Om Asttro / ॐ एस्ट्रो

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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
Pt.durgesh
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     हे देवों के देव! जगत गुरो! सदाशिव! संसार का सदा कल्याण करने वाले मैं आपको नमस्कार करता हूं | मेरे स्वामी, क्षण मात्र में ही सिद्धि को प्रदान करने वाली ऐसी तन्त्र विद्या को आप हमसे कहिए | 
 
शिव उवाच 
 
     भगवान शंकर बोले-हे वत्स! तुमने संसार के हित की कामना से यह अच्छा प्रश्न किया, अत: तुम्हारे समक्ष उस उड्डीश नमक तन्त्र को कहता हूं | 
 
     केवल पुस्तक में लिखी हुई विद्या बिना गुरु के सिद्धि प्रदान नहीं करती हैं, अत: बिना गुरु के इस तन्त्र शास्त्र पर किसी का अधिकार नहीं हो सकता हैं अर्थात तन्त्र शास्त्र की जो भी क्रियाएं की जाए वे गुरुओं की सहायता से ही की जाए | 
 
     पहले इस शास्त्र में षष्ट कर्म-१. मारण, २. मोहन, ३. उच्चाटन, ४. विद्वेषण, ५. आकर्षण तथा ६. वशीकरणादि के लक्षणों का वर्णन करता हूं | जो कि तंत्र मत के अनुसार सिद्धि रुपी फल को देने वाले हैं | 
 
षष्ट कर्म 
 
     १. शांति कर्म, २. वशीकरण, ३. स्तम्भन, ४. विद्वेषण, ५. उच्चाटन एवं ६. मरन इन छः प्रकार के कर्मों को मुनियों ने षष्ट कर्म कहा हैं | 
 
षष्ट कर्म लक्षणम 
 
     जिस प्रयोग से रोग, या किसी प्रकार की बाधिदिकों की शांति या अनिष्ट ग्रहों की शांति आदि की जाती हैं, उसी प्रयोग को शांति कर्म कहते हैं, जिस प्रयोग के द्वारा किसी स्त्री, राजा, शत्रु या इष्ट को वश में किया जाता हैं अर्थात अपनी इच्छा के अनुकूल आचरण कराया जाता हैं, उस प्रयोग को वशीकरण कहते हैं | जिस प्रयोग से अग्नि, जल, शत्रु के पराक्रम या शत्रु की सेना की रुकावट की जाती हैं उसी को स्तम्भन कर्म कहते हैं | जिस प्रयोग से एक दूसरे से लगे प्रेम को छुड़ा दिया जाता हैं, उसको विद्वेषण कहते हैं | जिस प्रयोग से मनुष्य अपने स्थान को छोड़कर भाग जाता हैं, उसे उच्चाटन कहते हैं | जिस प्रयोग से मनुष्य का मरण हो जाता हैं, उसे मारण कहते हैं | 
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