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माँ काली महाविद्या OmAsttro

1. काली : - 

 दस महाविद्या में काली प्रथम रूप है। माता का यह रूप साक्षात और जाग्रत है। काली के रूप में माता का किसी भी प्रकार से अपमान करना अर्थात खुद के जीवन को संकट में डालने के समान है। महा दैत्यों का वध करने के लिए माता ने ये रूप धरा था। सिद्धि प्राप्त करने के लिए माता की वीरभाव में पूजा की जाती है। काली माता तत्काल प्रसन्न होने वाली और तत्काल ही रूठने वाली देवी है। अत: इनकी साधना या इनका भक्त बनने के पूर्व एकनिष्ठ और कर्मों से पवित्र होना जरूरी होता है।




१ – काली

दस महाविद्याओ में काली का स्थान प्रथम है । महाभागवत के अनुसार महाकाली ही मुख्य है और उन्ही के उग्र और सौम्य दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविद्याएँ है। विद्यापति भगवान् शिव की शक्तियाँ ये महाविद्याएँ अनन्त सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ है। दार्शनिक दृष्टि से भी कालतत्व की प्रधानता सर्वोपरि है। इसलिये महाकाली या काली ही समस्त विद्याओ की आदि है अर्थात उनकी विद्यामय विभूतियाँ ही महाविद्याएँ है। ऐसा लगता है कि महाकाल की प्रियतमा काली ही अपने दक्षिण और वाम रूपों में दस महाविद्याओ के नाम से विख्यात हुई। बृहन्नील तंत्र में कहा गया है कि रक्त और कृष्ण भेद से काली ही दो रूपों में अधिष्ठित है। कृष्णा का नाम ‘दक्षिणा’ और रक्तवर्णा का नाम ‘सुंदरी है।

            कालिकापुराण में कथा आती है कि एक बार हिमालय पर अवस्थित मतंग मुनि के आश्रम में जाकर देवताओ ने महामाया की स्तुति की । स्तुति से प्रसन्न होकर मतंग-वनिता के रूप में भगवती ने देवताओ को दर्शन दिया और पूछा कि तुमलोग किसकी स्तुति कर रहे हो । उसी समय देवी के शरीर से काले पहाड़ के समान वर्णवाली एक और दिव्य नारी का प्राकट्य हुआ । उस महा तेजस्विनी ने स्वयं ही देवताओ की ओर से उत्तर दिया कि ‘ये लोग मेरा ही स्तवन कर रहे है’ । वे काजल के समान कृष्णा थी, इसीलिए उनका नाम ‘काली पड़ा ।

            दुर्गा सप्तशती के अनुसार एक बार शुम्भ-निशुम्भ के अत्याचार से व्यथित होकर देवताओ ने हिमालय पर जाकर देवी सूक्त से देवी की स्तुति की, तब गौरी की देह से कौशिकी का प्राकट्य हुआ । कौशिकी के अलग होते ही अम्बा पार्वती का स्वरुप कृष्ण हो गया, जो ‘काली नाम से विख्यात हुई । काली को नीलरुपा होने के कारण तारा भी कहते है । नारद – पांचरात्र के अनुसार एक बार काली के मन में आया कि वे पुनः गौरी हो जायँ । यह सोचकर वे अंतर्धान हो गयी । शिव जी ने नारद जी उनका पता पूछा । नारद जी ने उनसे सुमेरु के उत्तर में देवी के प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात कही । शिवजी की प्रेरणा से नारद जी वहाँ गये । उन्होंने देवी से शिव जी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा । प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो गयी और उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट हुआ और उससे छायाविग्रह त्रिपुरभैरवी का प्राकट्य हुआ ।

            काली की उपासना में सम्प्रदायगत भेद है । प्रायः दो रूपों में इनकी उपासना का प्रचलन है । भवबंधन-मोचन में काली की उपासना सर्वोत्कृष्ट कही जाती है । शक्ति-साधना के दो पीठों में काली की उपासना श्याम-पीठ पर करने योग्य है । भक्तिमार्ग में तो किसी भी रूप में उन महामाया की उपासना फलप्रदा है, पर सिद्धि के लिये उनकी उपासना वीरभाव से की जाती है । साधना के द्वारा जब अहंता, ममता और भेद-बुद्धि का नाश होकर साधक में पूर्ण शिशुत्व का उदय हो जाता है, तब काली का श्रीविग्रह साधक के समक्ष प्रकट हो जाता है । उस समय भगवती काली की छवि अवर्णनीय होती है । कज्जल के पहाड़ के समान, दिग्वसना, मुक्तकुन्तला, शव पर आरूढ़, मुण्डमाला धारिणी भगवती काली का प्रत्यक्ष दर्शन साधक को कृतार्थ कर देता है । तांत्रिक-मार्ग में यद्यपि काली की उपासना दीक्षागम्य है, तथापि अनन्य शरणागति के द्वारा उनकी कृपा किसी को भी प्राप्त हो सकती है । मूर्ति, मंत्र अथवा गुरुद्वारा उपदिष्ट किसी भी आधार पर भक्तिभाव से, मंत्र-जप, पूजा, होम और पुरुश्चरण करने से भगवती काली प्रसन्न हो जाती है । उनकी प्रसन्नता से साधक को सहज ही सम्पूर्ण अभीष्टो की प्राप्ति हो जाती है ।

 

यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरूढ़ मुंडमाला धारण किए हुए एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के समक्ष प्रकट होने वाली काली माता को नमस्कार। यह काली एक प्रबल शत्रुहन्ता महिषासुर मर्दिनी और रक्तबीज का वध करने वाली शिव प्रिया चामुंडा का साक्षात स्वरूप है, जिसने देव-दानव युद्ध में देवताओं को विजय दिलवाई थी। इनका क्रोध तभी शांत हुआ था जब शिव इनके चरणों में लेट गए थे।

* नाम : माता कालिका

* शस्त्र : त्रिशूल और तलवार

* वार : शुक्रवार

* दिन : अमावस्या

* ग्रंथ : कालिका पुराण

* मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा

* दुर्गा का एक रूप : माता कालिका 10 महाविद्याओं में से एक

* मां काली के 4 रूप हैं : - दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली।

* राक्षस वध : रक्तबीज।

* कालिका के प्रमुख तीन स्थान है : - कोलकाता में कालीघाट पर जो एक शक्तिपीठ भी है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में भैरवगढ़ में गढ़कालिका मंदिर इसे भी शक्तिपीठ में शामिल किया गया है और गुजरात में पावागढ़ की पहाड़ी पर स्थित महाकाली का जाग्रत मंदिर चमत्कारिक रूप से मनोकामना पूर्ण करने वाला है।

* काली माता का मंत्र : हकीक की माला से नौ माला 'क्रीं ह्नीं ह्नुं दक्षिणे कालिके स्वाहा:।'


मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।




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