आज अपने इस खास लेख में हम जानेंगे जनेऊ/उपनयन/यज्ञोपवित संस्कार मुहूर्त के बारे में कुछ जरूरी और महत्वपूर्ण बातें। साथ ही जानेंगे वर्ष 2024 में उपनयन मुहूर्त 2024 की विस्तृत जानकारी। सनातन धर्म में जनेऊ संस्कार या उपनयन संस्कार को बेहद ही महत्वपूर्ण कहा जाता है क्योंकि बच्चे का जनेऊ संस्कार हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक माना गया है। आज के समय में बहुत से लोग इस संस्कार को अपने विवाह के समय करते हैं। हालांकि आप कभी भी उपनयन संस्कार क्यों ना करवाएँ लेकिन उसके लिए उपनयन मुहूर्त की जानकारी होना बेहद ही आवश्यक माना गया है।
आगे बढ़ने से पहले हम यह बात सुनिश्चित कर दें कि omasttro का उपनयन मुहूर्त 2024 सार्वजनिक मुहूर्त है। यदि आप अपनी जन्म तिथि से इस दिन का शुभ मुहूर्त जानना चाहते हैं तो आप भविष्य से जुड़ी किसी भी समस्या का समाधान मिलेगा Astro Om Trivedi Ji से बात करके
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उपनयन मुहूर्त 2024 - गणना
किसी भी शुभ मुहूर्त की गणना की तरह उपनयन मुहूर्त 2024 की गणना के लिए पंचांग का होना बेहद आवश्यक होता है क्योंकि विद्वान ज्योतिषी इसी पंचांग के माध्यम से ही नक्षत्र, तिथि, वार, लग्न को देखते हैं। इन महत्वपूर्ण पहलुओं के अनुसार ही उपनयन मुहूर्त का चयन किया जाता है।
नक्षत्र: उपनयन मुहूर्त 2024 के लिए अश्विनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, अश्लेषा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, धनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र, आदि नक्षत्र शुभ माने गए हैं।
तिथि: उपनयन मुहूर्त 2024 के लिए शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि, तृतीया, पंचमी, दशमी, एकादशी, और द्वादशी तिथि शुभ मानी जाती हैं। इसके अलावा कृष्ण पक्ष की द्वितीया, तृतीया, और पंचमी तिथि, भी इस संदर्भ में शुभ मानी गई है।
वार: उपनयन मुहूर्त 2024 के लिए रविवार, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, और शुक्रवार बेहद शुभ माने जाते हैं।
लग्न: लग्न से छठे, आठवें, या बारहवें, स्थान में शुभ ग्रहों की स्थिति या इन इन स्थानों में शुभ ग्रहों की स्थिति- 3, 6, 11, भाव में पाप ग्रहों और पूर्ण चंद्रमा, वृषभ, या कर्क राशि में होकर लग्न में हो तो इसे शुभ माना जाता है।
माह: चैत्र, वैशाख, आषाढ़, (देवशयनी एकादशी से पूर्वकाल तक) माघ व् फाल्गुन मास तक जनेऊ संस्कार के लिए शुभ महीने माने गए हैं।
जानने योग्य बातें: जन्म या गर्भाधान के समय से 5 में या 8 वर्ष में ब्राह्मण का जनेऊ करना उत्तम माना गया है, क्षत्रिय का जनेऊ छठवें (6) में या ग्यारहवें (11) वर्ष में हो तो शुभ माना गया है, वैश्य का जनेऊ आठवें (8) या बारहवें (12) वर्ष में हो तो उत्तम माना जाता है।
कब नहीं करना चाहिए जनेऊ? सप्ताह में शनिवार, रात में, दोपहर के बाद, प्रातः, शाम के समय, मेघ गर्जन इत्यादि के समय में उपनयन कराने से बचना चाहिए। इसके अलावा भद्रा और यदि कोई दोष चल रहा हो तो उसमें उपनयन मुहूर्त 2024 नहीं करना चाहिए।
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उपनयन मुहूर्त 2024
जनवरी (पौष-माघ) 2024
शुभ यज्ञोपवीत तिथियां | यज्ञोपवीत मुहूर्त |
21/01/2024 (रविवार) | 19:27 -27:52 |
26/01/2024 (शुक्रवार) | 25:20-31:12 |
31/01/2024 (बुधवार) | 07:10 - 11:36 |
फरवरी (माघ-फाल्गुन) 2024
