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महाशिवरात्रि 8 मार्च, 2024 की तारीख व मुहूर्त

 8 मार्च, 2024
(शुक्रवार)
महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि मुहूर्त 

निशीथ काल पूजा मुहूर्त :24:07:06 से 24:55:52 तकअवधि :0 घंटे 48 मिनट 

महाशिवरात्री पारणा मुहूर्त :06:38:20 से 15:30:10 तक 9, मार्च को

आइए जानते हैं कि 2024 में महाशिवरात्रि कब है व महाशिवरात्रि 2024 की तारीख व मुहूर्त। महाशिवरात्रि हिन्दुओं के सबसे बड़े पर्वों में से एक है। दक्षिण भारतीय पंचांग (अमावस्यान्त पंचांग) के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यह पर्व मनाया जाता है। वहीं उत्तर भारतीय पंचांग (पूर्णिमान्त पंचांग) के मुताबिक़ फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का आयोजन होता है। पूर्णिमान्त व अमावस्यान्त दोनों ही पंचांगों के अनुसार महाशिवरात्रि एक ही दिन पड़ती है, इसलिए अंग्रेज़ी कैलेंडर के हिसाब से पर्व की तारीख़ वही रहती है। इस दिन शिव-भक्त मंदिरों में शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाकर पूजा, व्रत तथा रात्रि-जागरण करते हैं।





महाशिवरात्रि व्रत का शास्त्रोक्त नियम
महाशिवरात्रि व्रत कब मनाया जाए, इसके लिए शास्त्रों के अनुसार निम्न नियम तय किए गए हैं -


   1.   चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो, तो उसी दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं। रात्रि का आठवाँ मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है। सरल शब्दों में कहें तो जब चतुर्दशी तिथि शुरू हो और रात का आठवाँ मुहूर्त चतुर्दशी तिथि में ही पड़ रहा हो, तो उसी दिन शिवरात्रि मनानी चाहिए।


   2.   चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथकाल के पहले हिस्से को छुए और पहले दिन पूरे निशीथ को व्याप्त करे, तो पहले दिन ही महाशिवरात्रि का आयोजन किया जाता है।


   3.   उपर्युक्त दो स्थितियों को छोड़कर बाक़ी हर स्थिति में व्रत अगले दिन ही किया जाता है।


शिवरात्रि व्रत की पूजा-विधि

!! 8 मार्च 2024 महाशिवरात्रि पूजन मुहूर्त !!

 

8 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन शिव जी की पूजा का समय शाम के समय 06 बजकर 25 मिनट से 09 बजकर 28 मिनट तक है। इसके अलावा चार प्रहर का मुहूर्त इस प्रकार है-

महाशिवरात्रि 2024 चार प्रहर मुहूर्त

रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - शाम 06 बजकर 25 मिनट से रात 09 बजकर 28 मिनट तक

रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - रात 09 बजकर 28 मिनट से 9 मार्च को रात 12 बजकर 31 मिनट तक

रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - रात 12 बजकर 31 मिनट से प्रातः 03 बजकर 34 मिनट तक

रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - प्रात: 03.34 से प्रात: 06:37

 

निशिता काल मुहूर्त - रात में 12 बजकर 07 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक (9 मार्च 2024)

व्रत पारण समय - सुबह 06 बजकर 37 मिनट से दोपहर 03 बजकर 28 मिनट तक (9 मार्च 2024)

 

 

!! शिव पुराण के अनुसार पूजा का विधान !!

 

संकल्प -:

देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोऽस्तु ते। कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव॥

प्रभावाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति। तव कामाद्याः शत्रवोमां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि॥

 

!! प्रथम प्रहर पूजा समय - शाम 06 बजकर 25 मिनट से रात 09 बजकर 28 मिनट तक !!

 

प्रथम प्रहर में पार्थिव या शिवलिंग की स्थापना करके अनेक सुन्दर उपचारों द्वारा उत्तम भक्ति भाव से पूजा करें. पहले गन्ध, पुष्प आदि पांच द्रव्यों द्वारा सदा महादेव जी की पूजा करनी चाहिए. उस उस द्रव्य से सम्बन्ध रखने वाले मन्त्र का उच्चारण करके पृथक-पृथक वह द्रव्य समर्पित करे. इस प्रकार द्रव्य समर्पण के पश्चात् भगवान शिव को जलधारा अर्पित करें. विद्वान् पुरुष चढ़े हुए द्रव्यों को जलधारा से ही उतारे. जलधारा के साथ-साथ एक सौ आठ मन्त्र का जप करके वहां निर्गुण सगुण रूप शिव का पूजन करे. गुरु से प्राप्त हुए मन्त्र द्वारा भगवान शिव की पूजा करे. अन्यथा नाम मन्त्र द्वारा सदाशिव का पूजन करना चाहिए. चावल और काले तिलों से से पूजा करनी चाहिए. कमल और कनेर के फूल चढ़ाने चाहिये.

