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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
Pt.durgesh
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     त्रेता युग में कैलाश पर्वत के शिखर पर, जो कि अनेक रत्नों से शोभित, अनेक वृक्षों एवं लताओं से व्याप्त था | जिस पर भांति-भांति के पक्षी मधुर ध्वनियों में किल्लोर कर रहे थे | 
 
     जहां पर सब ऋतुएं अनेकानेक फूलों एवं फलों से सुन्दर ज्ञात होती थी और शीतल, मंद, सुगंध पवन चल रहा था | 
 
     जहां पर वृक्षों की अटल एवं सुखद छाया में अप्सराओं की सुन्दर संगीत ध्वनि होती थी और कोकिकालाओं का समूह वनों से प्रविष्ट होकर कुहुकता था, एवं ऋतुराज बसंत अपने सेवकों के साथ सदा निवास करते थे | 
 
     जिस कैलाश पर्वत के शिखर पर सिद्ध, चारण, गन्धर्व तथा अपने गणों सहित गणेशजी और स्वामी कार्तिकेय जी सदा निवास करते थे | उसी रमी कैलाश शिखर के ऊपर चराचर जगत के श्रीशंकर जी मौन धारण के निवास करते थे | 
 
     जो सदा कल्याण करने वाले, आनंद मूर्ति एवं दयारूपी अमृत के सागर हैं | जिनका वर्ण कपूर एवं कुंद-पुष्प की भांति उज्जवल और जो पवित्र सत्त्वगुणमय तथा व्यापक हैं | 
 
     जिनके दिशाएं ही वस्त्र हैं, जो दीन दुखियों के स्वामी योगियों में सर्वश्रेष्ठ तथा योगियों को अत्यंत प्रिय हैं | जिनकी जटाएं गंगाजी की धारा से सदा भीगी रहती हैं | 
 
      जो विभूति से भूषित, शांति स्वरूप, सर्पों की माला एवं मुण्डों की माला धारण किए हैं | जिनके तीन नेत्र हैं, जो तीनों लोको के स्वामी तथा त्रिशूलधारी हैं | 
 
     जो शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले, ज्ञानरूप, मुन्क्ति प्रदान करने वाले, आदि अंत रहित, कल्पनातीत तथा विशेष रहित निरंजन हैं | 
 
     जो सबका हित करने वाला, देवताओं के भी देवता तथा निरामय अर्थात जो रोग रहित हैं | जिनका ललाट अर्धचंद्र द्वारा देदीप्यमान हैं और जो पांच मुख वाले तथा सुन्दर भूषणों से भूषित हैं | 
 
     इस प्रकार प्रसन्न मुख शंकरजी को देखकर रावण ने संसार के हित की कामना से उनसे पूछा | 
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