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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
Pt.durgesh
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     नारद जी बोले-हे ब्रह्माजी! हे महामते! अपने अपने श्रीमुख से मैना के पूर्व जन्म की कथा कही, जो कि अद्भुत व अलौकिक थी | भगवन! अब अप मुझे यह बताइए कि पार्वती जी मैना से कैसे उत्पन्न हुई और उन्होंने त्रिलोकीनाथ भगवान शिव को किस प्रकार पति रूप में प्राप्त किया | 
 
     ब्रह्माजी बोले-हे नारद! मैना और हिमवान के विवाह पर बहुत उत्सव मनाया गया | विवाह के पश्चात वे दोनों अपने घर पहुंचे | तब हिमालय और मैना सुखपूर्वक अपना घर में निवास करने लगे | तब श्रीहरि अन्य देवताओं को अपना साथ लेकर हिमालय के पास गए | सब देवताओं को अपने राजदरबार में आया देखकर हिमालय बहुत प्रसन्न हुए | उन्होंने सभी देवताओं को प्रणाम कर उनकी स्तुति कि | वे भक्तिभाव से उनका आदर-सत्कार करने लगे | वे देवताओं की सेवा करके अपने को धान्य मान रहे थे | मुने! हिमालय दोनों हाथ जोड़कर उनके सामने खड़े हो गए और बोले-भगवन! आप सबको एक साथ अपने घर आया देखकर मैं प्रसन्न हूं | सच कहूं तो आज मेरा जीवन सफल हो गया | आज मैं धन्य हो गया हूं | मेरा राज्य और मेरा पूरा कुल आपके दर्शन मात्र से ही धन्य हो गया | आज मेरा तप, ज्ञान और सभी कार्य सफल हो गए | भगवन! आप मुझे अपना सेवक समझें और मुझे आज्ञा दें कि मैं आपकी क्या सेवा करूं ? मुझे बताइए कि मेरे योग्य क्या सेवा हैं ? 
 
     गिरिराज हिमालय के ये वचन सुनकर देवतागण प्रसन्नतापूर्वक बोले-हे हिमालय! हे गिरिराज! देवी जगदंबा उमा ही प्रजापति दक्ष के यहां उनकी कन्या सती के रूप में प्रकट हुई | घोर तपस्या करने के बाद उन्होंने शिवजी को पति रूप में प्राप्त किया, परंतु अपने पिता दक्ष के यज्ञ में वे अपने पति का अपमान सह न सकीं और उन्होंने योगाग्नि में अपना शरीर भस्म कर दिया | यह सारी कथा तो आप भी जानते ही हैं | अब देवी जगदंबा पुनः धरती पर अवतरित होकर शिवजी की अर्धांगिनी बनना चाहती हैं | हे हिमालय! हम सभी यह चाहते हैं कि देवी सती पुनः आपके घर में अवतरित हो | 
 
     श्रीविष्णु जी की यह बात सुनकर हिमालय बहुत प्रसन्न हुए और आदरपूर्वक बोले-भगवन! यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात हैं कि देवी मेरे घर-आंगन को पवित्र करने के लिए मेरी पुत्री के रूप में प्रकट होंगी | तब हिमालय अपनी पत्नी के साथ और देवताओं को भी लेकर देवी जगदंबा की शरण में गए | उन्होंने देवी का स्मरण किया और श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति करने लगे | 
 
     देवता बोले-हे जगदंबे! हे उमे! हे शिवलोक में निवास करने वाली देवी | हे दुर्गे! हे महेश्वरी! हम सब आपको भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं | आप परम कल्याणकारी हैं | अप पवन और शांतिस्वरूप आदिशक्ति हैं | आप ही परम ज्ञानमयी शिवप्रिया जगदंबा हैं | आप इस स्न्स्सर में हर जागह व्याप्त हैं | सूर्य की तेजस्वी किरण आप ही हैं | अप ही अपने तेज से इस संसार को प्रकाशित करती हैं | आप ही जगत का पालन करती हैं | आप ही गायत्री, सावित्री और सरस्वती हैं | आप धर्मस्वरूपा और वेदों की ज्ञाता हैं | अप ही प्यास और आप ही तृप्ति हैं | आपकी पुण्यभक्ति भक्तों को निर्मल आनंद प्रदान करती हैं | आप ही पुण्यात्माओं के घर में लक्ष्मी के रूप में और पापियों के घर दरिद्रता और निर्धनता बनकर निवास करती हैं | आपके दर्शनों से शांति प्राप्त होती हैं | अप ही प्राणियों का पोषण करती हैं तथा पंचभूतों के सारतत्व से तत्वस्वरूपा हैं | आप ही नीति हैं और सामदेव की गीति हैं | अप ही ऋग्वेद और अथर्वेद की गति हैं | अप ही मनुष्यों के नाक, कान, आंख, मुंह और हृदय में विराजमान होकर उनके घर में सुखों का विस्तार करती हैं | हे देवी जगदंबा! इस सम्पूर्ण जगत के कल्याण एवं पालन के लिए हमारी पूजा स्वीकार करके आप हम पर प्रसन्न हों | 
 
     इस प्रकार जगज्जननी सती-साध्वी देवी जगदंबा उमा की अनेकों बार स्तुति करके सभी देवता उनके साक्षात दर्शनों के लिए दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो गए | 
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