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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
Pt.durgesh
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सती द्वारा योगाग्नि से शरीर को भस्म करना 

 
 
     ब्रह्माजी से श्री नारद जी ने पूछा-हे पितामह! जब सती जी ऐसा कहकर मौन हो गई तब वहां क्या हुआ ? देवी सती ने आगे क्या किया ? इस प्रकार नारद जी ने अनेक प्रश्न पूछ डाले और ब्रह्माजी से प्रार्थना की कि वे आगे की कथा सविस्तार सुनाएं | यह सुनकर ब्रह्माजी मुस्कुराए, और प्रसन्नतापूर्वक कहने लगे-
 
    हे नारद! मौन होकर देवी सती अपने पति भगवान शिव का स्मरण करने लगी | उनका स्मरण करने के बाद उनका क्रोधित मन शांत हो गया | तब शांत मनोभाव से शिवजी का चिंतन करती हुई देवी सती पृथ्वी पर उत्तर की और मुख करके बैठ गई | तत्पश्चात विधिपूर्वक जल से आचमन करके उन्होंने वस्त्र ओढ़ लिया | फिर पवित्र भाव से उन्होंने अपनी दोनों आंखें मूंद ली और पुनः शिवजी का चिंतन करने लगी | सती ने प्राणायाम से प्राण और अपान को एकरूप करके नाभि में स्थित के लिया | सांसों को संयत एक नाभिचक्र के ऊपर ह्रदय में स्थापित कर लिया | सती ने अपने शरीर में योगमार्ग के अनुसार वायु और अग्नि को स्थापित कर लिया | तब उनका शरीर योगमार्ग में स्थित हो गया | उनके ह्रदय में शिवजी विद्यमान थे | यही वह समय था जब उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया था | उनका शरीर यज्ञ की पवित्र योगाग्नि में गिरा और पल भर में ही भस्म हो गया | वहां उपस्थित मनुष्यों सहित देवताओं ने जब यह देखा कि देवी सती भस्म हो गई हैं, तो आकाश और भूमि पर हाहाकार मच गया | यह हाहाकार सभी को भयभीत कर रहा था | सभी लोग ख रहे थे कि किस दुष्ट के दुर्व्यवहार के कारण भगवान शिव की पत्नी सती ने अपनी देह का त्याग कर दिया | तो कुछ लोग दक्ष की दुष्टता को धिक्कार रहे थे, जिसके व्यवहार से दुखी होकर देवी सती ने यह कदम उठाया था | सभी सत्पुरुष उनका सम्मान करते थे | उनका ह्रदय असहिष्णु था | उन्होंने ऐसी महान देवी और उनके प[अति करुणानिधान भगवान शिव का अनादर और निंदा करने वाले दक्ष को भी कोसा | सभी ख रहे थे कि दक्ष ने अपनी ही पुत्री को प्राण त्यागने के लिए मजबूर किया हैं | इसलिए दक्ष अवश्य ही महा नरक में जाएगा और पूरे संसार में उसका अपयश होगा | 
 
     दूसरी और, देवी सती के साथ पधारे सभी शिवगणों ने जब यह दृश्य देखा तो उनके क्रोध कि कोई सीमा न रही | वे तुरंत अपने अस्त्र-शस्त्र लेकर दक्ष को मारने के लिए दौड़े | वे साठ हजार पार्षदगण क्रोध से चिल्ला रहे थे और अपने को ही धिक्कार रहे थे कि यहां उपस्थित होते हुए भी हम अपनी माता देवी सती की रक्षा नहीं कर पाए | उनमे से कई पार्षदों ने तो स्वयं अपने शरीर का त्याग कर दिया | बचे हुए सभी शिवगण दक्ष को मारने के लिए बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहे थे | जब ऋषि भृगु ने उन्हें आक्रमण के लिए आगे बढते हुए देखा तो उन्होंने यज्ञ में विघ्न डालने वालों का नाश करने के लिए यजुर्मन्त्र पढकर दक्षिणाग्नि में आहुति दे दी | आहुति के प्रभाव के फलस्वरूप यज्ञकुंड में से ऋभु नामक अनेक देवता, जो प्रबल वीर थे, वहां प्रकट हो गए | ऋभु नामक सहस्रों देवताओं और शिवगणों में भयानक युद्ध होने लगा | वे देवता ब्रह्मतेज से संपन्न हुए थे | उन्होंने शिवगणों को मारकर तुरंत भगा दिया | इससे वहां यज्ञ में और अशांति फ़ैल गई | सभी देवता ऑयर मुनि भगवान विष्णु से इस विघ्न को टालने की प्रार्थना करने लगे | देवी सती का भस्म हो जाना और भगवान शिव के गणों को मारकर वहां से भगाए जाने का परिणाम सोचकर सभी देवता और ऋषि विचलित थे | हे नारद! इस प्रकार दक्ष के उस महायज्ञोत्सव में बहुत बड़ा उत्पात मच गया थे और सब और त्राहि-त्राहि मच गई थी | सभी भावी परिणाम की आशंका से भयभीत दिखाई दे रहे थे | 
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