Om Asttro / ॐ एस्ट्रो

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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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श्रीराम का सती के संदेह को दूर करना 

 
 
     श्रीराम बोले-हे देवी सती! प्राचीनकाल की बात हैं | एक बार भगवान शिव ने अपने लोक में विश्वकर्मा को बुलाकर उसमे एक मनोहर गोशाला बनवाई, जो बहुत बड़ी थी | उसमे उन्होंने एक मनोहर विस्तृत भवन का भी निर्माण करवाया | उसमे एक दिव्य सिंहासन तथा एक दिव्य श्रेष्ठ छत्र भी बनवाया | यह बहुत ही अद्भुत और परम उत्तम था | तत्पश्चात उन्होंने सब और से इंद्र, देवगणों, सिद्धों, गंधर्वों, समस्त उपदेवों तथा नाग आदि को भी शीघ्र ही उस मनोहर भवन में बुलवाया | सभी वेदों और आगमों को, पुत्रों सहित ब्रह्माजी को, मुनियों, अप्सराओं सहित समस्त देवियों सहित सोलह नाग कन्याओं आदि सभी को उसमे आमंत्रित किया, जो कि अनेक मांगलिक वस्तुओं के साथ वहाँ आई | संगीतज्ञों ने वीणा-मृदंग आदि बाजे बजाकर अपूर्व संगीत का गान किया |
 
     इस प्रकार यह एक बड़ा समारोह और उत्सव था | राज्याभिषेक की साडी सामग्रियां एकत्रित हुई और तीर्थों के जल से भरे घड़े मंगाए गए | अनेक दिव्य सामग्रियां भी गणों द्वारा मंगवाई गई | फिर उच्च स्वरों में वेदमन्त्रों का घोष कराया गया |
 
     हे देवी! भगवान श्रीहरि विष्णु की उत्तम भक्ति से भगवान शिव सदा प्रसन्न रहते थे | उन्होंने बड़े प्रसन्न होकर श्रीहरि को बैकुंठ से बुलवाया और शुभ मुहूर्त में श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठाया | महादेव जी ने स्वयं अपने हाथों से उन्हें बहुत से आभूषण और अलंकार पहनाए | उन्होंने भगवान विष्णु के सर पर मुकुट पहनाकर उनका अभिषेक किया | उस समय वहाँ अनेक मंगल गान गाए गए | तब भगवान शिव ने अपना सारा एश्वर्य, जो कि किसी के पास भी नहीं था, उन्हें प्रेमपूर्वक प्रदान किया | इसके पश्चात भगवान शंकर ने उनकी बहुत स्तुति की और जगतकर्ता ब्रह्माजी से बोले-हे लोकेश! आज से श्रीहरि विष्णु मेरे वन्दनीय हुए | यह सुनकर सभी देवता स्तब्ध रह गए | तब वे पुनः बोले कि आप सहित सभी देवी-देवता भगवान विष्णु को प्रणाम कर उनकी स्तुति करें तथा सभी वेद मेरे साथ-साथ श्रीविष्णु जी का भी वर्णन करें |
 