शुभ यज्ञोपवीत तिथियां | यज्ञोपवीत मुहूर्त |
11/02/2024 (रविवार) | 17:39 -31:03 |
12/02/2024 (सोमवार) | 07:03 - 14:56 |
14/02/2024 (बुधवार) | 11:31 - 12:10 |
18/02/2024 (रविवार) | 22:24 -30:57 |
19/02/2024 (सोमवार) | 06:57 - 21:20 |
25/02/2024 (रविवार) | 20:36 -25:24 |
26/02/2024 (सोमवार) | 28:31-30:49 |
28/02/2024 (बुधवार) | 28:19-30:47 |
29/02/2024 (गुरुवार) | 06:47 - 10:22 |
मार्च (फाल्गुन-चैत्र) 2024
शुभ यज्ञोपवीत तिथियां | यज्ञोपवीत मुहूर्त |
27/03/2024 (बुधवार) | 09:36 - 16:15 |
29/03/2024 (शुक्रवार) | 20:36 -27:01 |
अप्रैल (चैत्र-वैशाख) 2024
शुभ यज्ञोपवीत तिथियां | यज्ञोपवीत मुहूर्त |
12/04/2024 (शुक्रवार) | 13:12 -29:58 |
17/04/2024 (बुधवार) | 15:14 -29:53 |
18/04/2024 (गुरुवार) | 05:53 - 07:09 |
25/04/2024 (गुरुवार) | 28:53-29:45 |
मई (वैशाख-ज्येष्ठ) 2024
शुभ यज्ञोपवीत तिथियां | यज्ञोपवीत मुहूर्त |
9 मई 2024 | 12:56-17:30 |
10 मई 2024 | 06:22-08:17 |
10:32-17:26 | |
12 मई 2024 | 06:14-10:24 |
12:44-19:38 | |
17 मई 2024 | 10:04-14:42 |
16:58-19:18 | |
18 मई 2024 | 06:00-07:46 |
10:01-16:54 | |
19 मई 2024 | 14:34-16:51 |
20 मई 2024 | 09:53-16:47 |
24 मई 2024 | 07:22-11:57 |
25 मई 2024 | 11:53-14:11 |
16:27-18:46 |
जून (ज्येष्ठ-श्रावण) 2024
शुभ यज्ञोपवीत तिथियां | यज्ञोपवीत मुहूर्त |
8 जून 2024 | 06:23-08:38 |
10:58-17:51 | |
9 जून 2024 | 06:19-08:34 |
10:54-17:48 | |
10 जून 2024 | 17:44-20:02 |
16 जून 2024 | 08:07-15:00 |
17:20-19:39 | |
17 जून 2024 | 05:54-08:03 |
10:23-17:16 | |
22 जून 2024 | 07:43-12:21 |
14:37-18:24 | |
23 जून 2024 | 07:39-12:17 |
14:33-19:11 | |
26 जून 2024 | 09:48-16:41 |
जुलाई (श्रावण-भाद्रपद) 2024
शुभ यज्ञोपवीत तिथियां | यज्ञोपवीत मुहूर्त |
7 जुलाई 2024 | 06:44-09:04 |
11:22-18:16 | |
8 जुलाई 2024 | 06:40-09:00 |
11:18-18:12 | |
10 जुलाई 2024 | 13:26-18:04 |
11 जुलाई 2024 | 06:28-11:06 |
17 जुलाई 2024 | 07:33-08:25 |
21 जुलाई 2024 | 17:21-19:25 |
22 जुलाई 2024 | 06:08-12:39 |
14:58-18:27 | |
25 जुलाई 2024 | 07:54-17:05 |
अगस्त (भाद्रपद-अश्विन) 2024
शुभ यज्ञोपवीत तिथियां | यज्ञोपवीत मुहूर्त |
7 अगस्त 2024 | 07:02-09:20 |
11:36-18:18 | |
9 अगस्त 2024 | 06:55-11:28 |
13:48-18:10 | |
14 अगस्त 2024 | 11:09-13:28 |
15 अगस्त 2024 | 13:24-17:47 |
16 अगस्त 2024 | 11:01-17:43 |
17 अगस्त 2024 | 06:23-08:40 |
21 अगस्त 2024 | 07:19-13:00 |
15:19-19:05 | |
23 अगस्त 2024 | 12:53-15:11 |
17:15-18:57 | |
24 अगस्त 2024 | 06:38-08:13 |
सितंबर (अश्विन-कार्तिक) 2024
शुभ यज्ञोपवीत तिथियां | यज्ञोपवीत मुहूर्त |
4 सितंबर 2024 | 12:05-18:10 |
5 सितंबर 2024 | 07:26-09:42 |
12:02-18:06 | |
6 सितंबर 2024 | 07:22-09:38 |
11:58-16:20 | |
8 सितंबर 2024 | 07:20-11:50 |
14:08-16:12 | |
13 सितंबर 2024 | 09:11-15:53 |
17:35-19:02 | |
14 सितंबर 2024 | 07:15-09:07 |
15 सितंबर 2024 | 06:46-09:03 |
11:22-17:27 |
अक्टूबर (कार्तिक-मार्गशीर्ष) 2024
शुभ यज्ञोपवीत तिथियां | यज्ञोपवीत मुहूर्त |
4 अक्टूबर 2024 | 06:47-10:08 |
12:26-17:40 | |
7 अक्टूबर 2024 | 14:18-18:53 |
12 अक्टूबर 2024 | 11:55-15:41 |
17:08-18:33 | |
