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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
Pt.durgesh
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     रावण को पकड़ लेना वायु को पकड लेने के ही समान था | स्वर्ग में वार्तालाप करते हुए पुलस्त्यजी ने जब देवताओं के मुख से यह बात सुनी तो वे पुत्रस्नेह वश थर्रा उठे और वायु गति से माहिष्मती नरेश से भेंट करने आए | राजा के द्वारपालों और मंत्रियों ने उनके आगमन की सूचना राजा को दी | तब तपस्वी पुलस्त्य का आगमन सुन वे हाथ जोड़े हुए उनकी अगवानी को आए | राजपुरोहित अर्घ्य और मधुपर्क सामग्री ले आगे चले | 
 
     राजा ने कहा-हे मुने! यह राज्य, ये स्त्री-पुत्र और हम सब लोग आपके ही हैं | आज्ञा दीजिए, हम आपकी क्या सेवा करें ?’ यह सुनकर, पुलस्त्य मुनि ने धर्म, अग्नि और पुत्रों का कुशल मंगल पूछा | साथ ही उन्होंने अर्जुन से कहा-‘हे नरेंद्र! तुममे अतुलित बल हैं | तभी तो तुम दशग्रीव को जीत लिया हैं | अहो! जिसके भय से सागर और पवन भी मौन होकर आज्ञा पाने की प्रतीक्षा किया करते हैं; हे वत्स! अब मैं तुमसे यही मांगता हूं कि, मेरा वचन मानकर, तुम रावण को मुक्त कर दो |’
 
     अर्जुन के पुलस्त्य जी की आज्ञा शिरोधार्य की और बिना किसी आपत्ति के ही सहर्ष राक्षसेंद्र रावण को मुक्त कर दिया | फिर अग्नि के समक्ष उपस्थित हो अपने मन को शुद्ध कर इसके साथ मैत्री भी कर लि | फिर ब्रह्माजी के पुत्र पुलस्त्य जी को प्रणाम कर राजा अर्जुन अपने भवन में प्रविष्ट हुआ | पुलस्त्य ने भी रावण को विदा किया | यद्यपि अर्जुन ने रावण का स्वागत किया, तथापि पराजित हो जाने के कारण वह लज्जित होता हुआ लंका को चला गया | ब्रह्मपुत्र पुलस्त्य जी भी रावण को छुड़ा ब्रह्मलोक को प्रस्थित हुए | 
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