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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
Pt.durgesh
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     ब्रह्माजी कहते हैं-नारद मुनि! इस प्रकार श्रीहरि, मेरे, देवताओं और ऋषि-मुनियों की स्तुति से भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए | वे हम सबको कृपादृष्टि से देखते हुए बोले-प्रजापति दक्ष! मैं तुम सभी पर प्रसन्न हूं | मेरा अस्तित्व सबसे अलग हैं | मैं स्वतंत्र ईश्वर हूं | फिर भी मैं सदैव अपने भक्तों के अधीन ही रहता हूं | चार प्रकार के पुण्यात्मा मनुष्य ही मेरा भजन करते हैं | उनमे पहला आर्ट, दूसरा जिज्ञासु, तीसरा अर्थार्थी और चौथा ज्ञानी हैं | परन्तु ज्ञानी को ही मेरा खास सान्निध्य प्राप्त होता हैं | उसे मेरा ही स्वरूप माना जाता हैं | वेदों को जाने वाले परम ज्ञानी ही मेरे स्वरूप को जानकर मुझे समझ सकते हैं | जो मनुष्य कर्मों के अधीन रहते हैं, वे मेरे स्वरूप को नहीं पा सकते | इसलिए तुम ज्ञान को जानकर शुद्ध ह्रदय एवं बुद्धि से मेरा स्मरण कर उत्तम कर्म करो | हे दक्ष! मैं ही ब्रह्मा और विष्णु का रक्षक हूं | मैं ही आत्मा हूं | मैंने ही इस संसार की सृष्टि की हैं | मैं ही संसार का पालनकर्ता हूं | मैं ही दुष्टों का नाश करने के लिए संहारक बन उनका विनाश करता हूं | बुद्धिहीन मनुष्य, जो कि सदैव सांसारिक बन्धनों और मोह-माया में फंसे रहते हैं, कभी भी मेरा साक्षात्कार नहीं कर सकते | मेरे भक्त सदैव मेरे ही स्वरूप का चिंतन और ध्यान करते हैं | 
 
     हम तीनों अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और रुद्रदेव एक ही हैं | जो मनुष्य हमें अलग न मानकर हमारा एक ही स्वरूप मानता हैं, उसे सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती हैं परन्तु जो अज्ञानी मनुष्य हम तीनों को अलग-अलग मानकर हममे भेदभाव करते हैं, वे नरक के भागी होते हैं | हे प्रजापति दक्ष! यदि कोई श्रीहरि का परम भक्त मेरी निंदा या आलोचना करेगा या मेरा भक्त होकर ब्रह्मा और विष्णु का अपमान करेगा, उसे निश्चय ही मेरे कोप का भागी होना पड़ेगा | तुम्हे दिए गए सभी शाप उसको लग जाएंगे |
 
     भगवान शिव के इन वचनों को सुनकर सभी देवताओं, ऋषि-मुनियों तथा श्रेष्ठ विद्वानों को हर्ष हुआ तथा दक्ष भी प्रभु की आज्ञा मानकर अपने परिवार सहित शिवजी की भक्ति में मग्न हो गया | सब देवता भी महादेव जी का ही गुणगान करने लगे | वे शिवभक्ति में लीन हो गए और उनके भजनों को गाने लगे | इस प्रकार जिसने जिस प्रकार से भगवान शिव की स्तुति और आराधना की, भगवान शिव ने प्रसन्नतापूर्वक उसे ऐसा ही वरदान प्रदान दिया | तत्पश्चात, भक्तवत्सल भगवान शंकर जी से आज्ञा लेकर प्रजापति दक्ष ने अपना यज्ञ पुनः आरम्भ किया | उस यज्ञ में उन्होंने सर्वप्रथम शिवजी का भाग दिया | सब देवताओं को भी उचित भाग दिया गया | यज्ञ में उपस्थित सभी ब्राह्मणों को दक्ष ने सामर्थ्य के अनुसार दान दिया | महादेव जी का गुणगान करते हुए दक्ष ने यज्ञ के सभी कर्मों को भक्तिपूर्वक सम्पन्न किया | इस प्रकार सभी देवताओं, मुनियों और ऋत्विजों के सहयोग से दक्ष का यज्ञ सानंद सम्पन्न हुआ | 
 
     तत्पश्चात सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों ने महादेव जी के यश का गान किया और अपने-अपने निवास की ओर चले गए | वहां उपस्थित अन्य लोगों ने भी शिवजी से आज्ञा मांगकर वहां से प्रस्थान किया | तब मैं और विष्णुजी भी शिव वंदना करते हुए अपने-अपने लोक को चल दिए | दक्ष ने करुणानिधान भगवान शिव की अनेकों बार स्तुति की और शिवजी को बहुत सम्मान दिया | तब वे भी प्रसन्न होकर अपने गणों को साथ लेकर कैलाश पर्वत पर चल दिए | 
 
     कैलाश पर्वत पर पहुंचकर शिवजी को अपनी प्रिय पत्नी सती की याद आने लगी | महादेव जी ने वहां उपस्थित गणों से उनके बारे में अनेक बातें की | वे उनको याद करके व्याकुल हो गए | हे नारद! मैंने तुम्हें सती के परम अद्भुत और दिव्य चरित्र का वर्णन सुनाया | यह कथा भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं | यह उत्तम वृत्तान्त सभी कामनाओं को अवश्य पूरा करता हैं | इस प्रकार इस चरित्र को पढ़ने व सुनने वाला ज्ञानी मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता हैं | उसे यश, स्वर्ग और आयु की प्राप्ति होती हैं | जो मनुष्य भक्तिभाव से इस कथा को पढता हैं, उसे अपने सभी सत्कर्मों के फलों की प्राप्ति होती हैं | 
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