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माँ तारा महाविद्या OmAsttro

 2. तारा : -

तांत्रिकों की प्रमुख देवी तारा। तारने वाली कहने के कारण माता को तारा भी कहा जाता है। सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने तारा की आराधना की थी। शत्रुओं का नाश करने वाली सौन्दर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं।



२ – तारा

         भगवती काली को ही नीलरुपा होने के कारण तारा भी कहा गया है । वचनान्तर से तारा नामका रहस्य यह भी है कि ये सर्वदा मोक्ष देने वाली है, इसलिए इन्हें तारा कहा जाता है । महाविद्याओ में ये द्वितीय स्थान पर परिगणित है । अनायास ही वाक्शक्ति प्रदान करने में समर्थ है, इसलिए इन्हें नील सरस्वती भी कहते है । भयंकर विपत्तियों से भक्तो की रक्षा करती है, इसलिए उग्रतारा है । बृहन्नील-तंत्रादि ग्रंथो में भगवती तारा के स्वरुप की विशेष चर्चा है । हयग्रीव का वध करने के लिए इन्हें नील-विग्रह प्राप्त हुआ था । ये शवरूप शिव पर प्रत्यालीढ़ मुद्रा में आरूढ़ है । भगवती तारा नीलवर्णवाली, नीलकमलो के समान तीन नेत्रोंवाली तथा हाथों में कैची, कपाल, कमल और खड्ग धारण करने वाली है । ये व्याघ्रचर्म से विभूषित तथा कंठ में मुंडमाला धारण करनेवाली है । शत्रु नाश, वाक्-शक्ति की प्राप्ति तथा भोग-मोक्ष की प्राप्ति के लिए तारा अथवा उग्रतारा की साधना  की जाती है । रात्रिदेवी की स्वरूपा शक्ति तारा महाविद्याओ में अद्भुत प्रभाववाली और सिद्धि की अधिष्ठात्री देवी कही गयी है । भगवती तारा के तीन रूप है – तारा, एकजटा और नीलसरस्वती । तीनो रूपों के रहस्य, कार्य-कलाप तथा ध्यान परस्पर भिन्न है, किन्तु भिन्न होते हुए सबकी शक्ति सामान और एक है । भगवती तारा की उपासना मुख्यरूप से तंत्रोक्त पद्धति से होती है, जिसे आगमोक्त पद्धति भी कहते है । इनकी उपासना से सामान्य व्यक्ति भी बृहस्पति के समान विद्वान हो जाता है । भारत में सर्वप्रथम महर्षि वशिष्ठ ने तारा की आराधना की थी । इसलिये तारा को वसिष्ठाराधिता तारा भी कहा जाता है । वसिष्ठ ने पहले भगवती तारा की आराधना वैदिक रीति से करनी प्रारंभ की, जो सफल न हो सकी । उन्हें अदृश्यशक्ति से संकेत मिला कि वे तांत्रिक-पद्धति के द्वारा जिसे ‘चिनाचार’ कहा जाता है, उससे उपासना करे । जब वसिष्ठ ने तांत्रिक पद्धति का आश्रय लिया, तब उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई । यह कथा ‘आचार तंत्र में वसिष्ठ मुनि की आराधना उपाख्यान में वर्णित है । इससे यह सिद्ध होता है कि पहले चीन, तिब्बत, लद्दाख आदि में तारा की उपासना प्रचलित थी ।

तारा का प्रादुर्भाव मेरु-पर्वत के पश्चिम भाग में ‘चोलना नाम की नदी के चोलत सरोवर के तटपर हुआ था, जैसा कि स्वतंत्रतंत्र में वर्णित है –

मेरोः पश्चिमकूले नु चोत्रताख्यो ह्रदो महान् ।
तत्र  जज्ञे  स्वयं  तारा  देवी  नीलसरस्वती । ।

‘महाकाल-संहिता’ के काम-कलाखण्ड में तारा-रहस्य वर्णित है, जिसमे तारारात्रि में तारा की उपासना का विशेष महत्व है । चैत्र-शुक्ल नवमी की रात्रि ‘तारारात्रि’ कहलाती है –

चैत्रे  मासि  नवम्यां तु शुक्लपक्षे तु भूपते ।
                     क्रोध रात्रिर्महेशानि तारारूपा भविष्यति । ।
(पुरश्चयार्णव भाग – ३)

बिहार के सहरसा जिले में प्रसिद्ध ‘महिषी ग्राम में उग्रतारा का सिद्धपीठ विद्यमान है । वहाँ तारा, एकजटा तथा नीलसरस्वती की तीनो मूर्तियाँ एक साथ है । मध्य में बड़ी मूर्ति तथा दोनों तरफ छोटी मूर्तियाँ है । कहा जाता है कि महर्षि वशिष्ठ ने यही तारा की उपासना करके सिद्धि प्राप्त की थी । तंत्रशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘महाकाल-संहिता’ के गुह्य-काली-खण्ड में महाविद्याओ की उपासना का विस्तृत वर्णन है, उसके अनुसार तारा का रहस्य अत्यंत चमत्कारजनक है ।

 



भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं : - तारा , एकजटा और नील सरस्वती।






तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है। यह पीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला में स्थित है। इसलिए यह स्थान तारापीठ के नाम से विख्यात है। प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस मंदिर में वामाखेपा नामक एक साधक ने देवी तारा की साधना करके उनसे सिद्धियां हासिल की थी।


तारा माता के बारे में एक दूसरी कथा है कि वे राजा दक्ष की दूसरी पुत्री थीं। तारा देवी का एक दूसरा मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 13 किमी की दूरी पर स्थित शोघी में है। देवी तारा को समर्पित यह मंदिर, तारा पर्वत पर बना हुआ है। तिब्‍बती बौद्ध धर्म के लिए भी हिन्दू धर्म की देवी 'तारा' का काफी महत्‍व है।


चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा रूपी देवी की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है। जो भी साधक या भक्त माता की मन से प्रार्धना करता है उसकी कैसी भी मनोकामना हो वह तत्काल ही पूर्ण हो जाती है।

तारा माता का मंत्र :


नीले कांच की माला से बारह माला प्रतिदिन 'ऊँ ह्नीं स्त्रीं हुम फट'


मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।

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