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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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गरुड़ पुराण

|| गरुड़ पुराण ||

गरुड़ पुराण हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में से एक है। गरुड़ पुराण वेदव्यास जी द्वारा लिखित एक पुराण है। और व्यासजी ने 18 पुराण लिखे हैं। इसमें गरुड़ पुराण भी शामिल है।

यह पुराण वैष्णव संप्रदाय के मुख्य पुराणों मेसे एक है। 18 पुराणों मेसे गरुड़ पुराण एक विशेष स्थान रखता है। गरुड़ पुराण मानव जीवन का कल्याण है। कहते है गरुड़ पुराण पढ़ने से व्यक्ति सारे सुखो को भोगता है। गरुड़ पुराण पढ़ने से व्यक्ति मोक्ष का भागिदार बनता है।

गरुड़ पुराण को पढ़ने से, आपकी आत्मा को यह ज्ञान मिलता है कि आपको कैसे कर्म करना चाहिए और कैसे कर्म नहीं करना चाहिए। गरुड़ पुराण पढ़ने से कहते है,व्यक्ति मृत्यु के बाद भटकता नहीं और उसे सदगति प्राप्त होती है।

गरुड़ पुराण में बुरे कर्म करने पर मृत्यु के बाद आत्मा को मिलने वाली सजाओ का घोर वर्णन किया गया है। यदि आप गरुड़ पुराण में बताए गए कष्टों को भोगना नहीं चाहते हैं, तो आपको अच्छे कर्म करने चाहिए। गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद कैसा जीवन होता है? स्वर्ग और नरक कैसा होता है? इस पर कुछ विशेष बातें बताई गई हैं।

यह सब का वर्णन गरुड़ पुराण में विस्तार से बताया गया है। इसमें ८४ नरक का जिक्र किया गया है। जो व्यक्ति मृत्यु के पश्चात् भोगता है।


पुराण को पढ़े 

1. गरुड़ पुराण ( पहला अध्याय )(भगवान विष्णु तथा गरुड़ के संवाद में गरुड़ पुराण – पापी मनुष्यों की इस लोक तथा परलोक में होने वाली दुर्गति का वर्णन, दश गात्र के पिण्डदान से यातना देह का निर्माण।)

2.  गरुड़ पुराण ( दूसरा अध्याय ) यम मार्ग की यातनाओं का वर्णन , वैतरणी नदी का स्वरुप , यम मार्ग के सोलह पुरो में क्रमशः गमन तथा वहा पुत्रादि द्वारा दिए गये पिंडदान को ग्रहण करना 

3.  गरुड़ पुराण ( तीसरा अध्याय ) यमयातना का वर्णन , चित्रगुप्त द्वारा श्रवणों से प्राणियों के शुभ अशुभ कर्म के विषय में पूछना , श्रवणों द्वारा वह सब धर्मराज को बताना और धर्मराज द्वारा दंड का निर्धारण

4. गरुड़ पुराण ( चौथा अध्याय ) नरक प्रदान करने वाले पापकर्म 

5.   गरुड़ पुराण ( पाँचवां अध्याय ) कर्म विपाक वश मनुष्य को अनेक योनियों और विविध रोगों की प्राप्ति 

6.  गरुड़ पुराण ( छठा अध्याय ) जीव की गर्भावस्था का दुःख , गर्भ में पूर्व जन्मो के ज्ञान की स्मृति  , जीव द्वारा भगवान से अब आगे दुष्कर्मो को  न करने की प्रतिज्ञा , गर्भवास से बहार आते ही वैष्णवी माया द्वारा उसका मोहित होना तथा गर्भावस्था की प्रतिज्ञा  को भुला देना 

7.  गरुड़ पुराण ( सातवाँ अध्याय ) पुत्र की महिमा , दुसरे के द्वारा दिए गए पिन्डादि से प्रेतत्व से मुक्ति – इसके प्रतिपादन में राजा बभ्रुवाहन तथा प्रेत की कथा 

8. गरुड़ पुराण ( आठवाँ अध्याय ) आतुरकालिक (मरणकालिक) दान एवं मरणकाल में भगवन्नाम – स्मरण का माहात्य्म , अष्ट महा दानो का फल तथा धर्माचरण की महिमा  

9. गरुड़ पुराण ( नवाँ अध्याय ) मरणासन्न व्यक्ति के निमित्त किये जाने वाले कृत्य 

10. गरुड़ पुराण ( दसवाँ अध्याय ) मृत्यु के अनंतर के कृत्य , शव आदि नाम वाले छः पिन्डदानो का फल , दाह संस्कार की विधि , पंचक में दाह का निषेध , दाह के अनंतर किये जाने वाले कृत्य , शिशु आदि की अंत्येष्टि का विधान 

11. गरुड़ पुराण ( ग्यारहवाँ अध्याय ) दशगात्र – विधान 

12.  गरुड़ पुराण ( बारहवाँ अध्याय ) एकादशाह कृत्य – निरूपण , मृत शय्यादान , गोदान , घटदान , अष्ट महादान , वृषोत्सर्ग , मध्यमषोडशी , उत्तमषोडशी एवं नारायणबली

13.  गरुड़ पुराण ( तेरहवाँ अध्याय ) अशौचकाल का निर्णय , अशौच में निषिद्ध कर्म , सपिंडीकरण , श्राद्ध , पिंड मेलन के प्रक्रिया , शय्यादान , पददान तथा गयाश्राद्ध की महिमा 

14.  गरुड़ पुराण ( चौदहवाँ अध्याय )  यमलोक एवं यमसभा का वर्णन , चित्र गुप्त आदि के भवनों का परिचय , धर्मराज नगर के चार द्वार , पूण्य  आत्माओ का धर्मसभा में प्रवेश 

15. गरुड़ पुराण ( पंद्रहवाँ अध्याय )  “धर्मात्मा जन का दिव्यलोकों का सुख भोगकर उत्तम कुल में जन्म लेना, शरीर के व्यावहारिक तथा पारमार्थिक दो रूपों का वर्णन, अजपाजप की विधि, भगवत्प्राप्ति के साधनों में भक्ति योग की प्रधानता”

16. गरुड़ पुराण ( सोलहवाँ अध्याय ) “मनुष्य शरीर प्राप्त करने की महिमा, धर्माचरण ही मुख्य कर्तव्य, शरीर और संसार की दु:खरूपता तथा नश्वरता, मोक्ष-धर्म-निरूपण”

 

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