13 अक्टूबर 2024 | 09:32-15:37 |
14 अक्टूबर 2024 | 07:11-09:28 |
11:47-17:00 | |
18 अक्टूबर 2024 | 06:55-13:35 |
21 अक्टूबर 2024 | 09:01-15:05 |
16:33-18:44 |
नवंबर (मार्गशीर्ष-पौष) 2024
शुभ यज्ञोपवीत तिथियां | यज्ञोपवीत मुहूर्त |
3 नवंबर 2024 | 07:06-10:28 |
12:32-17:07 | |
4 नवंबर 2024 | 07:07-10:24 |
6 नवंबर 2024 | 07:08-12:20 |
14:03-18:30 | |
11 नवंबर 2024 | 09:57-15:10 |
16:35-18:11 | |
13 नवंबर 2024 | 07:30-09:49 |
11:53-13:35 | |
17 नवंबर 2024 | 07:17-13:19 |
14:47-19:42 | |
20 नवंबर 2024 | 11:25-16:00 |
दिसंबर (पौष-माघ) 2024
शुभ यज्ञोपवीत तिथियां | यज्ञोपवीत मुहूर्त |
4 दिसंबर 2024 | 07:30-10:30 |
12:12-15:05 | |
5 दिसंबर 2024 | 13:36-18:32 |
6 दिसंबर 2024 | 07:32-12:05 |
11 दिसंबर 2024 | 07:35-07:59 |
10:03-16:13 | |
12 दिसंबर 2024 | 07:36-09:59 |
15 दिसंबर 2024 | 15:57-20:07 |
16 दिसंबर 2024 | 07:39-12:53 |
14:18-20:03 | |
19 दिसंबर 2024 | 11:14-14:06 |
15:41-19:03 |
उपनयन संस्कार अर्थ और महत्व
सनातन धर्म के 16 निर्धारित संस्कारों में से एक होता है जनेऊ संस्कार। यह प्राचीन सनातन हिंदू धर्म में वर्णित दसवां संस्कार माना गया है। इस समारोह में लड़कों को एक पवित्र धागा (जिसे जनेऊ कहते हैं वह) धारण कराया जाता है। ब्राह्मण से लेकर क्षत्रिय और ऐसी कई जातियों के लड़के जनेऊ धारण करते हैं। बात करें उपनयन शब्द की तो ये दो शब्दों से मिलकर बना है 'ऊपर' जिसका अर्थ है निकट और 'नयन' अर्थात दृष्टि। ऐसे में उपनयन का शाब्दिक अर्थ होता है खुद को अंधकार से दूर रखना और प्रकाश की ओर बढ़ना। उपनयन संस्कार सबसे प्रसिद्ध और पवित्र संस्कारों में से एक माना गया है।
अपने इस ब्लॉग में हम आपको वर्ष 2024 में पड़ने वाले सभी उपनयन मुहूर्त 2024 के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे। आमतौर पर हिंदू धर्म में शादी से पहले दूल्हे के लिए इस संस्कार का आयोजन किया जाता है। इस समारोह को यज्ञोपवित के नाम से भी जाना जाता है।
माना जाता है कि जनेऊ संस्कार के साथ बालक बाल्यावस्था से यौवन अवस्था तक उदित होता है। उन्नति को दर्शाने के लिए योग्य पंडित लड़के के बाएं कंधे के ऊपर और दाहिने हाथ के नीचे पवित्र धागा (जिसे जनेऊ कहते हैं वह) बांधते हैं। यह जनेऊ तीन धागों की धाराओं को एक बनाकर बनाया जाता है। जनेऊ में मुख्य रूप से तीन धागे होते हैं जो ब्रह्मा, विष्णु, और महेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके अलावा यह तीन धागे देव ऋण, पित्र ऋण, और ऋषि ऋण का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके अलावा बहुत लोग यह भी मानते हैं कि यह तीन धागे सत्व, राह और तम का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके अलावा यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का भी प्रतीक माने गए हैं।
प्रमुख मान्यता के अनुसार जनेऊ के तीन पवित्र धागे हिंदू धर्म के तीन मुख्य आदर्शों को दर्शाते हैं। जनेऊ का पहला धागा आध्यात्मिक पथ के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक माना गया है, दूसरा धागा माता पिता और उनके पालन पोषण के तरीकों का प्रतीक माना जाता है, तीसरा धागा आध्यात्मिक गुरुओं का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में इन तीनों ही धागों को और उनके आदर्शों को व्यक्ति को कभी भी नहीं भूलना चाहिए। हिंदू धर्म में जनेऊ को महज़ एक धागा नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक और पवित्र धागा माना जाता है।
