माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन होती है। देवी के इस रूप को माता पार्वती का अविवाहित रूप माना जाता है। ब्रह्मचारिणी संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ, ब्रह्म के समान आचरण करने वाली है। इन्हें कठोर तपस्या करने के कारण तपश्चारिणी भी कहा जाता है।
माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
माता ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र में सुशोभित हैं, उनके दाहिने हाथ में जप माला और बाएँ हाथ में कमण्डल है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। साथ ही देवी प्रेेम स्वरूप भी हैं।
पौराणिक मान्यताएँ
मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की, जिसके बाद उनके माता-पिता उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश करने लगे। हालाँकि इन सबके बावजूद देवी ने कामुक गतिविधियों के स्वामी भगवान कामदेव से मदद की गुहार लगाई। ऐसा कहा जाता है कि कामदेव ने शिव पर कामवासना का तीर छोड़ा और उस तीर ने शिव की ध्यानावस्था में खलल उत्पन्न कर दिया, जिससे भगवान आगबबूला हो गए और उन्होंने स्वयं को जला दिया।
कहानी यही ख़त्म नहीं होती है। उसके बाद पार्वती ने शिव की तरह जीना आरंभ कर दिया। देवी पहाड़ पर गईं और वहाँ उन्होंने कई वर्षों तक घोर तपस्या किया जिसके कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। इस कठोर तपस्या से देवी ने भगवान शंकर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इसके बाद भगवान शिव अपना रूप बदलकर पार्वती के पास गए और अपनी बुराई की, लेकिन देवी ने उनकी एक न सुनी। अंत में शिव जी ने उन्हें अपनाया और विवाह किया।
ज्योतिषीय संदर्भ
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥
परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्त्रोत
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
कवच मंत्र
त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी॥
उपरोक्त जानकारियों के साथ हम उम्मीद करते हैं कि नवरात्रि का दूसरा दिन आपके लिए विशेष होगा और देवी ब्रह्मचारिणी की कृपा आपको प्राप्त होगी।
माँ का नाम ब्रह्मचारिणी क्यों पड़ा?
माँ दुर्गा ने पर्वतराज के घर उनकी पुत्री यानि माता पार्वती के रूप में जन्म लिया था और महर्षि नारद के कहने पर शिव जी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या की थी। इस कठोर तपस्या के दौरान उन्होंने कई वर्षों तक बिना अन्न-जल ग्रहण किये हुए बिताया था, जिसके चलते उनका नाम तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी पड़ा। ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ होता है आचरण करने वाली। इसीलिए ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।
ऐसा है माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
देवी ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप हैं, जो पूरी तरह से ज्योतिर्मय है। मां ब्रह्मचारिणी हमेशा शांत और संसार के दुःख-सुख से विरक्त होकर तपस्या में लीन रहती हैं। कठोर तपस्या के कारण इनके चेहरे पर अद्भुत तेज और आभामंडल विद्यमान है। मां के एक हाथ में माला, तो दूसरे हाथ में कमंडल होता है। इन्हें साक्षात ब्रह्म का स्वरूप माना गया है और ये तपस्या की प्रतिमूर्ति भी हैं। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में करें इस मंत्र का जाप
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करने से जातक को विशेष फल की प्राप्ति होती है।
मंत्र: “ दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।”
अर्थ- इस मंत्र का यह तात्पर्य है कि, जिस देवी के एक हाथ में अक्ष माला है और जिन्होंने दूसरे हाथ में एक कमण्डल धारण किया है, ऐसी उत्तम ब्रह्मचारिणीरूपा मां दुर्गा अपनी कृपा मुझ पर बरसाएं।
पीले वस्त्र पहनकर करें माता ब्रह्मचारिणी की पूजा
