बच्चों पर क्यों नहीं लगती शनि की ढैया और साढ़ेसाती? वजह जानते हैं आप?
शनिदेव का नाम सुनते ही लोग डर जाते हैं। कहा जाता है कि, जिन लोगों के जीवन में शनि देव अशुभ परिणाम देते हैं उन्हें तमाम तरह की दिक्कतें और परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि ऐसा निश्चित नहीं है कि, शनिदेव केवल दुष्परिणाम ही देते हैं। दरअसल शनिदेव आपको आपके कर्म के आधार पर फल देते हैं। अच्छा काम करने वालों को शनि देव हमेशा शुभ परिणाम ही प्रदान करते हैं। ऐसे लोग जीवन में हर बुलंदियों और ऊंचाइयों को अवश्य छूते हैं। वहीं दूसरी तरफ जिस किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि से संबंधित दोष मौजूद होते हैं उन्हें ढेरों परेशानियां उठानी पड़ती है।
व्यक्ति की कुंडली में विभिन्न प्रकार के शनि दोष मौजूद हो सकते हैं जैसे शनि की साढ़ेसाती, शनि की ढैया इत्यादि। मौजूदा समय में धनु राशि, मकर राशि और कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि, बच्चों पर क्या शनि दोष का प्रभाव होता है? अगर हां तो कैसे और नहीं तो क्यों?
दरअसल कहा जाता है कि, शनिदेव की साढ़ेसाती और ढैय्या का असर बच्चों पर होता ही नहीं है। ऐसा क्यों आइए जानते हैं इससे जुड़ी एक बेहद ही रोचक कथा।
सबसे पहले तो जानकारी के लिए बता दें कि, पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाने और ऋषि पिप्पलाद का नाम लेने से ही शनि दोष नहीं लगता है। इन्हीं ऋषि पिप्पलाद से संबंधित कथा हम आपको बताने जा रहे हैं:
प्राचीन समय में जब महर्षि दधीचि को देवताओं के लिए हड्डियों का वज्र बनाना था तब उन्होंने खुद अपनी ही हड्डियों का दान कर दिया था। इस खबर के बाद उनकी पत्नी सुवर्चा बेहद ही परेशान हो गई और अपने पति के साथ सती होने की ज़िद करने लग गयी।
तभी एक आकाशवाणी में बताया गया कि, आपके ही गर्भ से महर्षि दधीचि के शंकर अवतार का जन्म होगा। ऐसे में आपको उनकी रक्षा करनी है जिसके लिए आप अपने पति के साथ सती नहीं हो सकती है। हालांकि सुवर्चा बच्चे को जन्म देने के बाद ही अपने पति के साथ सती हो गई। इस बच्चे का नाम था पिप्पलाद।
ऋषि पिप्पलाद पीपल के वृक्ष के नीचे ही पैदा हुए थे और पीपल के फल ही खाकर ही बड़े हुए थे। मां बाप के अभाव में उनका जीवन बेहद ही कष्ट में बीता। इसके बाद उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की और ब्रह्मा दंड प्राप्त कर लिया। तब उन्होंने देवताओं से यह प्रश्न किया कि, उन्होंने क्या ऐसे पाप किए थे जिसके चलते वो जन्म के साथ ही अनाथ हो गए और फिर ढेरों कष्ट भोगने की सजा मिली। इसके बाद तो उनके क्रोध की कोई सीमा ही नहीं रही जब उन्हें यह पता चला कि ऐसा शनिदेव की वजह से हुआ है। उन्होंने गुस्से में बोला शनि देव इतनी क्रूर क्यों है कि वह बच्चों तक को नहीं छोड़ते?
अपने इसी क्रोध में ऋषि पिप्पलाद ने अपना ब्रह्मा दंड शनिदेव की तरह दे मारा। कहा जाता है इसकी वजह से ही शनिदेव का एक पैर कमजोर हो गया। हालांकि तब देवी देवताओं ने ऋषि पिप्पलाद को समझाया कि शनि देव न्याय के देवता हैं, वह लोगों को उनके कर्म के आधार पर फल देते हैं। आपके साथ जो भी हुआ है वह आपके ही कर्मों का फल होगा।
क्रोध शांत होने के बाद शनिदेव को ऋषि पिप्पलाद ने माफ किया और उनसे कहा कि, अब 16 वर्ष तक के बच्चों पर कभी भी शनिदेव के प्रकोप का साया नहीं होगा। साथ ही जो व्यक्ति पीपल के वृक्ष की पूजा करेंगे और उसमें नियमित रूप से जल चढ़ाएंगे उन्हें शनिदेव कभी नहीं सतायेंगे। कहा जाता है इसके बाद से ही ऋषि पिप्पलाद का नाम लेने और पीपल पर जल चढ़ाने की मान्यता की शुरुआत हुई।
आशा करते हैं इस लेख में दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी।
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