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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
Pt.durgesh
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     देवताओं ने महादेव जी की बहुत स्तुति की और कहा-भगवन, आप ही परमब्रह्म हैं और इस जगत में सर्वत्र व्याप्त हैं | आप मृत्युंजय हैं | चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि आपकी तीन आंखे हैं | आपके तेज से ही पूरा जग प्रकाशित हैं | ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और चन्द्र आदि देवता आपसे ही उत्पन्न हुए हैं | आप ही इस संसार का पोषण करते हैं | भगवन आप करुणामय हैं | आप ही दुष्टों का संहार करते हैं | प्रभु! आपकी आज्ञानुसार अग्नि जलाती हैं और सूर्य अपनी तपन से झुलसाता हैं | मृत्यु आपके भय से कांपती हैं | हे करुणानिधान! जिस प्रकार आज तक आपने हमारी हर विपत्ति से रक्षा की हैं, उसी प्रकार हमेशा अपनी कृपादृष्टि बनाएं | भगवन! हम अपनी सभी गलतियों के लिए आपसे क्षमा मांगते हैं | आप प्रसन्न होकर यज्ञ को पूर्ण कीजिए तथा यजमान दक्ष का उद्धार कीजिए | वीरभद्र और महाकाली के प्रहारों से घायल हुए सभी देवताओं व ऋषियों को आरोग्य प्रदान करें | उन सभी की पीड़ा को कम कर दें | हे शिवजी! आप प्रजापति दक्ष के अपूर्ण यज्ञ को पूर्ण कर दें और दक्ष को पुनर्जीवित कर दें | भग ऋषि को उनकी आंखें, पूषा को दांत प्रदान करें | साथ ही जिन देवताओं के अंग नष्ट हो गए हैं, उन्हें ठीक कर दें | आप सभी को आरोग्य प्रदान करें | हम आपको यज्ञ में पूरा-पूरा भाग देंगे | ऐसा कहकर हम सभी देवता त्रिलोकीनाथ महादेव के चरणों में लेट गए | 
 
     हमारी स्तुति और अनुनय-विनय से भक्तवत्सल भगवान शिव प्रसन्न हो गए | शिवजी बोले-हे ब्रह्मा! श्रीहरि विष्णु! आपकी बातों को मैं हमेशा मानता हूं | इसलिए आपकी प्रार्थना को मैं नहीं टाल सकता परन्तु मैं यह बताना चाहता हूं कि दक्ष के यज्ञ का विध्वंस मैंने नहीं किया हैं | उसके यज्ञ का विध्वंस इसलिए हुआ क्योंकि वह हमेशा दूसरों का बुरा चाहता हैं, उनसे द्वेष रखता हैं | परन्तु जो दूसरों का बुरा चाहता हैं उसका ही बुरा होता हैं | अत: हमे कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे किसी को कष्ट हो | तुम्हारी प्रार्थना से मैंने तुम्हे क्षमा कर दिया हैं और तुम्हारी विनती मानकर मैं दक्ष को जीवित कर रहा हूं परन्तु दक्ष का मस्तक अग्नि में जल गया हैं | इसलिए उनके सिर के स्थान पर बकरे का सिर जोड़ना पड़ेगा | भग सूर्य के नेत्र से यज्ञ भाग को देख पाएंगे तथा पूषा के टूटे हुए दांत सही हो जाएंगे | मेरे गणों द्वारा मारे गए देवताओं के टूटे हुए अंग भी ठीक हो जाएंगे | भृगु की दाढ़ी बकरे जैसी हो जाएगी | सभी अध्वर्यु प्रसन्न होंगे | 
 
