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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
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वेदवती द्वारा रावण को शाप

 
     हे राजन! अब महाबली रावण पृथ्वी पर विचरता हुआ एक दिन हिमालय के वन में जा पहुंचा | वहां उसने साक्षात देवकन्या के समान एक ऐसी कन्या देखी जो मृगचर्म धारण किए तपोनुष्ठान में रत थी | उसे देखते ही रावण कामदेव से पीड़ित हो गया और मुसका कर उसका परिचय पूछते हुए उसे विमोहित कर अपनी अभिलाषा तृप्त करना चाहा और कहा कि तेरी युवावस्था और सौंदर्य इस प्रकार के तप के योग्य नही हैं, तू अपने इस संकल्प को त्याग दे | फिर तू यह तो बतला कि, इतना कठिन तप किसलिए करती हैं ? 
 
     तू किसकी पुत्री हैं तेरा पति कौन हैं ? तब रावण के इस प्रकार पूछने पर उस यशस्विनी एवं तपस्विनी कन्या ने रावण का सविधि आतिथ्य करते हुए कहा कि ‘मैं ब्रह्मर्षि कुशध्वज की पुत्री हूँ | मेरा नाम वेदवती हैं | मेरे विवाह के लिए कितने ही देवता, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और नाग मेरे पिता से मिले और मुझसे ब्याह कर देने की प्रार्थना की, परन्तु मेरे पिता यह चाहते थे कि उनके जामात्र सुरेश्वर विष्णु हो, अन्य नहीं | इससे बलगर्वित दैत्येन्द्र शुम्भ ने उन्हें रात्रि में सोते समय मार डाला | 
 
     मेरी महाभागा माता उनकी शव के साथ सती हो गई | तबसे मैं अपने पिता की इच्छानुसार श्री विष्णु को ही अपना पति बनाने के लिए तप कर रही हूँ | जो सत्य बात थी, वह मैंने तुसे कह दी | उन पुरुषोत्तम के अतिरिक्त मेरा कोई अन्य पति नहीं हो सकता | हे रावण! मैंने तुमको जान लिया | तुम यहाँ से चले जाओ | मैं अपने तपोबल से त्रैलोक्य में जो कुछ होता हैं वह सब जानती हूँ | यह सुनकर कामबाण से पीड़ित रावण विमान से उतर पड़ा और अश्लीलतापूर्वक बकता हुआ उसके केशों को पकड़ कर उससे बर्बस अपनी कम-पिपाशा शांत करना चाहा तथा विष्णु की निंदा भी किया | 
 
     इस पर वेदवती ने क्रोध में भरकर अपने हाथ में जो इस समय खड्ग रूप हो गए थे-अपने उन बालों को काट डाला और अपने क्रोध से अग्नि प्रदीप्त कर रावण को भस्म करती हुई उस अग्नि में प्रवेश कर गई तथा यह कह गई कि पापात्मा! तेरा वध करने के लिए मैं पुनः उत्पन्न होउंगी | क्योंकि पापी पुरुष को मारना स्त्रियों के वश की बात नहीं हैं | 
 
     यदि मैं तुम्हे शाप दूं तो मेरी तपस्या क्षीण होंगी | यदि मैंने कुछ भी सुकृत किया हो तो उसके पुण्य से फिर किसी धर्मात्मा के गृह में अयोनिज जन्म धारण करूँ | ऐसा कह वेदवती उस धधकती चिता में कूद पड़ी | चिता के चरों और पुष्प छितरा उठे | हे प्रभो! वाही वेदवती जनक राजा के गृह में में कन्या रूप से उत्पन्न होकर तुम्हारी भार्या हुई हैं | हे महाबाहो! तुम भी वे ही सनातन विष्णु हो | 
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