शिशु के नामकरण में अगर कुछ लोग शामिल भी होते हैं तो कृपया उनसे उचित दूरी बनाये रखें। समय के लिहाज़ से ये आपके लिए, बच्चे के लिए और अन्य सभी के लिए सुरक्षित विकल्प है।
परस्पर परिवर्तन
माँ के शरीर के खून और मांस से ही बच्चे का निर्माण होता है। शिशु जब जन्म लेता है तो माँ ही होती है जो अपना दूध पिलाकर उसका पालन पोषण करती है। कहते हैं कि ईश्वर के बाद माँ ही होती है जो बच्चे के संपूर्ण विकास के साथ ही साथ उसके सुरक्षा का ध्यान भी रखती है।
लेकिन बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है माता के साथ परिवार के अन्य सदस्यों की भी ये जिम्मेदारी होती है कि वो उसके विकास में अपना योगदान दें। शिशु के सर्वांगीण विकास की जिम्मेदारी माता-पिता के बाद परिवार के अन्य सदस्यों की भी होती है। इसलिए इस संस्कार के दौरान
“ॐ अथ सुमंगल नामानथ्यायति, बहुकार श्रेयस्कर भूयस्करेती,
एवं वन्नामाभवति, कल्याणमेवेतनमनुष्ये वाचो वदति।”
मन्त्र के उच्चारण के साथ माता शिशु को सबसे पहले पिता की गोद में देती हैं और उसके बाद पिता बच्चे को एक-एक कर परिवार के दूसरे सदस्यों की गोद में देते हैं। इस दौरान सभी परिजन शिशु को स्नेह और दुलार की भावना के साथ गोद में लेते हैं और शिशु की परवरिश के प्रति अपने दायित्व को समझते हैं।
हालाँकि ये नियम सामान्य समय में किया जाता है। इस वक़्त आपकी, आपके शिशु की और अन्य सभी लोगों की सुरक्षा के लिहाज़ से सलाह यही दी जाती है कि नामकरण संस्कार के दौरान बच्चों को ज्यादा लोगों की गोद में ना डालें। बच्चे के माता-पिता ही पूरी सफाई और सावधानी से इस क्रिया को पूरा करें और एक बार स्थिति सामान्य होने के बाद शिशु को अन्य लोगों की गोद में डालें।
लोक दर्शन
नामकरण संस्कार के दौरान घर के बड़े बुजुर्ग बच्चे को गोदी में लेकर घर के आँगन में लेकर जाते हैं ,और उसे बाहर के वातावरण और खुले संसार से रूबरू करवाते हैं। बड़ा होकर शिशु संपूर्ण दुनिया और प्रकृति के संपर्क में आता है इसलिए उसे जन्म के पश्चात ही बाहरी दुनिया से मिलवाया जाता है। इस दौरान बच्चे को बाहर ले जाकर घुमाने वाला व्यक्ति
“ॐ हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम “ (-१.३.४ )
मन्त्र का उच्चारण करते हुए बच्चे को बाहरी दुनिया से अवगत करवाते हैं। इस क्रम में गायत्री मन्त्र का उच्चारण करते हुए विशेष आहुति दी जाती है।
हालाँकि इस समय बच्चे को बाहर ले जानें से बचें, हो सके तो केवल उसे घर की बालकनी में ले जायें और वहीं से वापिस ले आयें। एक बार स्थिति सामान्य होने के बाद आप ये क्रिया कर सकते हैं।
गायत्री मंत्र-
ॐ भूर् भुवः स्वः।
तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
बाल प्रबोधन
शिशु के जन्म के बाद उसे स्नेह और दुलार देने के साथ ही साथ उसे भाषा का बोध करवाना भी विशेष रूप से आवश्यक माना जाता है। मनुष्यों में एक-दूसरे की भावनाओं को व्यक्त करने और उसे समझने के लिए भाषा ही एकमात्र जरिया होता है। फलस्वरूप नामकरण संस्कार के दौरान शिशु को पहली बार भाषा का भी बोध करवाया जाता है। इस दौरान शिशु को आचार्य के गोद में दिया जाता है और वो शिशु के कान में
“ॐ शुद्धोसि बद्धोसि निरंजनोसि संसारमाया परिवर्जितोसी।
संसारमायां त्यज मोहनिंद्रा त्वां सद्गुरुः शिक्षयतीति सूत्रम “
मंत्र का जाप करते हैं। आचार्य के साथ ही साथ माता-पिता भी इस दौरान शिशु को आशीर्वाद देते हैं और “हे बालक ! त्वमायुष्मान वर्चस्वी, तेजस्वी श्रीमान भूयः” मन्त्र का परस्पर उच्चारण करते हैं।
नामकरण संस्कार के दौरान भूलकर भी ना करें ये गलतियां
बिना अर्थ के नाम ना रखें
आजकल आधुनिकता के दौर में बहुत से ऐसे लोग हैं जो बच्चों के नाम बिना किसी अर्थ के ही रख देते हैं। नामकरण संस्कार के दौरान हमेशा बच्चों का ऐसा नाम रखा जाना चाहिए जिसका कोई विशेष अर्थ निकलता हो।
जन्म के इतने दिन बाद जरूर करवा लें नामकरण संस्कार
सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार शिशु के जन्म के महज दसवें दिन ही उसका नामकरण संस्कार करवा लेना चाहिए। शुभ दिन और मुहूर्त के साथ ही राशि के अनुसार शिशु का नाम रखे जाने की ख़ास अहमियत है।
ऐसे नाम रखने से बचें
कभी भी शिशु का नाम किसी देवी देवता के ऊपर ना रखें। बेशक ईश्वर बेहद पवित्र और अलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण होते हैं लेकिन मनुष्य कभी भी उनकी तुलना नहीं कर सकता है।
सभी मनुष्य कभी ना कभी कोई ऐसा काम जरूर करते हैं जिसके लिए उन्हें कोसा गया हो। लिहाजा यदि किसी शिशु का नाम देवी देवता के ऊपर है और आप उसे किसी भी बात के लिए कोस रहें हैं या भला बुरा कह रहे हैं तो, कहीं ना कहीं इससे आप ईश्वर का अनादर भी करते हैं।
इस बात का रखें विशेष ख्याल
बच्चे के जन्म के दस दिन पूरे होने के पूर्व इस बात का ख्याल रखें कि वो किसी भी प्रकार से जमीन को ना छुएं। इसके अलावा इस दिन बनने वाले पकवान घर पर ही पकाना चाहिए और इस बात का ख़ास ख्याल रखना चाहिए कि शिशु इस दौरान माता की गोद में ही हो।
तो ये थी नामकरण संस्कार से जुड़ी कुछ विशेष बातें जिसकी जानकारी सभी को जरूर होनी चाहिए। हम आशा करते हैं की हमारा ये लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा।