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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
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2023 में कामदा एकादशी कब है?

1  अप्रैल, 2023

(शनिवार)

 
 

कामदा एकादशी व्रत मुहूर्त

कामदा एकादशी पारणा मुहूर्त :
13:39:57 से 16:09:41 तक 2, अप्रैल को
अवधि :
2 घंटे 29 मिनट
हरि वासर समाप्त होने का समय :
10:53:52 पर 2, अप्रैल को
 
 
 

कामदा एकादशी के दिन भगवान वासुदेव का पूजन किया जाता है। इस एकादशी व्रत को भगवान विष्णु का उत्तम व्रत कहा गया है। इस व्रत के प्रभाव से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है और पापों का नाश होता है। इस एकादशी व्रत से एक दिन पूर्व यानि दशमी की दोपहर को जौ, गेहूं और मूंग आदि का एक बार भोजन करके भगवान का स्मरण करना चाहिए।

कामदा एकादशी व्रत पूजा विधि

मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली कामदा एकादशी व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:

1.  इस दिन प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें और भगवान की पूजा-अर्चना करें।
2.  पूरे दिन समय-समय पर भगवान विष्णु का स्मरण करें और रात्रि में पूजा स्थल के समीप जागरण करना चाहिए।
3.  एकादशी के अगले दिन यानि द्वादशी को व्रत का पारण करना चाहिए।
4.  एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन और दक्षिणा का महत्व है इसलिए पारण के दिन ब्राह्मण को भोजन कराएं व दक्षिणा देकर विदा करें। इसके बाद ही भोजन ग्रहण करें।

पौराणिक कथा

कामदा एकादशी की कथा भगवान श्री कृष्ण ने पाण्डु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। इससे पूर्व राजा दिलीप को वशिष्ठ मुनि ने इस व्रत की महिमा सुनाई थी, जो इस प्रकार है:

प्राचीन समय में पुण्डरीक नामक राजा भोगीपुर नगर में राज्य करता था। उसके नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर और गंधर्व वास करते थे और उसका दरबार इन लोगों से भरा रहता था। वहां हर दिन गंधर्वों और किन्नर का गायन होता था। नगर में ललिता नामक रूपसी अप्सरा और उसका पति ललित नामक श्रेष्ठ गंधर्व रहते थे। दोनों के मध्य अपार स्नेह था और वे हमेशा एक-दूसरे की यादों में खोये रहते थे।

एक समय की बात है जब गन्धर्व ललित राजा के दरबार में गायन कर रहा था कि, अचानक उसे अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई। इस वजह से उसका स्वर पर नियंत्रण नहीं रहा। इस बात को वहां मौजूद कर्कट नामक नाग ने भांप लिया और यह बात राजा पुण्डरीक को बता दी। यह सुनकर राजा को क्रोध आया और उसने ललित को राक्षस होने श्राप दे दिया। इसके बाद ललित कई सालों तक राक्षस योनि में घूमता रहा। उसकी पत्नी भी उसी का अनुसरण करती रही लेकिन अपने पति को इस हालत में देखकर वह दुःखी रहती थी।

कुछ वर्ष बीत जाने के बाद भटकते-भटकते ललित की पत्नी ललिता विन्ध्य पर्वत पर रहने वाले ऋष्यमूक ऋषि के पास गई और अपने श्रापित पति के उद्धार का उपाय पूछने लगी। ऋषि को उन पर दया आ गई। उन्होंने कामदा एकादशी व्रत करने को कहा। उनका आशीर्वाद पाकर गंधर्व पत्नी अपने स्थान पर लौट आई और उसने श्रद्धापूर्वक कामदा एकादशी का व्रत किया। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से इनका श्राप मिट गया और दोनों अपने गन्धर्व स्वरूप को प्राप्त हो गए।

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