     यह कहकर वेदी के अनुसरणकर्ता, परम दयालु भगवान शंकर चुप हो गए | तत्पश्चात मैंने और विष्णुजी सहित सभी देवताओं ने भगवान शिव का धन्यवाद किया | फिर देवर्षियों सहित शिवजी को उस यज्ञ में आने के लिए आमंत्रित कर, हम लोग यज्ञ के स्थान पर गए, जहां दक्ष ने अपना यज्ञ आरम्भ किया था | उस कनखल नामक यज्ञ क्षेत्र में शिवजी भी पधारे | तब उन्होंने वीरभद्र द्वारा किए गए उस विध्वंस को देखा | स्वाहा, स्वधा, पूषा, तुष्टि, धृति, समस्त ऋषि, अग्नि व यज्ञ, गन्धर्व और राक्षस वहां पड़े हुए थे | कितने ही लोग अपने प्राणों से हाथ धो चुके थे | तब भगवान शिव ने अपने परम पराक्रमी सेनापति वीरभद्र का स्मरण किया | याद करते ही वीरभद्र तुरंत वहां प्रकट हो गए और उन्होंने भगवान शिव को नमस्कार किया | तब शिवजी हंसते हुए बोले कि हे वीरभद्र! तुमने तो थोड़ी सी देर में सारा यज्ञ विध्वंस कर दिया और देवताओं को भी दंड दे दिया | हे वीरभद्र! तुम इस यज्ञ का आयोजन करने वाले दक्ष को जल्दी से मेरे सामने ले आओ | 
 
     भगवान शिव की आज्ञा पाकर वीरभद्र गए और दक्ष शरीर वहां लाकर रख दिया परन्तु उसमे सिर नहीं था | दक्ष के शरीर को देखकर शिवजी ने वीरभद्र से पूछा कि दक्ष का सिर कहां हैं ? तब वीरभद्र ने बताया कि दक्ष का सिर काटकर उसने यज्ञ की अग्नि में ही डाल दिया था | तब शिवजी के आदेशानुसार बकरे का सिर दक्ष के धड में जोड़ दिया गया | जैसे ही शिवजी की कृपादृष्टि दक्ष के शरीर पर पड़ी वह जीवित हो गया | दक्ष के शरीर में प्राण आ गए और वह इस प्रकार उठ बैठा जैसे गहरी नींद से उठा हो | उठते ही उसने अपने सामने महादेव जी को देखा | उसने उठकर उन्हें प्रणाम किया और उनकी स्तुति करने लगा | उसके (दक्ष के) ह्रदय में प्रेम उमड़ आया और उसके प्रसन्नचित्त होते ही उसका कलुषित ह्रदय निर्मल हो गया | तब दक्ष को अपनी पुत्री का भी स्मरण हो गया और इस कारण दक्ष बहुत लज्जित महसूस करने लगा | तत्पश्चात अपने को संभालते हुए दक्ष ने करुणानिधान भगवान शिव से कहा-हे कल्याणमय महादेव जी! आप ही इस जगत के आदि और अंत हैं | आपने ही इस सृष्टि की रचना का विचार किया हैं | आपके द्वारा ही हर जीव की उत्पत्ति हुई हैं | मैंने आपके लिए अपशब्द कहे और आपको यज्ञ में भाग भी नहीं दिया | मेरे बुरे वचनों से आपको बहुत चोट पहुंची हैं | फिर भी आप मुझ पर कृपा कर यहां मेरा उद्धार करने आ गए | भगवन! आप ऐश्वर्य से संपन्न हैं | आप ही परमपिता परमेश्वर हैं | प्रभु! आप मुझ पर एवं यहां उपस्थित सभी जनों पर प्रसन्न होइए और हमारी पूजा-अर्चना को स्वीकार कीजिए | 
 
      ब्रह्माजी बोले-नारद! इस प्रकार भगवान शिव की स्तुति करने के बाद दक्ष चुप हो गए | तब श्रीहरि विष्णुजी ने भगवान शिव की बहुत स्तुति की | तत्पश्चात मैंने भी महादेव जी की बहुत स्तुति की | भगवन! आपने मेरे पुत्र दक्ष पर अपनी कृपादृष्टि की और उसका उद्धार किया | देवेश्वर! अब आप प्रसन्न होकर सभी शापों से हमें मुक्ति प्रदान करें | 
 
     महामुनि! इस प्रकार महादेव जी की स्तुति करके मैं दोनों हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर खड़ा हो गया | हम सभी देवगणों की स्तुति सुनकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उनका मुख खिल उठा | तब वहां उपस्थित इंद्र सहित अनेक सिद्धों, ऋषियों और प्रजापतियों ने भी भक्तवत्सल करुणानिधान भगवान शिव की अन्र्कों बार स्तुति की | यज्ञशाला में उपस्थित अनेक उपदेवों, नागों तथा ब्राह्मणों ने भगवान शिव को प्रणाम किया और उनका  प्रसन्न मन से स्तवन किया | इस प्रकार सभी देवों के मुख से अपना स्तवन सुनकर भगवान शिव को बहुत संतोष प्राप्त हुआ | 
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