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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
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     राक्षसेंद्र रावण नर्मदा के जिस तट पर शिवजी की पुष्पों से पूजा कर रहा था, वहां से कुछ ही दूर हटकर माहिष्मती नगरी का राजा महाविजयी अर्जुन अपनी बहुत-सी रानियों के साथ जल-क्रीडा कर रहा था | उसकी सहस्त्र भुजाएं थी, जिनके परीक्षणार्थ नर्मदा के घाट के जल को रोक रहा था | तब उसकी भुजाओं से अवरुद्ध नर्मदा का जल समुद्र के द्वारा के समान उमड़कर जिधर रावण बैठा पूजा कर रहा था उस ओर विपरीत गति से प्रवाहित होने लगा | 
 
     इससे रावण द्वारा शिव को समर्पित समस्त पुष्प प्रवाहित हो गए | रावण ने देखा, नर्मदा का जल समुद्र के द्वार के समान पश्चिम की ओर से बढकर पूर्व की ओर प्रवाहित हो रहा हैं | इसकी पूजा भी अभी समाप्त न हो पाई थी, कि आधे में ही जल की बढ़ के कारण उसे अपनी पूजा समाप्त कर देनी पड़ी | वह नर्मदा की ओर घूमकर देखने लगा | 
 
     देखा तो जल की धारा पश्चिम से पूर्व की ओर अग्रसर हैं और अल्प समय में ही नदी शान्तपथ से पूर्ववत प्रवाहित होने लगी | यह देख रावण मुख से कुछ न बोला, किन्तु अपने दाहिने हाथ की अंगुली से शुक और सारण को नदी की बाढ़ का कारण ज्ञात करने के लिए संकेत किया | 
 
     वे दोनों भाई पश्चिम की ओर आकाश में उड़े | उड़ते-उड़ते जब आधा योजन निकल गए तब देखा कि, एक पुरुष स्त्रियों के साथ जलविहार कर रहा हैं, तो साल वृक्ष के समान परमोन्नत हैं, जिसके केश खुले हुए हैं और नेत्र मदात्य से लाल हो रहे हैं और वह अति मद्यपान से मतवाला हो रहा हैं तथा जैसे अपने सहस्रों चरणों से सुमेरु पर्वत पृथ्वी को दबे हुए हो, ऐसे ही अर्जुन की शास्त्रों भुजाओं से नदी का जल अवरुद्ध हैं | 
 
     वह बलवान सहस्रों श्रेष्ठ स्त्रियों से समावृत्त हैं | शुक और सारण उस अद्भुत दृश्य को देखकर शीघ्र ही लौटे और रावण से सब देखा हुआ वृत्तान्त का | शुक और सारण के इस प्रकार कहने पर रावण बोल उठा-‘वाही अर्जुन हैं |’ तदनंतर रावण अपने मंत्रियों सहित युद्ध की लालसा से उधर की ओर चला और शीघ्र ही वहां जा पहुंचा, जहां अर्जुन जलक्रीड़ा कर रहा था | 
 
     वह अञ्जन के समान काला और बड़ा ही बलवान था | वहां पहुंच कर उसने अर्जुन को स्त्रियों से आवृत्त जल विहार करते हुए वैसी देखा जैसे बहुत-सी हथिनियों के साथ कोई गजेन्द्र जल विहार करता हो | राजा अर्जुन को देखते ही राक्षसराज रावण के नेत्र क्रोध से लाल हो गए | उसने अर्जुन के मंत्रियों से गम्भीर वाणी में यह कहा-‘मंत्रियों! तुम लोग दैत्यराज अर्जुन से कहो कि, तुमसे युद्ध करने के लिए रावण आया हैं |’
 