 

आठ नाम-मन्त्रों द्वारा शंकर जी को पुष्प समर्पित करे. वे आठ नाम इस प्रकार हैं-

(भवाय नमः , शर्वाय नमः , रुद्राय नमः, पशुपताय नमः , उग्राय नमः , महानाय नमः , भीमाय नमः और ईशानाय नमः)

 इत्यादि नाम मन्त्रों द्वारा शिव का पूजन करे. पुष्प-समर्पण के पश्चात् धूप, दीप और नैवेद्य निवेदन करे. पहले प्रहर में विद्वान् पुरुष नैवेद्य के लिए पकवान बनवा ले. फिर श्रीफल युक्त विशेषार्घ्य देकर ताम्बूल समर्पित करे. तदनन्तर नमस्कार और ध्यान करके गुरु के दिए हुए मन्त्र का जप करे. पंचाक्षर (नमः शिवाय) मन्त्र के जप से भगवान शंकर को संतुष्ट करे, इसके बाद अपनी शक्ति के अनुसार अनुष्ठान सहित 5 ब्राह्मणों को भोजन कराने का संकल्प करे. फिर जबतक पहला प्रहर पूरा न हो जाय, तबतक महान उत्सव चलता रहे.

 

 

!! द्वितीय प्रहर पूजा समय - रात 09 बजकर 28 मिनट से 9 मार्च को रात 12 बजकर 31 मिनट तक !!

 

दूसरा प्रहर आरम्भ होने पर पुनः पूजन के लिए संकल्प करे. अथवा एक ही समय चारों प्रहरों के लिये संकल्प करके पहले प्रहरकी भांति पूजा करता रहे. पहले पूर्वोक्त द्रव्यों से पूजन करके फिर जलधारा समर्पित करें. प्रथम प्रहर की अपेक्षा दोगुने मन्त्रों का जप करके शिव की पूजा करे. पूर्वोक्त तिल, जौ तथा कमल पुष्पों से शिव की अर्चना करे. विशेषतः बिल्वपत्रों से परमेश्वर शिव का पूजन करना चाहिए. दूसरे प्रहर में बिजौरा नींबू के साथ अर्घ्य देकर खीर का नैवेद्य निवेदन करे. इसमें पहले की अपेक्षा मन्त्रों की दोगुनी आवृत्ति करनी चाहिए.फिर वेद पाठी ब्राह्मणों को भोजन कराने का संकल्प करे. शेष नमः शिवाय का जप पहले की ही भांति तबतक करता रहे, जबतक दूसरा प्रहर पूरा न हो जाए.

 

!! तृतीय प्रहर पूजा समय - रात 12 बजकर 31 मिनट से प्रातः 03 बजकर 34 मिनट तक !!

 

तीसरे प्रहर के आने पर पूजन पहले के समान ही करे; किंतु जौ के स्थान में गेहूं का उपयोग करे और आक के फूल चढ़ाए. उसके बाद विभिन्न प्रकार के धूप एवं दीप देकर पूए का नैवेद्य भोग लगाए. उसके साथ भांति-भांति के शाक भी अर्पित करे. इस प्रकार पूजन करके कपूर से आरती उतारे. अनार के फल के साथ अर्घ्य दे और दूसरे प्रहर की अपेक्षा दोगुना शेष नमः शिवाय का जप मन्त्र जप करे. तदनन्तर दक्षिणा सहित ब्राह्मण-भोजन का संकल्प करे और तीसरे प्रहर के पूरे होने तक पूर्ववत् उत्सव करता रहे.

 

!! रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - प्रात: 03.34 से प्रात: 06:37 !!

 

चौथा प्रहर आने पर तीसरे प्रहर की पूजा का विसर्जन कर दे. पुनः आवाहन आदि करके विधिवत पूजा करे. उड़द, कंगनी, मूंग, सप्तधान्य, शंखी पुष्प तथा बिल्वपत्रों से परमेश्वर शंकर का पूजन करें. उस प्रहर में भांति-भांति की मिठाइयों का नैवेद्य लगाये अथवा उड़द के बड़े आदि बनाकर उनके द्वारा सदाशिव को संतुष्ट करे. केले के फल के साथ अथवा अन्य विविध फलों के साथ शिव को अर्घ्य दे. तीसरे प्रहर की अपेक्षा शेष नमः शिवाय का जप मन्त्र जप करे और यथाशक्ति ब्राह्मण-भोजन का संकल्प करे. गीत, वाद्य तथा नृत्य से शिव की आराधना पूर्वक समय बिताए.

 

 

 

Acharya Omprakash Trivedi

Director

Omasttro

   1.   मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए। अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया जाना चाहिए।


   2.   शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप इस दिन करना चाहिए। साथ ही महाशिवरात्री के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है।


   3.   शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। हालाँकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।


ज्योतिष के दृष्टिकोण से शिवरात्रि पर्व

चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ अर्थात स्वयं शिव ही हैं। इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है। गणित ज्योतिष के आंकलन के हिसाब से महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं और ऋतु-परिवर्तन भी चल रहा होता है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमज़ोर स्थिति में आ जाते हैं। चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है -- अतः शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्र सबल होता है, जो मन का कारक है। दूसरे शब्दों में कहें तो शिव की आराधना इच्छा-शक्ति को मज़बूत करती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार करती है।


महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा

शिवरात्रि को लेकर बहुत सारी कथाएँ प्रचलित हैं। विवरण मिलता है कि भगवती पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।


वहीं गरुड़ पुराण में इस दिन के महत्व को लेकर एक अन्य कथा कही गई है, जिसके अनुसार इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह थककर भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उनपर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरीं। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया; जिसे उठाने के लिए वह शिव लिंग के सामने नीचे को झुका। इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया।


जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा।


अगर महाशिवरात्रि से जुड़ा आपका कोई प्रश्न है या आप इस व्रत से जुड़ी कुछ और जानकारी चाहते हैं, तो कृपया नीचे टिप्पणी कीजिए।



Omasttro  की ओर से आपको और आपके परिजनों को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।




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