Om Asttro / ॐ एस्ट्रो

News & Update

ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

Omasttro.in

heler
kundli41
2023
Pt.durgesh
previous arrow
next arrow
Omasttro

सती का दक्ष के यज्ञ में आना 

 
     ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! जिस समय देवता और ऋषिगण दक्ष के यज्ञ में भाग लेने के लिए उत्सव करते हुए जा रहे थे, उस समय दक्ष की पुत्री सती अपनी सखियों के साथ गंधमादन पर्वत पर धारागृह में अनेक क्रीडाएं कर रही थी | सती ने देखा कि रोहिणी के साथ चंद्रमा कही जा रहे थे | तब सती ने अपनी प्रिय सखी विजया से कहा कि विजये! जल्दी जाकर पूछो कि देवी रोहिणी और चंद्र कहां जा रहे हैं ? तब विजय दौडकर चंद्रदेव के पास गई और उन्होंने नमस्कार करके उनसे पूछा कि हे चंद्रदेव! आप कहां जा रहे हैं ? चंद्रदेव ने उत्तर दिया कि वे दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में निमंत्रित हैं, अत: वहीं जा रहे हैं | | यज्ञोत्सव के बारे में सुनकर देवी विजय तुरंत देवी सती के पास आई और सारी बातों से सती को अवगत कराया | तब  देवी सती को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऐसी क्या बात हैं, जो पिताजी ने यज्ञोत्सव के लिए अपनी बेटी-दामाद को निमंत्रण तो दूर, सूचना भी नहीं दी | बहुत सोचने पर भी उनकी समझ में कुछ नहीं आ सका | असमंजस की स्थिति में वे अपने पति महादेव जी के पास गई और उनसे कहने लगी | 
 
     सती बोली-हे महादेव जी! मुझे ज्ञात हुआ हैं कि मेरे पिताश्री दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञोत्सव का आयोजन किया हैं | जिसमे उन्होंने सभी देवर्षियों, महर्षियों एवं देवताओं को आमंत्रित किया हैं | सभी देवता और ऋषिगण वहां एकत्रित हो चुके हैं | हे प्रभु! मुझे बताइए कि आप वहां क्यों नहीं जा रहे हैं ? आप सभी सुह्र्दयों से मिलने को हमेशा आतुर रहते हैं | आप भक्तवत्सल हैं | प्रभो! उस महायज्ञ में सभी आपके भक्त पधारे हैं | आप मेरी प्रार्थना मानकर आज ही मेरे साथ मेरे पिता के उस महान यज्ञ में चलिए | सती इस प्रकार भगवान शंकर से यज्ञशाला में चलने की प्रार्थना करने लगी | 
 
     सती की प्रार्थना सुन भगवान महेश्वर बोले-हे देवी! तुम्हारे पिता मेरे विशेष द्रोही हो गए हैं | वे मुझसे बैर की भावना रखते हैं | इसी कारण उन्होंने मुझे निमंत्रण नहीं दिया और जो बिना बुलाए दूसरों के घर जाते हैं, वे मरण से भी अधिक अपमान पाते हैं | हे देवी! उस यज्ञ में सभी अभिमानी, मूढ़ और ज्ञानशून्य देवता और ऋषि ही हैं | उत्तम व्रत का पालन करने वाले और मेरा पूजन करने वाले सभी ऋषि-मुनियों और देवताओं ने उस महायज्ञ का त्याग कर दिया हैं तथा अपने-अपने धाम को वापस चले गए | अत: प्रिये, हमारा उस यज्ञ में जाना अनुचित है | वैसे भी बिना बुलाए जाना अपना अपमान कराना हैं | 
 
     शिवजी के इन वचनों को सुनकर देवी सती क्रुद्ध हो गई और शिवजी से बोली-हे प्रभु! आप तो सबके परमेश्वर हैं | आपके उपस्थित होने से यज्ञ सफल हो जाते हैं | आपको मेरे दुष्ट पिता ने आमंत्रित नहीं करके आपका अपमान किया हैं | भगवन! मैं ऐसा करने का प्रयोजन जानना चाहती हूँ कि क्यों मेरे पिता ने आपका अनादर किया हैं ? इसलिए मैं अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहती हूँ, ताकि इस बात का पता लगा सकूं | अत: प्रभु! आप मुझे आज्ञा प्रदान करें | 
 
     देवी सती के क्रोधित शब्दों को सुनकर भगवान शंकर बोले-हे देवी! यदि तुम्हारी इच्छा वहां जाने की हैं तो मैं तुम्हे आज्ञा देता हूँ कि अपने पिता के यज्ञ में जाओ | नन्दीश्वर को सजाकर, उस पर चढकर अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ अपने पिता के यहाँ जाओ | शिवजी की आज्ञा मानकर देवी सती ने उत्तम शृंगार किया और अनेक प्रकार के आभूषण धारण करके देवी सती अपने पिता के घर की और चल दी | उनके साथ शिवजी ने साठ हजार रौद्रगणों को भी भेजा | वे सभी गण उत्सव रचकर देवी का गुणगान करते हुए दक्ष के घर की और जाने लगे | शिवगणों ने पूरे रास्ते शिव-शिवा के यश का गान किया | उस यात्रा काल में जगदम्बा बहुत शोभा पा रही थी | उनकी जय-जयकार से सारी दिशाएं गूंज रही थी | 
error: Content is protected !!
Join Omasttro
Scan the code
%d bloggers like this: