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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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     महर्षि घोरे के पुत्र कण्व और प्रगाथ को गुरुकुल से लौटे कुछ ही दिन हुए थे | दोनों ऋषि कुमारों का एक-दूसरे के प्रति हार्दिक प्रेम था | प्रगाथ अपने बड़े भाई कण्व को पिता के समान समझते थे, उनकी पत्नी प्रगाथ से अत्यंत स्नेह करती थी | उनकी उपस्थिति से आश्रम का वातावरण बड़ा निर्मल और पवित्र हो गया था | गया से उठती हुई धूम शिखा निरंतर आश्रम को सात्त्विक बनाए हुए थी |
 
     एक दिन आश्रम में विशेष शांति का साम्राज्य था | कण्व समिधा लेने के लिए वन के अंतराल में गए हुए थे | उनकी साध्वी पत्नी यज्ञ वेदी के ठीक सामने बैठी हुई थी | उससे थोड़ी दूर पर ऋषि कुमार प्रगाथ साम-गान कर रहे थे | अत्यंत शीतल और मधुर वायु के संचार से ऋषि कुमार के नयन अलसाने लगे और वे ऋषि पत्नी की गोद में सिर रखकर विश्राम करते-करते सो गए | ऋषि पत्नी किसी चिंतन में तन्मय थी |
 
     ‘यह कौन हैं, इस नीच ने तुम्हारी गोद में विश्राम करने का साहस किस प्रकार किया ?’ समिधा रखते ही कण्व के नेत्र लाल हो गए, उनका अत्यंत क्रोधी रूप देखकर ऋषि पत्नी सहम गई |
 
     ‘देव! वह कुछ और कहने ही जा रही थी कि कण्व ने प्रगाथ की पीठ पर पैर से प्रहार किया | ऋषि कुमार की आंख खुल गई | वह खड़ा हो गया | उसने कण्व ऋषि को प्रणाम किया |
 
     ‘आज से तुम्हारे लिए इस आश्रम का दरवाजा बंद हैं, प्रगाथ!’ कण्व ऋषि की वाणी क्रोध की भयंकर ज्वाला से प्रज्वलित थी, उनका रोम-रोम सिहर उठा था |
 
     ‘भैया! आप तो मेरे पिता के समान हैं और ये तो साक्षात मेरी माता हैं |’ प्रगाथ ने ऋषि पत्नी के चरणों में श्रद्धा प्रकट कर कण्व का शंका-समाधान किया | 
 
     कण्व धीरे-धीरे स्वस्थ हो रहे थे, पर उनके सिर पर संशय का भूत अब भी नाच रहा था |
 
     ‘ऋषि कुमार प्रगाथ ने सच कहा हैं, देव! मैंने तो आश्रम में पैर रखते ही उनका सदा पुत्र के समान पालन किया हैं | बड़े भाई की पत्नी देवर को सदा पुत्र मानती हैं, इसको तो आप जानते ही हैं; पवित्र भारत देश का यही आदर्श हैं |’ ऋषि पत्नी ने कण्व का क्रोध शांत किया | 
 
     ‘भाई प्रगाथ! दोष मेरे नेत्रों का ही हैं, मैंने महान पाप कर डाला; तुम्हारे ऊपर व्यर्थ शंका बैठा |’ ऋषि कण्व का शील जाग्रत हो उठा, उन्होंने प्रगाथ का आलिंगन करके स्नेह-दान दिया | प्रगाथ ने उनकी चरण-धूलि मस्तक पर चढ़ाई |     
 
     ‘भाई नहीं, ऋषि कुमार प्रगाथ हमारा पुत्र हैं | ऋषि कुमार ने हमारे सम्पूर्ण वात्सल्य का अधिकार पा लिया हैं |’ ऋषि पत्नी की ममता ने कण्व का हृदय स्पर्श किया |
 
     ‘ठीक हैं, प्रगाथ हमारा पुत्र हैं | आज से हम दोनों इसके माता-पिता हैं |’ कण्व ने प्रगाथ का मस्तक सूंघा |
 
     आश्रम की पवित्रता में नवीन प्राण भर उठा-जिसमे सत्य वचन की गरिमा, निर्मल मन की प्रसन्नता और हृदय की सरलता का सरस सम्मिश्रण था |
 
 
 
 
 
 
 
 
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