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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हर माह में आने वाली एकादशी अपने आप में महत्वपूर्ण होती है, लेकिन सबसे बड़ी एकादशी ‘देवोत्थान एकादशी’ मानी जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को देवोत्थान एकादशी या देवउठनी एकादशी का पर्व मनाने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। विष्णु पुराण के अनुसार आषाढ़ की एकादशी को भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक भयंकर राक्षस को मारा और फिर भारी थकान के बाद सो गए। उसके चार महीने बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी पर भगवान विष्णु श्री हरि योग निद्रा से जग जाते हैं और प्रकृति में आनंद की वर्षा होती है। सनातन परंपरा में इस तिथि के बाद ही शादी-विवाह आदि मांगलिक कार्यक्रम प्रारम्भ होने लगते हैं। आइए जानते हैं देवोत्थान एकादशी 2022 का महत्व, व्रत के नियम, पौराणिक कथा, पूजन सामग्री, पूजन विधि और भी काफ़ी कुछ।

देवोत्थान एकादशी 2022 शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार देवउठनी एकादशी तिथि 03 नवंबर 2022 को शाम 07 बजकर 32 मिनट पर प्रारंभ होगी और इसका समापन 04 नवंबर 2022 को शाम 06 बजकर 10 मिनट पर होगा। व्रत 04 नवंबर शुक्रवार के दिन रखा जाएगा।

देवउठनी एकादशी व्रत पारण समय: 5 नवंबर 2022 को सुबह 06 बजकर 35 मिनट से सुबह 08 बजकर 47 मिनट तक।

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देवोत्थान एकादशी 2022 का महत्व

देव जागरण या उत्थान होने के कारण इसको देवोत्थान एकादशी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार महीने के लिए सो जाते हैं फिर कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इन 4 महीनों में देवशयन होने के कारण समस्त मांगलिक काम वर्जित होते हैं। जब देव जाग जाते हैं तभी कोई मांगलिक काम संपन्न हो पाता है। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। कहते हैं इससे एक हजार अश्वमेध यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। पौराणिक मान्यतानुसार, इस दिन तुलसी माता का विवाह करना बेहद शुभ माना जाता है। इससे घर में सकारात्मकता आती है। शहर में कई जगह तुलसी विवाह का आयोजन होता है।

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इस दिन तुलसी विवाह का महत्व

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह कराने का अत्याधिक महत्व है। इस दिन तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम का विवाह कराया जाता है। इसमें भी सामान्य विवाह की तरह तैयारियां की जाती हैं। चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए नारायण भगवान जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना तुलसी माता की ही सुनते हैं। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना। मान्यता है कि जिनकी कई कन्या नहीं होती है, उन्हें तुलसी विवाह अवश्य कराना चाहिए। इससे कन्यादान का पुण्य प्राप्त होता है।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से पूछती हैं कि हे प्रभु! आप या तो रात-दिन जगते ही हैं या फिर लाखों-करोड़ों सालों तक योग निद्रा में ही रहते हैं, आपके ऐसा करने से संसार के समस्त प्राणी उस दौरान कई परेशानियों का सामना करते हैं। ऐसे में आपसे अनुरोध है कि आप नियम से हर वर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय के लिए आराम करने का समय मिल जाएगा। लक्ष्मी जी की इस बात से भगवान नारायण प्रसन्न हो गए और उनकी बात पर राजी होते हो गए। नारायण जी ने कहा कि तुम्हारे कहने पर मैं हर साल चार महीने वर्षा ऋतु में विश्राम करने जाउंगा।

मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी और इस दौरान जो भी भक्त मेरी सेवा करेगा उसे मनोवांछित फल मिलेगा। भक्तों को लिए यह परम हितकारी होगी। जो भी विधि विधान से मेरी पूजा करेगा मैं उनके घर में मैं आपके साथ निवास करूंगा।

देवोत्थान एकादशी 2022: कैसे करें भगवान विष्णु की पूजा

  • देवोत्थान एकादशी के दिन सुबह उठकर घर की सफाई अच्छे करने के बाद स्नान करें।
  • फिर सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प करें।
  • इस दिन भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए और उनके मंत्रों का जाप करना चाहिए।
  • साफ वस्त्र धारण करके घर के आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं।
  • ओखली में गेरू से आकृति बनाकर फल व गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढक कर रख दें।
  • इस दिन रात में घरों के बाहर और पूजा स्थान पर दीये जरूर जलाएं।
  • रात में परिजनों के साथ मिलकर भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
  • इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए।
  • दिन भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान जरूर करवाना चाहिए।

देवोत्थान एकादशी के दिन ये उपाय करने से मिलेगा मनोवांछित फल

  • इस दिन भगवान विष्णु का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करें। मान्यता है कि ऐसा करने से श्री हरि प्रसन्न होते हैं तथा मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर आसपास किसी भी नदी में स्नान करें, ऐसा करने से हर पापों से मुक्ति मिल जाएगी। स्नान करने के बाद गायत्री मंत्र का जाप जरूर करें। इससे आपके स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
  • आर्थिक संकटों से छुटकारा पाने के लिए आप एकादशी के दिन विष्णु मंदिर में सफेद मिठाई या खीर अर्पित करें। भोग में तुलसी के पत्ते जरूर डालें। इससे भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होगी।
  • एकादशी के दिन विष्णु मंदिर में एक नारियल व मेवे चढ़ाएं। इस उपाय को करने से आपके सभी अटके कार्य बनने लगेंगे और सुखों की प्राप्ति होगी।
  • एकादशी के दिन आप पीले रंग के कपड़े, पीले फल व पीला अनाज पहले भगवान विष्णु को अर्पित करें। इसके बाद ये सभी वस्तुएं गरीबों व जरूरतमंदों में दान कर दें।
  • इस दिन तुलसी के पौधे के सामने दीपक जलाकर इस मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। मंत्र- “ॐ वासुदेवाय नम:”। ऐसा माना जाता है कि इससे घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है।
  • देवोत्थान एकादशी के दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान श्री हरि विष्णु जी का अभिषेक करें। इससे भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी दोनों प्रसन्न होते हैं और धन की वर्षा होती हैै।
  • इस दिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाना भी बेहद शुभ माना जाता है।

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इसी आशा के साथ कि आपको यह लेख भी पसंद आया होगा Omasttro के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।

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