Om Asttro / ॐ एस्ट्रो

News & Update

ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

Omasttro.in

heler
kundli41
2023
Pt.durgesh
previous arrow
next arrow
Omasttro

रावण का यमराज को जीतकर आगे बढ़ना

 
     तदनंतर समर-विजयी रावण समुद्र में प्रवेश कर अपने मंत्रियों सहित रसातल में जहाँ दैत्य और नाग रहते हैं और जिसके रक्षक वरुणदेव हैं वहां चला गया | तब वासुकि नाग की भोगवतीपुरी में जाकर वह नागों को जीतकर उस मणिपुरी में गया, जहां निवातकवच दैत्य वास करते थे | वहां पहुँच रावण ने सबको युद्ध की उत्तेजना दी | अत: उन्होंने बड़े हर्ष से अपने विविध अस्त्रों द्वरा रावण से महासंग्राम किया और उभय में किसी ने भी अपनी पराजय न स्वीकार की | 
 
     तब लोक पितामह ब्रह्माजी वहां भी शीघ्र ही पहुंचे और उन्होंने उन्हें समझा कर मित्रता करा दी | निवात कवचों ने रावण का बड़ा सत्कार किया | वहां रहकर रावण ने निवातों से सौ प्रकार की मात्राएँ सीखी | फिर वरुणदेव ने नगर की खोज करता हुआ रावण कालके दैत्यों के ‘अश्म’ नामक नगर में पहुंचा | कालके दैत्य बड़े बलवान थे | किन्तु रावण ने उन्हें भी परास्त कर दिया | इसी युद्ध में रावण ने अपने बहनोई विद्युज्जिह्व को तलवार के घाट उतार दिया | 
 
     उस युद्ध में रावण ने क्षणमात्र में चार सौ दैत्यों को मार डाला | तदनंतर रावण को श्वेत मेघ के सदृश वरुण का दिव्य भवन दिखाई पड़ा | रावण ने वही सुरभी गौ भी देखी जिसके थन से सर्वदा दूध की धार बहा करती थी | उस परम अद्भुत सुरभि की प्रदक्षिणा कर रावण ने वरुण का वह श्रेष्ठ भवन देखा जो सैन्य-सुरक्षित और बड़ा ही भयंकर था | वहां पहुँच कर रावण ने वरुण के सेनापतियों को ताडित किया तथा युद्ध कर उन्हें मार डाला | 
 
     इतने ही में महात्मा वरुण के पुत्र-पौत्र क्रुद्ध हो रावण से युद्ध करने को आ पहुंचे | फिर तो देवासुर संग्राम की भांति दोनों और से आकाश में घोर युद्ध आरम्भ हुआ | वरुण की सेना ने अपने अग्निवत बाणों को चलाकर रावण को संग्राम से विमुख कर दिया | तब उसके महोदर अआदी मंत्री वरुण के पुत्रों से युद्ध करने लगे और उन्हें परास्त-सा कर दिया | 
 
     यह देख, तब तक सचेष्ट हो रावण भी उन पर प्रहार करने लगा | फिर जलधारा के समान बाण बरसा कर वरुण के पुत्रों को मरने लगा | वरुण के पुत्र युद्ध में मूर्च्छित हो गए | सारथी उन्हें उठाकर तत्क्षण घर ले आया | रावण गर्जन करने लगा साथ ही उसने वरुण के सेवकों से कहा कि तुम मेरा सन्देश वरुण से जाकर कहो | 
 
     इस पर वरुण के ‘प्रहास’ नामक मंत्री ने कहा-इस समय सलिलेश्वर वरुणजी गन्धर्व गान श्रवण करने के लिए ब्रह्मलोक गए हुए हैं | उनके वीर कुमारों को तो तुम परास्त ही कर चुके हो | अब वरुण महाराज की अनुपस्थिति में तुम क्या व्यर्थ परिश्रम करते हो ? यह सुन रावण ने भी वहां भी अपने विजय की घोषणा करा दी | 
error: Content is protected !!
Join Omasttro
Scan the code
%d bloggers like this: