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माघ मेला 2023: तिथि और समय 

हिंदू धर्म के लोगों के लिए अर्ध कुंभ मेले का अत्यंत महत्व है जो प्रतिवर्ष जनवरी के महीने में प्रयागराज (इलाहाबाद) में आयोजित होता है। यह मेला लगातार 45 दिनों तक चलता है और महाशिवरात्रि के दिन समाप्त होता है। इस दौरान भक्तजन शुभ तिथियों पर पवित्र स्नान करके अपने आपको पापमुक्त कर सकें इसलिए स्नान तिथियों की घोषणा पहले ही कर दी जाती है। 

वर्ष 2023 में माघ मेला की शुरुआत पौष माह की पूर्णिमा अर्थात पौष पूर्णिमा के दिन 06 जनवरी, 2023 को होगी और इसका समापन 18 फरवरी, 2023 को महाशिवरात्रि के दिन होगा। आपको बता दें कि इस मेले का आयोजन प्रयाग में त्रिवेणी संगम के पारंपरिक स्थल पर होगा। वर्ष 2023 में माघ मेले के दौरान पवित्र स्नान इन तिथियों पर किया जाएगा। 

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माघ मेला 2023 में स्नान पर्व की प्रमुख तिथियां

06 जनवरी, 2023 – पौष पूर्णिमा

14 या 15 जनवरी, 2023 – मकर संक्रांति

21 जनवरी 2023 – मौनी अमावस्या 

05 फरवरी 2023 – माघी पूर्णिमा

18 फरवरी 2023 – महाशिवरात्रि

 

माघ मेला 2023 का महत्व 

कुंभ मेले की तरह ही माघ मेले के दौरान नदियों में किये जाने वाले स्नान को पुण्यकारी और फलदायी माना गया है। प्रयागराज में हर साल लगने वाले माघ मेले को “मिनी कुंभ” के नाम से भी जाना जाता है और यह मेला हिंदू धर्म की तीन सबसे पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम को दर्शाता है। जहाँ ये संगम होता है वहां पर अनगिनत भक्त कई तरह के धार्मिक कार्य करने और पवित्र जल में डुबकी लगाने के लिए एकत्रित होते हैं। यह इस उत्सव का स्थान भी है जहाँ लोग अनुष्ठान करने और पवित्र जल में डुबकी लगाने के लिए इकट्ठा होते हैं। 

शायद ही आपको पता हो कि माघ मेले की 45 दिनों की अवधि को कल्पवास के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि माघ मेले के 45 दिन 4 युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग) के कुल वर्षों की संख्या के बराबर होते हैं। इस दौरान जो लोग पूरे मन से कल्पवास का पालन करते हैं उन्हें कल्पवासी कहा जाता है। माना जाता है कल्पवास का पालन करने से मनुष्य के पूर्व जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं और सभी धार्मिक अनुष्ठानों को मानते हुए वे जीवन-मृत्यु के चक्र से भी बच सकते हैं। 

माघ मेला 2023 में कल्पवास का महत्व 

कल्पवास के बारे में बात करने से पहले जानते हैं कि क्या होता है कल्पवास? सामान्य तौर पर कल्पवास का अर्थ होता है कुछ समय के लिए संगम के किनारे निवास करते हुए सत्संग और भगवान का स्मरण करना। हालांकि, कुंभ, अर्धकुंभ, महाकुंभ, सिंहस्थ, पूस और माघ महीने की पूर्णिमा के अवसर पर नदी किनारे कल्पवास करने की परंपरा है। हर वर्ष लगने वाले माघ मेले में कल्पवास का विशेष महत्व होता है और इसे करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है। अब आगे बढ़ते हैं और नज़र डालते हैं कुंभ मेले के प्रकार पर।

कितनी तरह का होता है कुंभ मेला?

कुंभ मेला कब और किस समय आयोजित होगा, ये बात पूरी तरह से सूर्य, चंद्रमा और गुरु ग्रह की स्थिति पर निर्भर करती है जो इस प्रकार हैं: 

  • जब देव गुरु बृहस्पति मेष या वृषभ राशि में होते हैं और सूर्य-चंद्रमा माघ माह के दौरान मकर राशि में होते हैं, उस समय प्रयागराज कुंभ मेले का आयोजन होता है।  
  • गुरु ग्रह जब कुंभ राशि में होते हैं और मार्च-अप्रैल यानी कि चैत्र माह के दौरान सूर्य देव मेष राशि में होते हैं, तब हरिद्वार कुंभ मेला लगता है।   
  • उज्जैन में लगने वाला मेला तब लगता है जब बृहस्पति सिंह राशि में स्थित होते हैं और मेष राशि में सूर्य विराजमान होते हैं या फिर वैशाख के महीने में अर्थात अप्रैल-मई के दौरान ये तीनों ग्रह तुला में होते हैं। 
  • हिंदू माह भाद्रपद के दौरान यानी कि अगस्त-सितंबर के महीने के आसपास बृहस्पति और सूर्य जब सिंह राशि में होते हैं तब नासिक कुंभ मेला आयोजित होता है। 

 

माघ मेला 2023 के दौरान किये जाने वाले कार्य 

माघ मेले में हिस्सा लेने के लिए आये भक्तों और साधु-संतों के रहने की व्यवस्था नदी के किनारों पर ही की जाती है और इस दौरान अनेक तरह के धार्मिक कार्य किये जाते हैं। तो आइये जानते हैं कि माघ मेले के दौरान किन कार्यों को किया जाता है। 

पवित्र स्नान

45 दिनों तक चलने वाले माघ मेला में स्नान तिथियों के दिन भक्त नदी में डुबकी लगाते हैं। इन शुभ तिथियों में पूर्णिमा, मकर संक्रांति, माघी अमावस्या, बसंत पंचमी और महाशिवरात्रि के दिन शामिल हैं। मान्यता है कि इस दिन पवित्र जल में स्नान करने से मनुष्य को सौभाग्य प्राप्त होता है। 

शैय्या दान 

कल्पवास के दौरान भक्त सूर्य देव की पूजा और यज्ञ आदि करते हैं और जो व्यक्ति 12 कल्पवास करता है उसे देवी-देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए शैय्या दान नाम के एक अनुष्ठान के तहत दूसरे सामानों के साथ अपने बिस्तर का भी दान करना होता है। 

 

अन्न दान

माघ मेला 2023 के दौरान भक्तों द्वारा साधु, संत, गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराया जाता है। इसके अलावा, निर्धन लोगों को तिल और अनाज का दान करने की भी परंपरा है।    

हवन 

माघ मेले में आये साधु-संत और ऋषियों द्वारा देवी-देवताओं को आमंत्रित करने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए यज्ञ-हवन आदि किये जाते हैं। 

अर्घ्य

इस मेले के दौरान हज़ारों भक्त नदी किनारे उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और गंगा नदी में स्नान करने के बाद भक्तों को सूर्य देव से प्रार्थना करते हुए देखा जा सकता है। 

 

इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा Omasttro के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।

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