Om Asttro / ॐ एस्ट्रो

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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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सुकेश का वंश-विस्तार

 
     तदनंतर सुकेश को वरदान प्राप्त तथा धार्मिक देखकर विश्वावसु के समान तेजस्वी ग्रामणी नामक गन्धर्व ने अपनी ‘देववती’ रूप यौवनशालिनी कन्या, जो दूसरी लक्ष्मी के ही समान तीनो लोको में प्रसिद्ध थी-उसे दे दी | उसमे सुकेश से अग्नि के समान शरीरधारी पुत्र उत्पन्न हुए | बलवानों में श्रेष्ठ उन तीनो के क्रमशः ये नाम थे | 
 
     माल्यवान, सुमाली और माली | सुकेश के ये तीनो पुत्र तीन लोको के समान, तीनो अग्नियों के समान, तीनो वेदों के समान अथवा वात, पित्त, कफ के समान उग्र और भयङ्कर थे | तेजस्वी तो ऐसे थे कि शीघ्र ही बढ़कर युवा हो गए | फिर वे तीनो मेरु पर्वत पर जाकर कठोर नियमों द्वारा सब प्राणियों को भयोत्पादक तप करने लगे | उनके घोर तप से देवताओं और मनुष्यों सहित त्रैलोक्य संतत्य हो उठा | तब तो अपने विमान पर बैठकर ब्रह्माजी उन्हें वर देने आये | कहा, वर माँगो | 
 
      इस पर वे राक्षस वृक्षों की तरह थर-थर काँपते हुए हाथ जोड़कर बोले-हें देव! यदि आप हमें वर देना चाहते हैं तो हम आपसे यही माँगते हैं कि हममे परस्पर प्रीति बनी रहे और हमें कोई जीत न पावे | हम अपने शत्रुओं के संहारक हो और अजर-अमर हो | ब्राह्माजी ने कहा-तथास्तु | तुम लोग ऐसा ही होओ, सुकेश के पुत्रों को ऐसा वर दे, ब्रह्माजी अपने लोक को चले गये | हें राम! अब वे राक्षस वरदान पाकर अत्यंत निर्भय हो देवताओं और असुरों को सताने लगे | 
 
     देवता, महर्षि और चारण अनार्यों की भांति अपना रक्षक ढूँढने लगे | फिर उन्हें कोई रक्षक न मिला | तब वे शिल्पियों में श्रेष्ठ विश्वकर्मा के पास गए और कहा कि देवताओं की इच्छानुसार आप ही उनके गृह-निर्माणकर्ता हैं | अत: हम लोगो के लिए भी किसी उच्चस्थान पर एक ऐसा भवन दीजिए जो शिव-भवन  के समान बड़ा विस्तृत और ऊँचा हो | तब उन महाबलवान राक्षसों के वचन सुनकर विश्वकर्मा ने उन्हें वास करने के लिए इन्द्र के समान स्थान बतलाते हुए कहा कि-‘दक्षिण समुद्र के तट पर सुवेल पर्वत के समीप ही एक त्रिकूट नाम का पर्वत हैं, जिसके मध्य का शिखर बड़ा ही उन्नत मेघ के सदृश दीख पड़ता हैं, जिसके ऊपर पक्षी भी नहीं पहुँच सकते | 
 
     उसके ऊपर तीस योजन चौड़ी और सौ योजन लंबी एक नगरी बनी हुई हैं, जिसका नाम लंका हैं | उसकी दीवारें सोने की हैं और सुवर्ण तोरण से भूषित फाटक हैं | इस लंकापुरी को मैंने इन्द्र की आज्ञा से बनाया था | तुम लोग उसी में जाकर रहो | हें शत्रुओं के संहारक राक्षसों! जब तुम वहाँ बहुत से राक्षसों सहित बस जाओगे, तब शत्रुओं से दुर्धर्ष हो जाओगे | विश्वकर्मा के इन वचनों को सुनकर वे राक्षस अपने साथ सहस्रों सेवकों को लेकर उस नगरी में जा बसे | लंका के स्वर्णभूषित गृहों में बस कर वे बड़े हर्षित हुए | 
 
     हें राघव! उसी समय स्वेच्छया एक गांधर्वी उत्पन्न हुई जिसका नाम नर्मदा था | उसकी तीन पुत्रियां थी, जो ह्री, श्री और कीर्ति के समान ही द्युतिमती थी | उसेन अपनी तीनो पुत्रियों को क्रमश: उन तीनो राक्षसों को दे दी | उन्होंने उनसे उत्तरा, फाल्गुनी नक्षत्र में विवाह किया | उनसे माल्यवान ने अपनी सौंदर्यवती सुंदरी नामक पत्नी से वज्रमुष्टि, विरूपाक्ष, दुर्मुख, सुप्तघ्न, यज्ञकोप, मत्त और उन्मत्त ये सात पुत्र उत्पन्न किये | साथ ही उसने ‘अनला’ नामक एक सुंदरी कन्या भी उत्पन्न की | फिर सुमाली की भार्या केतुमती, जो पूर्णिमा की चंद्रमा के समान सुंदरी थी | 
 
     उसने अपने गर्भ से प्रहस्त, कम्पन, विकट, कालिकामुख, धूम्राक्ष, दण्ड, महाबली, सुपार्श्व, संह्रादी, प्रधर्ष और भास्कर्ण ये महाबली पुत्र और कुम्भीनसी, केकसी, राका और पुष्पोत्कटा नाम की भी कन्याएं उत्पन्न की | इसी प्रकार माली ने अपनी वसुधा नाम्नी सुन्दर पत्नी से अनल, अनिल, हर और सम्पाति ये चार पुत्र उत्पन्न किये | यही चारो विभीषण के मंत्री हुए | इस प्रकार राक्षस श्रेष्ठ उन तीनो राक्षसों का परिवार बहुत बढ़ा और वे तीनो अपने सैकड़ों पुत्रों के साथ इन्द्र सहित सब देवताओं, ऋषियों, नागों और यक्षों को सताने लगे | वे दुरासद राक्षस, वायु के सदृश संसार में सर्वत्र भ्रमण करते | संग्राम क्षेत्र में काल के समान अमित तेजस्वी हो जाते और वरदान के प्रभाव से गर्वित हो सर्वदा यज्ञों को नष्ट किया करते | 
 
 
 
 
 
 
 
 

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