     श्री रामचंद्र जी बोले-हे देवी! भगवान शिव अपने भक्तों के ही अधीन हैं | वे अत्यंत दयालु और कृपानिधान हैं | वे सदा ही भक्तों के वश में रहते हैं | इसलिए भगवान विष्णु की शिव भक्ति से प्रसन्न होकर भक्तवत्सल शिव ने यह सबकुछ किया तथा इसके उपरांत उन्होंने विष्णुजी वाहन गरुडध्वज को भी प्रणाम किया | तत्पश्चात सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनियों ने भी श्रीहरि की सच्चे मन से स्तुति की | तब भगवान शिव ने विष्णुजी को बहुत से वरदान दिए तथा कहा-श्रीहरि! आप मेरी आज्ञा के अनुसार सम्पूर्ण लोको के कर्ता, पालक और संहारक हो | धर्म, अर्थ और काम के दाता तथा बुरे अथवा अन्याय करने वाले दुष्टों को दंड तथा उनका नाश करने वाले हो | आप पूरे जगत में पूजित हो तथा सभी मनुष्य सदैव आपका पूजन करें | तुम कभी भी पराजित नहीं होंगे | मैं तुम्हे इच्छा की सिद्धि, लीला करने की शक्ति और सदैव स्वतंत्रता का वरदान प्रदान करता हूँ | हे हरे! जो तुमसे बैर रखेंगे उनको अवश्य ही दंड मिलेगा | मैं तुम्हारे भक्तों को भी मोक्ष प्रदान करूँगा तथा उनके सभी कष्टों का भी निवारण करूँगा | तुम मेरी बायीं भुजा से और ब्रह्माजी मेरी दायी भुजा से प्रकट हुए हो | रूद्र देव, जो साक्षात मेरा ही रूप हैं, मेरे ही ह्रदय से प्रकट हुए हैं | हे विष्णो! आप सदा सबकी रक्षा करेंगे | मेरे धाम में तुम्हारा स्थान उज्जवल एवं वैभवशाली हैं | वह गोलोक नाम से जाना जाएगा | तुम्हारे द्वारा धारण किए गए सभी अवतार सबके रक्षक और मेरे परम भक्त होंगे | मैं उनका दर्शन करूँगा |
 
     श्री रामचन्द्र जी कहते हैं-देवी! श्रीहरि को अपना अखण्ड ऐश्वर्य सौंपकर भगवान शिव स्वयं कैलाश पर्वत पर रहते हुए अपने पार्षदों के साथ क्रीडा करते हैं | तभी भगवान लक्ष्मीपति विष्णु गोपवेश धारण करके आए और गोप-गोपी तथा गौओं के स्वामी बनकर प्रसन्नतापूर्वक विचरने लगे तथा जगत की रक्षा करने लगे | वे अनेक प्रकार के अवतार ग्रहण करते हुए जगत का पालन करने लगे | वे ही भगवान शिव की आज्ञा से चार भाईयों के रूप में प्रकट हुए | अब इस समय मैं (विष्णु) ही अवतार रूप में प्रकट होकर चार भाईयों में सबसे बड़ा राम हूँ | दुसरे भरत, तीसरे लक्ष्मण हैं और चौथे शत्रुघ्न हैं | मैं अपनी माता के आदेशानुसार वनवास भोगने के लिए लक्ष्मण और सीता के साथ इस वन में आया था | किसी राक्षस ने मेरी पत्नी सीता का अपहरण कर लिया हैं और मैं यहां-वहां भटकता हुआ अपनी पत्नी को ही ढूंढ रहा हूँ | सौभाग्यवश मुझे आपके दर्शन हो गए | अब निश्चय ही मुझे मेरे कार्य में सफलता मिलेगी | हे माता! आप मुझ पर कृपादृष्टि करें और मुझे यह वरदान दे कि मैं उस पापी राक्षस को मारकर अपनी पत्नी सीता को उसके चंगुल से मुक्त कर सकूँ | मेरा यह महान सौभाग्य हैं कि मुझे आपके दर्शन प्राप्त हुए | मैं धन्य हो गया |
 
     इस प्रकार देवी की अनेक प्रकार से स्तुति करके श्रीराम जी ने उन्हें अनेकों बार प्रणाम किया | श्रीराम की बातें सुनकर सती मन ही मन बहुत प्रसन्न हुई और भक्तवत्सल भगवान शिव की स्तुति एवं चिंतन करने लगी | अपनी भूल पर उन्हें लज्जा आ रही थी | वे उदास मन से शिवजी के पास चल दी | वे रास्ते में सोच रही थी कि मैंने अपने पति महादेव जी की बात न मानकर बहुत बुरा किया और श्रीराम जी के प्रति भी बुरे विचार अपने मन में लाई | अब मैं भगवान शिव को क्या उत्तर दूँगी ? उन्हें अपनी करनी पर बहुत पश्चाताप हो रहा था | वे शिवजी के समीप गई और चुपचाप खड़ी हो गई | सती को इस प्रकार चुपचाप और दुखी देखकर भगवान शंकर ने पूछा-देवी! आपने श्रीराम की परीक्षा किस प्रकार ली ? यह प्रश्न सुनकर देवी सती चुपचाप सर झुकाकर खड़ी हो गई | उन्होंने शिवजी को कोई उत्तर नहीं दिया | वे असमंजस में थी कि क्या उत्तर दें | लेकिन महायोगी शिव ने ध्यान से सारा विवरण जान लिया और उनका मन से त्याग कर दिया | भगवान शिव ने सोचा, अब यदि मैं सती को पहले जैसा ही स्नेह करूं तो मेरी प्रतिज्ञा भंग हो जाएगी | वेद धर्म के पालक शिवजी ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हुए सती का मन से त्याग कर दिया | फिर सती से कुछ न कहकर वे कैलाश की और बड़े | मार्ग में सबको, विशेषकर सती जी को सुनाने के लिए आकाशवाणी हुई कि महायोगी शिव आप धन्य हैं | आपके समान तीनों लोको में कोई भी प्रतिज्ञा-पालक नहीं हैं | इस आकाशवाणी को सुनते ही देवी सती शांत हो गई | उनकी कांति फीकी पड गई | तब उन्होंने भगवान शिव से पूछा-
 
     हे प्राणनाथ! आपने कौन सी प्रतिज्ञा की हैं ? कृपया आप मुझे बताइए | परन्तु भगवान शिव ने विवाह के समय भगवान विष्णु के समक्ष जो प्रतिज्ञा की थी, उसे सती को नहीं बताया | तब देवी सती ने भगवान शिव का ध्यान करके उन सभी कारणों को जान लिया, जिसके कारण भगवन ने उनका त्याग कर दिया था | त्याग देने की बात जानकर देवी सती अत्यंत दुखी हो गई | दुख बढ़ने के कारण उनकी आँखों में आंसू आ गए और वह सिसकने लगी | उनके मनोभावों को समझकर और देवी सती की एसी हालत देखकर भगवान शिव ने अपनी प्रतिज्ञा की बात उनके सामने नहीं कही | तब सती का मन बहलाने के लिए शिवजी उन्हें अनेकानेक कथाएँ सुनते हुए कैलाश की और चल दिए | कैलाश पर पहुंचकर, शिवजी अपने स्थान पर बैठकर समाधि लगाकर ध्यान करने लगे | सती ने दुखी मन से अपने धाम में रहना शुरू कर दिया |
 
     भगवान शिव को समाधि में बैठे बहुत समय बीत गया | तत्पश्चात शिवजी ने अपनी समाधि तोड़ी | जब देवी सती को पता चला तो वे तुरंत शिवजी के पास दौडी चली आई | वहां आकर उन्होंने शिवजी के चरणों में प्रणाम किया | भगवान शिव ने उन्हें अपने सम्मुख आसन दिया और उन्हें प्रेमपूर्वक बहुत सी कथाएँ सुनाई | इससे देवी सती का शोक दूर हो गया परन्तु शिवजी ने अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी | हे नारद! ऋषि-मुनि आदि सभी शिव और सती की इन कथाओं को उनकी लीला का ही रूप मानते हैं क्योंकि वे तो साक्षात परमेश्वर हैं | एक-दुसरे के पूरक हैं | भला उनमे वियोग कैसे संभव हो सकता हैं | सती और शिव वाणी और अर्थ की भांति एक-दुसरे से मिले हुए हैं | उनमे वियोग होने असंभव हैं | उनकी इच्छाओं और लीलाओं से ही उनमे वियोग हो सकता हैं |
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