Om Asttro / ॐ एस्ट्रो

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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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¤ विक्रमादित्य का नाम उनके जन्म से पहले ही भगवान शिव ने रख दिया था।

¤ विक्रमादित्य परमार वंश के 8वें राजा थे।

¤ विक्रमादित्य ने मात्र 20 वर्ष की उम्र में ही शकों को पूरे एशिया से खदेड़ दिया था।

¤ विक्रमादित्य भारत और एशिया को स्वतंत्र करवाने के बाद वे खुद राजगद्दी पर नहीं बैठे बल्कि अपने बड़े भाई भृर्तहरी को राजा बनाया पर पत्नी से मिले धोखे ने भृर्तहरी को सन्यासी बना दिया और उसके बाद जब भृर्तहरी के पुत्रों ने भी राजसिंहासन पर बैठने से मना कर दिया तब विक्रमादित्य को ही राजसिंहासन पर बैठना पड़ा।

¤ विक्रमादित्य का राज्याभिषेक दीपावली के दिन हुआ था।

¤ *विक्रमादित्य ने शकों पर विजय हासिल कर विश्व के प्रथम कैलेंडर विक्रम संवत की स्थापना की थी।*

¤ विक्रमादित्य ने अश्वमेध यज्ञ किया था और चक्रवर्ती सम्राट बने थे।

¤ विक्रमादित्य के शासन में वर्तमान भारत, चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, जापान, अफगानिस्तान, म्यांमार. श्री लंका, इराक, ईरान, कुवैत, टर्की, मिस्त्र, अरब, नेपाल, दक्षिणी कोरिया, उत्तरी कोरिया, इंडोनेशिया, अफ्रिका और रोम शामिल थे। इसके अलावा अन्य देश संधिकृत थे।

¤ विक्रमादित्य पहले राजा थे जिन्होंने अरब पर विजय हासिल की थी।

¤ विक्रमादित्य का युग स्वर्ण युग कहलाया।

¤ विक्रमादित्य के समय इस पूरी पृथ्वी पर एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जिसके ऊपर एक रुपये का भी कर्जा हो।

¤ विक्रमादित्य एकलौते ऐसे राजा थे जिन्होंने अपनी प्रजा का कर्ज खुद उतारा था।

¤ विक्रमादित्य जैसा न्याय कोई दूसरा नहीं कर पाता था उनके दरबार से कोई निराश होकर नहीं जाता था।

¤ सम्राट विक्रमादित्य ईसा मसीह के समकालीन थे।

¤ विक्रमादित्य ने ईसा मसीह के जन्म के समय अपने दरबार से दो ज्योतिषी ईसा मसीह का भाग्य जानने के लिये भेजे थे।

¤ विक्रमादित्य ने रोम के राजा जुलियस सीजर को युद्ध में हराकर बंदी बनाकर उज्जैन की गलियों में घुमाया था।

¤ विक्रमादित्य के न्याय से प्रभावित होकर देवराज इन्द्र ने उन्हें 32 पुतलियों वाला सिंहासन भेंट में दिया था। जो ग्यारह सौ वर्ष बाद इन्हीं के वंशज राजा भोज को मिला था।

¤ विक्रमादित्य के आगे सिकंदर तो बौना ही था।

¤ विक्रमादित्य ने उज्जैन में महाकाल अयोध्या में राम जन्म भूमि और मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि का निर्माण कराया था।

¤ विक्रमादित्य तब तक भोजन नहीं करते थे जब तक उनकी प्रजा भोजन न कर ले।

¤ विक्रमादित्य ने ही नवरत्नों की शुरुआत की थी। कालीदास और वराह मिहिर विक्रमादित्य के ही दरबारी थे।

¤ उस युग में भगवान राम और भगवान कृष्ण के बाद अगर किसी का नाम आता था तो वो चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य का थे।
(विश्व के सबसे प्राचीन कलेंडर *विक्रम संवत* की शुरुआत करने वाले)
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