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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
Pt.durgesh
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      इस प्रकार जब इंद्र पकड़ कर लंका में लाए गए, तब सब देवता ब्रह्माजी को आगे कर रावण के पास गए | वहां पहुंच ब्रह्माजी ने आकाश में स्थित हो, पुत्र और भ्राताओं सहित बैठे हुए रावण से कहा-वत्स रावण! मैं तेरे पुत्र की शूर वीरता से संतुष्ट हूं; क्योंकि वह तुमसे भी युद्ध में श्रेष्ठ हुआ हैं | इस प्रकार तुमने अपने पराक्रम से तीनों लोको पर विजय प्राप्त कर ली | 
 
     अत: मैं तुम दोनों ही पर प्रसन्न हूं | हे रावण! अब तेरा यह अतिबली पुत्र संसार में इन्द्रजीत नाम से विख्यात होगा | परन्तु हे महाबलाढ्य! अब तुम इंद्र को छोड़ दो | इसके स्थान म्,इ बोलो कि, तुम देवताओं से क्या चाहते हो ? इस महाविजयी इन्द्रजीत बोला-हे देव! यदि आप इंद्र को छुड़ाना चाहते हैं, तो इसके बदले मुझे अमरतत्व प्रदान कीजिए | 
 
    ब्रह्माजी ने कहा-हे वत्स! इस पृथ्वी का कोई भी प्राणी अमर नहीं हो सकता | मेघनाद ने कहा-अच्छा, अब मुझे यह वर दीजिए कि, मैं जब कभी शत्रु पर विजय पाने की इच्छा से संग्राम में उतरूं और मंत्रयुक्त अग्निदेव का पूजन करूं, उस समय अग्नि से मुझे ऐसा दिव्य रथ प्राप्त हो जाया करे कि, जिस पर बैठकर युद्ध करते हुए मुझे कोई मार न सके | हां, यदि मैं जप और हवन को पूर्ण किए बिना ही युद्ध करूं तब मेरी मृत्यु हो जाए | 
 
     इस पर ब्रह्माजी ने कहा-एवमस्तु! ऐसा ही होगा | फिर तो यह वर पाकर मेघनाद ने इंद्र को छोड़ दिया | सब देवता उनके साथ हो स्वर्ग को चले | उस समय इंद्र दीन से हो रहे थे | उनका देवोचित तेज लुप्त सा हो गया था और वे चिंतामग्न हो कुछ और ही सोच रहे थे | 
 
     तब उनकी मन: स्थिति को पहचानकर ब्रह्माजी ने कहा-देवराज! यह तुम्हारे पूर्व पापों का ही फल हैं | अब यह शोक क्या करते हो ? तुम्हे स्मरण हैं, तुमने उस उत्तम गुण-सम्पन्न मेरी उत्पत्ति की हुई सुंदरी अहल्या पर, जिसे मैंने धर्मात्मा महर्षि गौतम को अर्पण किया था-कैसा अत्याचार किया था, उस समय तुम्हे मेरा कुछ भी भय न रहा और तुमने उस निरीह मुनि पत्नी का बलात्कर किया | 
 
    मुनि ने उसे अदृश्य हो जाने का शाप दिया और तुम्हे भी शापित किया | तब अहल्या की प्रार्थना पर गौतम ने कहा कि, ‘इक्ष्वाकुवंश में एक तेजस्वी महारथी का अवतार होनी पर कि जिनका श्रीराम नाम होगा और जब वे तपोवन में आवेंगे तब उनके दर्शन से तू पुनः पवित्र हो मुझे प्राप्त होगी और तुम्हे कहा था कि ‘तू शत्रु के हाथ में पड़ेगा |’
 
     वाही तुम्हारा पाप उदय हुआ हैं | अब तुम वैष्णव यज्ञ कर उस पाप से निवृत्त होओ | तुम्हारा पुत्र जयंत युद्ध में मारा नहीं गया हैं | उसे उसका नाना अपने साथ लेकर समुद्र में प्रवेश कर गया हैं | इस समय वह उन्ही के पास विद्यमान हैं |’ ब्रह्माजी के वचन सुनकर देवराज ने स्वर्ग में जाकर वैष्णव यज्ञ किया और पुनः स्वर्ग का राज्य पालन राने लगे |
 
     हे राम! इन्द्रजीत इस प्रकार का बली था | अन्यों की तो बात ही क्या हैं उसने देवराज इंद्र को जीत लिया था | अगस्त्य मुनि का वचन सुन राम लक्ष्मण बड़े आश्चर्यचकित हुए | तब वानरों सहित राम के पास बैठे विभीषण ने भी कहा-हे महर्षे! अवश्य ही यह आश्चर्य की बात हैं, जिसे बहुत दिन पश्चात आज मैंने यह आपसे श्रवण किया | आपका यह कथन सर्वथा ही यथार्थ हैं | 
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