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जनेऊ के धार्मिक, वैज्ञानिक महत्व और स्वास्थ्य लाभ
जनेऊ को हिंदू धर्म की पहचान माना जाता है। जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना हिन्दू लड़कों का बेहद ही महत्वपूर्ण कर्तव्य है। जनेऊ धारण करने के बाद ही बालक को यज्ञ और स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
वैज्ञानिक महत्व की बात करें तो कहा जाता है कि,
- जनेऊ धारण करने के बाद बुरे स्वप्न नहीं आते हैं।
- जनेऊ हृदय के पास से गुजरता है ऐसे में यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है।
- जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति साफ-सफाई के नियमों में बंध जाता है। ऐसे में जनेऊ व्यक्ति को दांत में, पेट, जीवाणु के रोग, से बचाती है।
- जनेऊ को दाएं कान पर धारण करने से कान की वह नस दबती है जिससे मस्तिष्क की सोई हुई तंद्रा कार्य करती है।
- कान में जनेऊ लपेटने से सूर्य नाड़ी भी जागृत होती है।
- इसके अलावा ऐसा करने से पेट संबंधी रोग और रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है, इससे क्रोध पर नियंत्रण होता है।
- जनेऊ व्यक्ति को पवित्रता का एहसास कराता है और ऐसे में व्यक्ति के मन में बुरे कर्म और बुरे विचार नहीं आते हैं।
- जनेऊ व्यक्ति को कब्ज, एसिडिटी, पेट, रोग, रक्तचाप, हृदय रोगों, और तमाम तरह के संक्रमण से बचाती है।
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जनेऊ से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें
जनेऊ के 9 तार: जनेऊ के हर एक जीवा में 3 तार होते हैं। ऐसे में तारों की कुल संख्या 9 हो जाती है।
जनेऊ की पाँच गांठ: जनेऊ में पांच गाँठे होती हैं। जनेऊ में आमतौर पर 5 गाँठे बनाई जाती हैं जो ब्रह्मा, धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष का प्रतिनिधित्व करती है।
जनेऊ की लंबाई: जनेऊ की लंबाई कुल 96 अंगुल होती है। ऐसे में इसे धारण करने वाले को 64 कला और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करने का आवाहन किया गया है। 32 विद्याएं चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर होती है।
जनेऊ धारण करते समय बालक केवल छड़ी धारण करता है। वह केवल एक कपड़े पहनता है और यह कपड़ा बिना टांके वाला होना चाहिए। आमतौर पर इस दौरान धोती पहनाई जाती है, गले में पीले रंग का गमछा पहना जाता है। यह धारण करना आवश्यक होता है। इस अवसर पर बालक और उसके परिवार के लोग यज्ञ में शामिल होते हैं।
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गायत्री मंत्र से शुरू होता है ये संस्कार
यज्ञोपवीत संस्कार गायत्री मंत्र से शुरू होता है।
गायत्री में तीन चरण हैं।
‘तत्सवितुर्वरेण्यं’ प्रथम चरण,
‘भर्गोदेवस्य धीमहि’ द्वितीय चरण,
‘धियो यो न: प्रचोदयात्’- तृतीया चरण
जनेऊ संस्कार के लिए मंत्र:
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुधग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।
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जनेऊ संस्कार की सही विधि
यह महत्वपूर्ण संस्कार सही विधि से किया जाए तो इससे और भी ज्यादा शुभ परिणाम बालक को प्राप्त होते हैं। तो आइए जान लेते हैं इस संस्कार की सही विधि क्या है:
- आमतौर पर जनेऊ बच्चे की कम उम्र में ही कर दिया जाता है। ऐसे में जनेऊ संस्कार शुरू करने से पहले बच्चे का मुंडन करा दिया जाता है।
- इसके बाद बालक को स्नान कराया जाता है और उसके सिर और शरीर पर चंदन का लेप लगाया जाता है।
- फिर भगवान गणेश की पूजा से संस्कार का प्रारंभ किया जाता है।
- देवी देवता का आवाहन करने के लिए गायत्री मंत्र का 10,000 बार जप किया जाता है। इसके बाद बालक शास्त्रों की शिक्षाओं का पालन करने व्रत करने का संकल्प लेता है।
- इसके बाद बालक को उसी की उम्र के लड़कों के साथ चूरमा खिलाया जाता है फिर से स्नान कराया जाता है।
- इसके बाद पंडित, पिता या परिवार का कोई भी बड़ा सदस्य बच्चे के सामने गायत्री मंत्र का पाठ करता है और बालक से कहता है कि, 'आज से आप ब्राह्मण हैं'।
- इसके बाद बालक को डंडा दिया जाता है आसपास के लोग उनसे भिक्षा मांगते हैं।
- रिवाज के नाम पर बच्चा घर से भाग जाता है क्योंकि पढ़ाई के लिए उन्हें काशी जाना होता है। ऐसी मान्यता है कुछ देर बाद लोग जाते हैं और शादी के नाम पर उसे वापस लेकर आते हैं।
जनेऊ संस्कार के नियम
अब जान लेते हैं जनेऊ संस्कार पूजा करते समय किन नियमों का पालन करना चाहिए।
- जनेऊ संस्कार के दिन यज्ञ का आयोजन अवश्य करवाएं।
- यज्ञ में बालक अपने परिवार के लोगों के साथ बैठे।
- लड़के को बिना सिला हुआ कपड़े या धोती पहनाएँ और हाथ में डंडा अवश्य दें। गले में पीला वस्त्र और पैरों में खड़ाऊअवश्य धारण करवाएं।
- मुंडन के दौरान एक ही चोटी छोड़ी जानी चाहिए।
- जनेऊ पीले रंग का होना चाहिए।
- कई लोगों के मत के अनुसार ब्राह्मणों के लिए जनेऊ संस्कार की आयु 8 वर्ष होती है, छत्रिय के लिए 11 वर्षों होती है और वैश्य की आयु 12 वर्ष होती है।
जनेऊ धारण करने की प्रक्रिया और उपनयन मुहूर्त 2024 के बारे में यदि आप व्यक्तिगत रूप से जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको किसी विद्वान और जानकार पंडित से परामर्श करने और मुहूर्त के बारे में जानकारी हासिल करने की सलाह दी जाती है।
यज्ञोपवीत - जनेऊ धारण करने के लाभ
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जनेऊ धारण करने या यज्ञोपवीतम करने से क्या कुछ लाभ होते हैं आइए अब इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर लेते हैं।
- कहा जाता है गायत्री मंत्र कंपन से रक्षा करने और व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने में मददगार साबित होता है।
- इसके अलावा जनेऊ संस्कार बालक के जीवन में शक्ति और स्थिरता प्रदान करता है।
- ऐसे बालक बुद्धिमान और वेद पुराण पढ़ने वाले होते हैं।
- साथ ही उपनयन मुहूर्त लड़कों को बुरी और नकारात्मक ऊर्जा से भी बचाता है।
जनेऊ से जुड़े इन नियमों का अवश्य करें पालन
- मल मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को अपने दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ धोने के बाद ही इसे कान से उतारना होता है।
- अगर जनेऊ का कोई भी तार टूट जाए तो इसे बदल देना चाहिए।
- जनेऊ पहनने के बाद तभी उतारना चाहिए जब आप नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं।
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हम आशा करते हैं कि वर्ष 2024 आपके लिए शुभ और मंगलमय हो। Omasttro की ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!