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6 जनवरी, 2023 (शुक्रवार)

 
 

पौष पूर्णिमा व्रत मुहूर्त  

जनवरी 6, 2023 को 02:16:39 से पूर्णिमा आरम्भ
जनवरी 7, 2023 को 04:40:18 पर पूर्णिमा समाप्त
 
 

 

पौष को भगवान सूर्य का महीना कहा जाता है इसलिए इस महीने में आने वाली पूर्णिमा को पौष पूर्णिमा कहते हैं। हिन्दू धर्म में इस पूर्णिमा का काफ़ी महत्व माना जाता है और इस दिन लोग अलग-अलग रीति-रिवाज़ों से पूजा करते हैं। मान्यता के अनुसार, पौष पूर्णिमा पर विधिवत पूजन से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस ब्लॉग में हम पौष पूर्णिमा की तिथि, समय और पूजा विधि के बारे में विस्तार से जानेंगे। 

 
 

हिन्दू पंचांग के पौष माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पौष पूर्णिमा कहा जाता है। हिन्दू धर्म और भारतीय जनजीवन में पूर्णिमा तिथि का बड़ा महत्व है। पूर्णिमा की तिथि चंद्रमा को प्रिय होती है और इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों में पौष पूर्णिमा के दिन दान, स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य देने का विशेष महत्व बतलाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि पौष मास के समय में किए जाने वाले धार्मिक कर्मकांड की पूर्णता पूर्णिमा पर स्नान करने से सार्थक होती है। पौष पूर्णिमा के दिन काशी, प्रयागराज और हरिद्वार में गंगा स्नान का बड़ा महत्व होता है।

ज्योतिष शास्त्र में पौष पूर्णिमा का महत्व 

पौष मास के दौरान आने वाली पूर्णिमा के दिन दान और स्नान का विशेष महत्व माना जाता है। लोग इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने के बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। मान्यता के अनुसार, ऐसा करने से उनके सारे पापों का नाश होता है और मोक्ष के द्वार भी खुलते हैं। यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित होता है। इसलिए इस दिन धन-दौलत में वृद्धि और माता लक्ष्मी और नारायण का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा करते हैं।

 

सर्वार्थ सिद्धि योग में पड़ेगी पौष पूर्णिमा 

पौष पूर्णिमा के दिन व्रत और पूजन काफी फलदायी माना जाता है। ऐसे में, अगर एक शुभ योग भी इसमें जुड़ जाए तो इसका महत्व बढ़ जाता है। इस साल की पहली पूर्णिमा जो 6 जनवरी को पड़ रही है, उस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। यह एक अत्यंत शुभ योग माना जाता है और इसमें किए गए सभी कार्य सफल होते हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग 7 जनवरी, 2023 शनिवार को रात 12 बजकर 14 मिनट से शुरू होगा और इसका समापन सुबह 7 बजकर 15 मिनट पर होगा। 

 

पौष पूर्णिमा पर करें माता लक्ष्मी की पूजा  

  • पूर्णिमा के दिन सुबह पवित्र नदी में स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनकर पूजा की शुरुआत करें।
  • पूजा में भगवान सत्यनारायण की कथा सुनना फलदायी होता है।
  • माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें क्योंकि इससे मनुष्य को धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।
  • पौष पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की पूजा करने से कुंडली में उपस्थित चंद्र दोष का प्रभाव कम होता है।

 

 

 

पौष पूर्णिमा का महत्व

वैदिक ज्योतिष और हिन्दू धर्म से जुड़ी मान्यता के अनुसार पौष सूर्य देव का माह कहलाता है। इस मास में सूर्य देव की आराधना से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए पौष पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा है। चूंकि पौष का महीना सूर्य देव का माह है और पूर्णिमा चंद्रमा की तिथि है। अतः सूर्य और चंद्रमा का यह अद्भूत संगम पौष पूर्णिमा की तिथि को ही होता है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों के पूजन से मनोकामनाएं पूर्ण होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती है।

पौष पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि

पौष पूर्णिमा पर स्नान, दान, जप और व्रत करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और मोक्ष मिलता है। इस दिन सूर्य देव की आराधना का विशेष महत्व है। पौष पूर्णिमा की व्रत और पूजा विधि इस प्रकार है:

 

1.  पौष पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान से पहले व्रत का संकल्प लें।
2.  पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें और स्नान से पूर्व वरुण देव को प्रणाम करें।
3.  स्नान के पश्चात सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।
4.  स्नान से निवृत्त होकर भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए और उन्हें नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।
5.  किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देनी चाहिए।
6.  दान में तिल, गुड़, कंबल और ऊनी वस्त्र विशेष रूप से देने चाहिए।

पौष पूर्णिमा पर होने वाले आयोजन

पौष पूर्णिमा पर देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर स्नान और धार्मिक आयोजन होते हैं। पौष पूर्णिमा से तीर्थराज प्रयाग में माघ मेले का आयोजन शुरू होता है। इस धार्मिक उत्सव में स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक विद्वानों के अनुसार माघ माह के स्नान का संकल्प पौष पूर्णिमा पर लेना चाहिए।

 

 

 

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