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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत मुहूर्त 

श्रावण पुत्रदा एकादशी पारणा मुहूर्त :
05:56:46 से 08:30:57 तक 28, अगस्त को
अवधि :
2 घंटे 34 मिनट
 
 
 

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहते हैं। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत धारण करने वाले व्यक्ति को वाजपेयी यज्ञ के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा इस व्रत के पुण्य प्रभाव से भक्तों को संतान प्राप्ति का वरदान प्राप्त होता है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी की पूजा एवं व्रत विधि

●  सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें तथा स्वच्छ वस्त्र धारण करें
●  भगवान् विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं
●  पूजा में तुलसी, ऋतु फल एवं तिल का प्रयोग करें
●  व्रत के दिन निराहार रहें और शाम में पूजा के बाद चाहें तो फल ग्रहण कर सकते हैं
●  विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है
●  एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है। जागरण में भजन कीर्तन करें
●  द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद उन्हें दान-दक्षिणा दें
●  अंत में स्वयं भोजन करें

श्रावण पुत्रदा एकादशी का महत्व

हिन्दू धर्म में एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है और श्रावण पुत्रदा एकादशी उनसें से एक है। ऐसा विश्वास है कि यदि नि:संतान दंपति इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान व श्रृद्धा के साथ धारण करें तो उन्हें संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है। इसके अलावा मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है और मरणोपरांत उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

श्री पद्मपुराण के अनुसार द्वापर युग में महिष्मतीपुरी का राजा महीजित बड़ा ही शांति एवं धर्म प्रिय था। लेकिन वह पुत्र-विहीन था। राजा के शुभचिंतकों ने यह बात महामुनि लोमेश को बताई तो उन्होंने बताया कि राजन पूर्व जन्म में एक अत्याचारी, धनहीन वैश्य थे। इसी एकादशी के दिन दोपहर के समय वे प्यास से व्याकुल होकर एक जलाशय पर पहुंचे, तो वहां गर्मी से पीड़ित एक प्यासी गाय को पानी पीते देखकर उन्होंने उसे रोक दिया और स्वयं पानी पीने लगे। राजा का ऐसा करना धर्म के अनुरूप नहीं था। अपने पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों के फलस्वरूप वे अगले जन्म में राजा तो बने, किंतु उस एक पाप के कारण संतान विहीन हैं। महामुनि ने बताया कि राजा के सभी शुभचिंतक यदि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को विधि पूर्वक व्रत करें और उसका पुण्य राजा को दे दें, तो निश्चय ही उन्हें संतान रत्न की प्राप्ति होगी। इस प्रकार मुनि के निर्देशानुसार प्रजा के साथ-साथ जब राजा ने भी यह व्रत रखा, तो कुछ समय बाद रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। तभी से इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाने लगा।

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