Om Asttro / ॐ एस्ट्रो

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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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अजा एकादशी व्रत मुहूर्त  

अजा एकादशी पारणा मुहूर्त :
06:03:43 से 08:33:18 तक 11, सितंबर को
अवधि :
2 घंटे 29 मिनट
 
 
 

अजा एकादशी भगवान विष्णु जी को अति प्रिय है इसलिए इस एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु और साथ में माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसे अन्नदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

अजा एकादशी व्रत एवं पूजा विधि

●  एकादशी के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नान ध्यान करें
●  अब भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाकर, फलों तथा फूलों से भक्तिपूर्वक पूजा करें
●  पूजा के बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें
●  दिन में निराहार एवं निर्जल व्रत का पालन करें
●  इस व्रत में रात्रि जागरण करें
●  द्वादशी तिथि के दिन प्रातः ब्राह्मण को भोजन कराएं व दान-दक्षिणा दें
●  द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद उन्हें दान-दक्षिणा दें
●  फिर स्वयं भोजन करें

अजा एकादशी का महत्व

हिन्दू धार्मिक शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जो भक्त विधि विधान से इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इसके अलावा अजा एकादशी की कथा को सुनने मात्र से भक्तजनों को अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

अजा एकादशी व्रत कथा

ऐसा कहा जाता है कि राजा हरिश्चन्द्र अपनी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। एक बार देवताओं ने इनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई। राजा ने स्वप्न में देखा कि ऋषि विश्वामित्र को उन्होंने अपना राजपाट दान कर दिया है। जब अगले दिन राजा हरिश्चन्द्र विश्वामित्र को अपना समस्त राज-पाठ को सौंप कर जाने लगे तो विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र से दक्षिणा स्वरुप 500 स्वर्ण मुद्राएं दान में मांगी। राजा ने उनसे कहा कि पांच सौ क्या, आप जितनी चाहे स्वर्ण मुद्राएं ले लीजिए। इस पर विश्वामित्र हँसने लगे और राजा को याद दिलाया कि राजपाट के साथ राज्य का कोष भी वे दान कर चुके हैं और दान की हुई वस्तु को दोबारा दान नहीं की जाती। तब राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेचकर स्वर्ण मुद्राएं हासिल की, लेकिन वो भी पांच सौ नहीं हो पाईं। राजा हरिश्चंद्र ने खुद को भी बेच डाला और सोने की सभी मुद्राएं विश्वामित्र को दान में दे दीं। राजा हरिश्चंद्र ने खुद को जहां बेचा था वह श्मशान का चांडाल था। चांडाल ने राजा हरिश्चन्द्र को श्मशान भूमि में दाह संस्कार के लिए कर वसूली का काम दे दिया।

एक दिन राजा हरिश्चंद्र ने एकादशी का व्रत रखा हुआ था। आधी रात का समय था और राजा श्मशान के द्वार पर पहरा दे रहे थे। बेहद अंधेरा था, इतने में ही वहां एक लाचार और निर्धन स्त्री बिलखते हुए पहुंची जिसके हाथ में अपने पुत्र का शव था। राजा हरिश्चन्द्र ने अपने धर्म का पालन करते हुए पत्नी से भी पुत्र के दाह संस्कार हेतु कर मांगा। पत्नी के पास कर चुकाने के लिए धन नहीं था इसलिए उसने अपनी साड़ी का आधा हिस्सा फाड़कर राजा का दे दिया। उसी समय भगवान प्रकट हुए और उन्होंने राजा से कहा, “हे हरिश्चंद्र, इस संसार में तुमने सत्य को जीवन में धारण करने का उच्चतम आदर्श स्थापित किया है। तुम्हारी कर्त्तव्यनिष्ठा महान है, तुम इतिहास में अमर रहोगे।” इतने में ही राजा का बेटा रोहिताश जीवित हो उठा। ईश्वर की अनुमति से विश्वामित्र ने भी हरिश्चंद्र का राजपाट उन्हें वापस लौटा दिया।

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