नवरात्रि के दूसरे दिन खासतौर पर माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय जातक को पीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। ब्रह्मचारिणी देवी माँ सरस्वती का रूप मानी जाती हैं, इसके अलावा शास्त्रों में इस दिन के बारे में यह भी कहा गया है कि महादेव को पाने के लिए जब माता पार्वती ने ब्रह्मचारिणी देवी का रूप धारण किया था, तब उन्होंने उस समय पीले रंग के ही वस्त्र पहने थे।
ऐसे करे पूजा
- नवरात्रि के द्वितीया यानि दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर लें। माँ की पूजा के लिए आप पीले या सफेद वस्त्र ही धारण करें।
- उसके बाद शांत और सच्चे मन से माता ब्रह्मचारिणी की पूजा शुरू करें।
- पूजा में सबसे पहले माता को दूध, दही, घी, इत्र, और शहद आदि से स्नान कराएं।
- इसके बाद माता को फल, फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर, चंदन, मिश्री, पान, सुपारी लौंग, ईलायची इत्यादि अर्पित कर दें।
- देवी ब्रह्मचारिणी को दूध और दूध से बने हुए मिष्टान बेहद प्रिय हैं ,इसीलिए माता को दूध और दूध से बनी चीज़ का भोग अवश्य लगाएँ। साथ ही मां को सफेद वस्तुएँ जैसे- मिसरी, शक्कर या पंचामृत भी ज़रूर अर्पित करें।
- अब हाथ में एक लाल फूल लेकर मां ब्रह्मचारिणी के लिए “ॐ ऐं नमः” या फिर ऊपर बताये मंत्र का जाप करें।
- इसके बाद देवी ब्रह्मचारिणी की आरती करें।
- ध्यान रहे यदि आपने नौ दिनों का व्रत रखा है, तो पूजा के बाद केवल एक समय ही फलहार करें।
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा से होने वाले लाभ
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि में दूसरे दिन की जाती है। इनके आशीर्वाद से जातक जीवन में सिद्धि और विजय अवश्य प्राप्त करता है। जो भी व्यक्ति सच्चे मन से माता ब्रह्मचारिणी देवी की आराधना करता है, उस इंसान की इच्छाशक्ति और उसके अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है। ब्रह्मचारिणी देवी अपने भक्तों को मुश्किल परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती हैं और, जीवन के सफलता के सभी मार्ग को खोलती हैं। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार माता ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह का नियंत्रण करती हैं। इसीलिए जिस भी व्यक्ति पर मंगल ग्रह का अशुभ प्रभाव हो वह ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा कर के मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव भी कम कर सकता है।
मां ब्रह्मचारिणी की पवित्र कथा
मां ब्रह्मचारिणी ने का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था। उन्होंने ने भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन उनके माता-पिता उन्हें हतोत्साहित करने लगे और कहा कि शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तुम्हें कठिन तप करना होगा। देवी ब्रह्मचारिणी ने नारद जी से सलाह मांगी और उनके सुझाव अनुसार भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या करने लगी। उनकी तपस्या इतनी कठिन थी, जिसके कारण माता को ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया।
पुराणों के अनुसार माता ब्रह्मचारिणी ने एक हजार साल तक बिना अन्न ग्रहण किए केवल फल आदि खाकर बिताया और सौ सालों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। उन्होंने कई दिनों तक कठिन व्रत रखे और वर्षा और धूप के घोर कष्ट को सहा। टूटे हुए बिल्व पत्र खाकर भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। कई हजार साल तक बिना जल और भोजन के रह वे कर तपस्या करती रहीं।
इस कठिन तपस्या के चलते देवी का शरीर एकदम कमज़ोर हो गया। देवता, ऋषि-मुनि सभी ने देवी ब्रह्मचारिणी की तपस्या की सराहना की और कहा- कि हे देवी आज तक किसी ने भी इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की है। इसीलिए आपकी मनोकामना ज़रूर परिपूर्ण होगी और भगवान शिव जी आपको पति रूप में अवश्य प्राप्त होंगे। अंत में माता की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें अपनाया और विवाह किया।
नवरात्रि की ढेरों शुभकामनाएँ!