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अथर्ववेद हिन्दू धर्म के पवित्र चार वेदो में से चौथे क्रम का वेद है। अथर्ववेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता है, इसमें देवताओ की स्तुति, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं। जिस राजा के राज्य में अथर्ववेद का विद्वान रहता हो उस राज्य में शांति स्थापना में लीन रहता है। वह राज्य उपद्रव रहित रहता है, और उन्नति के पथ पर चलता हैं।

भगवान ने सब से पहले महर्षि अंगिरा को अथर्ववेद का ज्ञान दिया था, और महर्षि अंगिरा ने अथर्ववेद का ज्ञान ब्रह्मा को दिया।

यस्य राज्ञो जनपदे अथर्वा शान्तिपारगः।
निवसत्यपि तद्राराष्ट्रं वर्धतेनिरुपद्रवम्।।
‘ये त्रिषप्ताः परियन्ति’ अथर्ववेद का प्रथम मंत्र है |

 

 

अथर्ववेद का परिचय :-

अथर्ववेद में कुल 20 काण्ड, 730 सूक्त और 6000 मन्त्र होने का मिलता है, परंतु किसी-किसी में 5987 या 5977 मन्त्र ही मिलते हैं। और लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद के हैं। अथर्ववेद का 20 काण्ड ऋग्वेद की रचना हे। ऋषिमुनि और विद्वानों के अनुसार 19 वा काण्ड और 20 वा काण्ड परवर्ती है।
अथर्ववेद में अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन मिलता है, इसलिए आयुर्वेद में विश्वास किया जाता था। अथर्ववेद में विवाहित जीवन में पति-पत्नी के कर्त्तव्यों तथा विवाह के नियमों, मान-मर्यादाओं का श्रेष्ठ निर्णय करता है। अथर्ववेद में ब्रह्म भक्ति के बहोत सारे मन्त्र दिए गए है।

 

अथर्ववेद के अधिक महत्त्व विषय :-

ब्रह्मज्ञान,
औषधि प्रयोग,
रोग निवारण,
जन्त्र-तन्त्र,
टोना-टोटका आदि।

 

अथर्ववेद का रचना काल :-

वैदिक पुरोहित वर्ग यज्ञों व देवों को अनदेखा करने के कारण अथर्ववेद को अन्य तीनो वेद के बराबर नहीं मानते थे। अथर्ववेद को यह स्थान बाद में मिला। अथर्ववेद की भाषा ऋग्वेद की भाषा के सामने स्पष्ट रूप से बाद की ही है, और ब्राह्मण ग्रंथों से भी मिलती है। इसलिये अथर्ववेद को अनुमानित मात्रा से 1000 ई.पू. का माना जा सकता है। अथर्ववेद की रचना ‘अथवर्ण‘ तथा ‘आंगिरस‘ ऋषियों द्वारा की गई है। इसीलिए अथर्ववेद को ‘अथर्वांगिरस वेद’ भी कहते है। अथर्ववेद को इसके अलावा जो निचे दिए गए नामो से भी जाना जाता है।

1 अथर्वांगिरस,
2 ब्रह्मवेद,
3 भैषज्य वेद और
4 महीवेद

 

अथर्ववेद के विषय में कुछ मुख्य तथ्य :-

अथर्ववेद के बारे में ऐसा माना जाता हे की भाषा और स्वरूप के आधार पर अथर्ववेद की रचना तीनो वेदो के बादमे हुई है।
2 ॠग्वेद, यजुर्वेदसामवेद और अथर्ववेद इन वेदो की वैदिक धर्म की नज़र में बड़ा ही महत्व है।
3 अथर्ववेद में अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन मिलता है, इसलिए आयुर्वेद में विश्वास किया जाता है।
4 अथर्ववेद में विवाहित जीवन में पति-पत्नी के कर्त्तव्यों तथा विवाह के नियमों, मान-मर्यादाओं का श्रेष्ठ निर्णय करता है।
5 अथर्ववेद में ब्रह्म भक्ति के बहोत सारे मन्त्र दिए गए है।

 

अथर्ववेद की शाखायें :-

अथर्ववदे में कुरू देश को समृद्ध होने की अछि व्याख्या मिलता है। अथर्ववेद में श्रेष्ठ विचारधारा और अधम विचारधाराओं का संयोग है। अथर्ववेद का उत्तर वैदिक काल में बहोत ही विशेष महत्त्व रहा है। इसी वेद से शान्ति और शक्तिवर्द्धक कर्मा का सम्पादन भी मिलता है। अथर्ववेद में सब से ज्यादा उल्लेख आयुर्वदे विज्ञानं का ही मिलता है। इसके बाद ‘जीवाणु विज्ञान’ तथा ‘औषधियों’ आदि के विषय में जानकारी अथर्ववेद से ही प्राप्त होती है। सर्वप्रथम अथर्ववेद के भूमि सूक्त द्वारा राष्ट्रीय भावना का भली–भाँति ज्ञात हुआ था। इस वेद की दो अन्य शाखायें हैं, जो निचे दी गई है।

1 पिप्पलाद
2 शौनक

अथर्ववेद में कुल 20 काण्ड, 730 सूक्त और गद्य भाग हैं। जिनका व्याख्या निम्न दिखाई गई हैः

1 अथर्ववेद में पहले काण्ड से सातवें काण्ड तक तंत्र-मंत्र संबंधीत प्राथनाएं हैं। लम्बी आयुष्य के लिए मंत्र, उपचार, श्राप, प्रेम मंत्र, प्रार्थना, घनिष्ठता, वेद अध्ययन में सफलता, पाप का प्रायश्चित आदि मन्त्र दिए गए है।

2 आठवें काण्ड से बारहवें काण्ड में ब्रह्मांडीय सूक्त भी शामिल हैं, जो ऋग्वेद के सूक्तों को ही प्रवाहित रखते हैं। उपनिषदों के बहुत कठिन स्मरण कीओर ले जाते हैं।
3 तरह काण्ड से बिसवे काण्ड में ब्रह्मांडीय सिद्धांत, विवाह प्राथनाएं, अंतिम संस्कार के मंत्र, व्रत्य का महिमामंडन, अनुष्ठानिक मंत्र और अतिथि सत्कार के मह्त्व का वर्णन किया गया है।

 

अथर्ववेद की विशेषताएँ :-

1 अथर्ववेद में ऋग्वेद और सामवेद से भी मन्त्र लिए गए है।
2 अथर्ववेद मन्त्र-तन्त्र सम्बन्धित राक्षस, पिशाच, आदि भयानक शक्तियाँ का महत्वपूंर्ण विषय है।
3 अथर्ववेद में ऋग्वेद के उच्च कोटि के देवताओं को भिन्न स्थान प्राप्त है।
4 अथर्ववेद में स्पष्ट है कि आर्यों में प्रकृति की पूजा का तिरस्कार किया गया था, और प्रेत-आत्माओं, तन्त्र-मन्त्र में विश्वास किया जाने लगा था।

 

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