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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
Pt.durgesh
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     ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! महेश्वर के आदेश को आदरपूर्वक सुनकर वीरभद्र ने शिवजी को प्रणाम किया | तत्पश्चात उनसे आज्ञा लेकर वीरभद्र यज्ञशाला की और चल दिए | शिवजी ने प्रलय की अग्नि के समान और करोडो गणों को उनके साथ भेज दिया | वे अत्यंत तेजस्वी थे | वे सभी वीरगण कौतूहल से वीरभद्र के साथ-साथ चल दिए | उसमे हजारों पार्षद वीरभद्र की तरह ही महापराक्रमी और बलशाली थे | बहुत से काल के भी काल भगवान रूद्र के समान थे | वे शिवजी के समान ही शोभा पा रहे थे | तत्पश्चात वीरभद्र शिवजी जैसा वेश धारण कर ऐसे रथ पर चढकर चले, जो चार सौ हाथ लंबा था और इस रथ को दस हजार शेर खींच रहे थे और बहुत से हाथी, शार्दूल, मगर, मत्स्य उस रथ की रक्षा के लिए आगे-आगे चल रहे थे | काली, कात्यायनी, ईशानी, चामुण्डा, मुण्डमर्दिनी, भद्रकाली, भद्रा, त्वरिता और वैष्णवी नामक नव दुर्गाओं ने भी भूतों-पिशाचों, प्रमथ, गुह्मक, कुष्माण्ड, पर्पट, चटक, ब्रह्मराक्षस, भैरव तथा क्षेत्रपाल आदि सभी वीरगण भगवान शिव की आज्ञा पाकर दक्ष के यज्ञ का विनाश करने के लिए यज्ञशाला की और चल दिए | वे भगवान शंकर के चौसठ हजार करोड गणों की सेना लेकर चल दिए | उस समय भेरियों की गंभीर ध्वनि होने लगी | अनेकों प्रकार क्वे शंख चारों दिशाओं में बजने लगे | उस समय जटाहर, मुखों तथा श्रृंगों के अनेक प्रकार के शब्द हुए | भिन्न-भिन्न प्रकार की सींगे बजने लगी | महामुनि नारद! उस समय वीरभद्र की उस यात्रा में करोडो सैनिक (शिवगण एवं भूत पिशाच) शामिल थे | इसी प्रकार महाकाली की सेना भी शोभा पा रही थी | 
 
     इस प्रकार वीरभद्र और महाकाली दोनों की विशाल सेनाएं उस दक्ष के यज्ञ का विनाश करने के लिए गाजे-बाजे के साथ आगे बढ़ने लगे | उस समय अनेक शुभ शगुन होने लगे | 
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