     मंत्रियों ने कहा-‘इस समय महाराज स्त्रियों के मध्य में हैं और ऐसी स्थिति में आप युद्ध करना चाहते हैं ? आज के दिन क्षमा कीजिए और रात भर ठहर जाइए | कल अर्जुन से मिलकर युद्ध कर लीजिएगा | और यदि आपको युद्ध करने की बड़ी शीघ्रता हो तो हम सबको संग्राम में मारकर यमराज के पास पहुंचा जाइए |’ यह सुन रावण के मंत्रियों ने अर्जुन के कितने मंत्रियों को मार डाला और कितने ही को भूखे होने के कारण खा डाला | 
 
     उभय मंत्रियों के युद्ध से नर्मदा तट पर बड़ा कोलाहल मच गया | अर्जुन के पक्ष के योद्धा रावण के पक्ष वालों पर और रावण के पक्ष वाले वीर तथा मंत्रिगण अर्जुन के पक्ष वालों पर बाण, तोमर, भले, त्रिशूल और वज्र आदिक अस्त्र शस्त्रों का प्रहार करने लगे | जब यह समाचार वीर राजा अर्जुन को मिला तो वह अपने साथ क्रीडित स्त्रियों से बोला-‘तुम सब किञ्जित भी भयभीत न होना |’ 
 
     ऐसा कह उन सबको जल से बाहर निकला और क्रुद्ध विकृत नेत्रों से अपनी गदा ले तीव्रता से राक्षसों पर टूट पड़ा | परन्तु तत्क्षण ही विन्ध्य से सदृश अचल प्रहस्त हाथ में मूसल ले उसके समक्ष जा पहुंचा | उसने उस लौह जटिल मूसल से अर्जुन पर प्रहार किया | फिर यम-सी भीषण गर्जना की | किन्तु अस्त्रकुशल अर्जुन ने तनिक भी चिंता न की और अपनी गदा से उसके प्रहार को व्यर्थ कर दिया | 
 
      उस गदा घातों से प्रहस्त धराशायी हुआ | प्रहस्त को धराशायी हुआ देख मारीच, शुक, सारण महोदर और धूम्राक्ष युद्ध क्षेत्र से पलायन कर गए | यह देख स्वयं रावण ने वीर श्रेष्ठ अर्जुन पर आक्रमण किया | सहस्र भुजाधारी नरनाथ और बीज भुजाधारी निशाचरनाथ को रोमाञ्चकारी युद्ध होने लगा | दोनों ही सिंह के समान बली थे | 
 
     भयानक गर्जना कर रूद्र और यमराज के समान कुपित हो एक-दूसरे पर प्रहार करने लगे | उस समय उन गदा-प्रहारों को वे दोनों उसी प्रकार सहन करने लगे, जैसे पर्वतों ने भयंकर वज्राघातों को सहन कर लिया था | विद्युत की घोर गर्जन से जैसे दिशाएं गूंज उठती हैं, उसी प्रकार उनकी गदाओं के प्रहार से सभी दिशाएं प्रतिध्वनित हो रही थी | 
 
     इसी क्षण रावण ने कुपित होकर रावण के विशाल वक्ष:स्थल पर पूर्ण शक्ति से गदा का प्रहार किया | परन्तु रावण तो वर के प्रभाव से सुरक्षित था, अत: उसके वक्ष:स्थल से टकराकर उस गदा के दो खंड हो गए | तथापि अर्जुन के गदा प्रहार से रावण रक धनुष पीछे हट गया और रोता हुआ पृथ्वी पर बैठ गया | रावण को व्याकुल देखकर अर्जुन ने दौडकर उसे पकड़ लिया और अपने सहस्र करों के द्वारा उसे जबरन से बांध दिया | 
 
    रावण के बंध जाने पर सिद्ध, चारण और देवताओं ने ‘धन्य-धन्य’ कहा, अर्जुन के ऊपर पुष्पों की वर्षा की | फिर तो जैसे सहस्र लोचन इंद्र राजा बली को जीत अमरावती में आए थे, वैसे ही अर्जुन भी रावण को बांधे हुए अपनी माहिष्मतीपुरी में आया | 
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