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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
Pt.durgesh
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     ब्रह्माजी बोले-हे नारद! देवताओं के द्वारा की है स्तुति से प्रसन्न होकर दुखों का नाश करने वाली जगदंबा देवी दुर्गा उनके सामने प्रकट हो गई | वे अपने दिव्य रत्नजडित रथ पर बैठी हुई थी | उनका मुख करोड़ों सूर्य के तेज के समान चमक रहा था | उनका गौर वर्ण दूध के समान उज्ज्वल था | उनका रूप अतुल्य था | रूप में उनकी तुलना किसी से न की जा सकती थी | वे सभी गुणों से युक्त थी | दुष्टों का संहार करने के कारण वे ही चण्डी कहलाती हैं | वे अपने भक्तो के सभी दुखों और पीडाओं का निवारण करती हैं | देवी जगदम्बा पूरे संसार की माता हैं | वे ही प्रलयकाल में समस्त दुष्टों को उनके बन्धु-बांधवों सहित घोर निद्रा में सुला देती हैं | वाही देवी उमा इस संसार का उद्धार करती हैं | उनके मुखमण्डल का तेजव अद्भुत हैं | इस तेज के कारण उनकी ओर देख पाना भी सम्भव नहीं हैं | तब उनके अमृत दर्शनों की इच्छा लेकर श्रीहरि सहित सभी ने स्तुति की | तब उनके अमृतमय स्वरूप को देखा | 
 
      उनके अद्भुत स्वरूप के दर्शनों से सभी देवता आनंदित होकर बोले-हे महादेवी! हे जगदम्बा! हम आपके दास हैं | आपकी शरण में हम बहुत आशा से आए हैं | कृपा करके हमारे आने के उद्देश्य को समझ कर हमारे मनोरथ को पूर्ण कीजिए | हे देवी! पहले आप प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में प्रकट होकर रुद्रदेव की पत्नी बनीं और ब्रह्माजी व अन्य देवताओं के दुखों को दूर किया | अपने पिता के यज्ञ में अपने पति का अपमान देखकर स्वेच्छा से अपने शरीर का त्याग कर दिया | इससे रुद्रदेव बड़े दुखी हैं | वे अत्यंत शोकाकुल हो गए हैं | साथ ही आपके यहां चले आने से देवताओं की जो इच्छा थी वह भी अधूरी रह गई हैं | इसलिए हे जगदंबिके! आप पृथ्वीलोक पर पुनः अवतार लेकर रुद्रदेव को पति रूप में पाइए ताकि इस लोक का कल्याण हो सके और सनत्कुमार मुनि का कथन भी पूर्ण हो सके | हे भगवती! आप हम सब पर ऐसी ही कृपा करें ताकि हम सभी प्रसन्न हो जाएं तथा महादेव जी भी पुनः सुखी हो जाएं, क्योंकि आपसे वियोग होने के कारण वे अत्यंत दुखी हैं | कृपा करके हमारे सभी कष्टों और दुखों को दूर करें | 
 
     हे नारद! ऐसा कहकर सभी देवता पुनः भगवती की आराधना करने लगे | तत्पश्चात हाथ जोड़कर चुपचाप खड़े हो गए | तब उनकी अनन्य स्तुति से देवी उमा को बहुत प्रसन्नता हुई | तब देवी शिवजी का स्मरण करते हुए बोलीं-हे हरे! हे ब्रह्माजी! तथा समस्त देवताओं और ऋषि-मुनियों! मैं तुम्हारी आराधना से बहुत प्रसन्न हूं | अब तुम सभी अपने-अपने निवास स्थानों पर जाओ और सुखपूर्वक वहां पर निवास करो | मैं निश्चय ही अवतार लेकर हिमालय-मैना की पुत्री के रूप में प्रकट होउंगी, क्योंकि मैं अच्छे से जानती हूं कि जब से मैने दक्ष के यज्ञ की अग्नि में अपना शरीर त्यागा हैं तब से मेरे पति त्रिलोकीनाथ महादेव जी भी निरंतर कालाग्नि में जल रहे हैं | उन्हें हर समय मेरी ही चिंता रहती हैं | वे हर समय यह सोचते हैं कि उनके क्रोध के कारण ही मैं उनका अपमान देखकर वापिस नहीं आई और मैंने वहीं अपना शरीर त्याग दिया | यही कारण हैं कि उन्होंने अलौकिक वेश धारण कर लिया हैं और सदैव योग में ही लीन रहते हैं | अपनी प्राणप्रिया का वियोग वे सहन नहीं कर सकें हैं  इसलिए उनकी भी यही इच्छा हैं कि मैं पुनः पृथ्वी पर अवतीर्ण हो जाऊं ताकि हमारा मिलन पुनः सम्भव हो सके | महादेव जी की इच्छा मेरे लिए सदैव सर्वोपरि हैं | अत: मैं अवश्य ही हिमालय-मैना की पुत्री के रूप में अवतार लूंगी | 
 
     इस प्रकार देवताओं को बहुत आश्वासन देकर देवी जगदम्बा वहां से अंतर्धान हो गई | तत्पश्चात श्रीहरी व अन्य देवताओं का मन प्रसन्नता और हर्ष से खिल उठा | वे उस स्थान को, जहां देवी ने दर्शन दिए थे, अनेकों बार नमस्कार कर अपने-अपने धाम को चले गए | 
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