Om Asttro / ॐ एस्ट्रो

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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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रावण जीवन वृत्तान्त

भगवान विष्णु से खिन्न शुक्राचार्य द्वारा मेघनाद को शिवयज्ञ के लिये उत्साहित करते हुए कल्पान्तर की घटित रावण की उत्पत्ति, उसकी तपश्चर्या आदि के साथ राम-रावण युद्ध आदि घटनाओ की कथा जैसा कहा गया हैं, वैसी कथा के आधार पर यहा रावण के जीवन वृत्तांत को प्रस्तुत किया जा रहा हैं-
राक्षसों का वध कर जब श्रीराम ने राज्य ग्रहण किया, तब समस्त मुनिगण राम-रावण के बल-पराक्रम की प्रशंसा करने को अयोध्या पधारे | पूर्व दिशा के निवासी कौशिक, यकृत, गार्ग्य, गालव और मेधातिथि के पुत्र कण्ड्व, दक्षिण के निवासी स्वस्त्यात्रेय, नमुचि, अगस्त्य, सुमुख और विमुख, पश्चिम दिशा के आश्रयी नृषंगु, कवषी, धौम्य और सशिष्य कौषेय तथा उत्तर दिशा के आश्रयी-वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भरद्वाज-ये सात ऋषि आये |
समस्त ऋषि रघुनाथजी के राजभवन पर पहुंच कर ड्योढ़ी पर खड़े हो गये | वे सभी अग्नि के समान तेजस्वी थे | द्वारपालों ने इन्हें सादर बैठाया | तब वेद-वेदाङ्ग के ज्ञाता, अनेक शास्त्रों में निष्णात, मुनिश्रेष्ठ धर्मात्मा अगस्त्यजी द्वारपालों से बोले- ‘दशरथनंदन श्रीराम से जाकर हम मुनियों के आगमन की सूचना दो | द्वारपाल तत्क्षण ही रामचंद्र के पास गया और ऋषि श्रेष्ठ अगस्त्य आदि के पधारने का समाचार सुनाया |
महर्षियो का आगमन सुनकर श्रीराम ने कहा-सबको यहाँ यथा सुख से ले आओ | फिर तो वे सब ऋषिश्रेष्ठ राम के पास पहुंचे | श्रीरामचंद्र हाथ जोड़ उठ खड़े हुए | सबका अर्घ्य, पद्यार्घ्य से पूजन किया और बड़े आदर से सबको एक-एक गौ दान दिया|
तत्पश्चात सबको प्रणाम करके शुद्ध भाव से उन्हें सुवर्ण से आसान पर बैठाया, जिस पर कुशासन और मृगचर्म बिछे थे | राम ने उन सबकी कुशल पूछी | तब उन वेदवेत्ता महर्षियो ने कहा-हें रघुनन्दन! हें महाबाहो! आपके कुशल से हम सभी कुशलपूर्वक हैं |
आपने सब लोको को रुलाने वाले रावण का वध किया, यह सौभाग्य की बात हैं | हें राम! आपके लिए पुत्र, पौत्रवान रावण का नाश करना कोई बड़ी बात न थी | निःसंदेह आप त्रैलोक्य विजयी हैं | राक्षसेंद्र रावण का वध कर आपको सीता सहित विजयी देखकर हम अपना सौभाग्य समझते हैं |
धर्मात्मन लक्ष्मण आपके ऐसे हितकारी भ्राता हैं, कि माताओं और बंधुओ सहित हम आपको सकुशल देख रहे हैं | यह तो दैवात ही था कि आपने प्रहस्त, विकट, विरूपाक्ष, महोदर और अकम्पन आदि राक्षसों को मारा | अन्यथा ये सब तो बड़े ही दुर्धुर्ष थे | कुम्भकर्ण तो ऐसा था कि जिसके समान विशालकाय भूमंडल में कोई था ही नहीं |
देवात ही आपने उसे मार डाला | त्रिशिरा, देवान्तक, नारान्तक भी ऐसे ही थे, पर उन्हें भी आपने मार डाला | राक्षसेंद्र रावण तो अवश्य ही था | उससे द्वन्द्व युद्ध कर आपने विजय प्राप्त की-यह भी बड़ा आनद हुआ | परन्तु हें वीर! रावण का पराभव उतना अशक्त नहीं था जितना इन्द्रजीत का | युद्ध में उसे मार डालना-यह तो बड़े हर्ष की बात हैं, क्योंकि वह मायायुद्ध करता था | उसका वध सुनकर हम लोग बड़े आश्चर्य में पड़ गये |
परन्तु हमें तो आपके जय की इच्छा थी | उससे भी आपने विजय-लाभ किया, यह हमारा सौभाग्य हैं | क्योंकि उसे कोई मार नहीं सकता था | आपने हमें अभी दान दिया | भवितात्मा मुनियों के इन वचनों को सुनकर राम ने भी आश्चर्यचकित होकर हाथ जोड़ लिया और पूछा कि, हें भगवन! महाबली रावण और कुम्भकर्ण को छोडकर आप इन्द्रजीत की प्रशंसा क्यों कर रहे हैं ?
यह रावण से बढकर क्यों हुआ ? अतिकाय त्रिशिरा आदि भी तो ऐसे ही दुर्धर्ष थे ? इन्द्रजीत का प्रभाव, बल और पराक्रम कैसा था ? उसने इंद्र को कैसे जीता था और वह कैसे प्राप्त हुआ था ? पुत्र से बलि पिता क्यों नहीं था ? युद्ध में वह अपने पिता से अधिक पराक्रमी कैसे हुआ ? मेरा यह निवेदन हैं कि मुझसे यह कथन कीजिये |

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