Om Asttro / ॐ एस्ट्रो

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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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heler
kundli41
2023
Pt.durgesh
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     हे राक्षसराज रावण, इस ग्रन्थ के प्रथम प्रकरण के आकर्षण, दुसरे प्रकरण में उन्मादन, तीसरे में विद्वेषण, चौथे में उच्चाटन, पांचवे में ग्रामोच्चाटन, छठवें में जलस्तम्भन, सातवें में स्तम्भन, आठवें में वशीकरण इसके अतिरिक्त और भी अन्धा, वहिरा एवं गूंगा आदि बनाने का प्रयोग नवें, दशवें प्रकरण में वर्णित हैं | 
 
     इस ग्रन्थ में बहिर बना देना, मूर्ख बना देना, भूत लगा देना, ज्वर चढ़ा देना, बुद्धि का स्तम्भ करना, दही को नष्ट कर देना, पागल बनाना, हाथी-घोडा को कुपित कर देना, सर्प एवं मनुष्य को बुला देना, खेती आदि का विनष्ट करना, दूसरे के ग्राम में प्रवेश करना इसके अतिरिक्त भूतादिकों की सिद्धि, पादुका सिद्धि एवं नेत्र के अञ्जन आदि की सिद्धि शास्त्रीय रीति से वर्णित हैं | 
 
     इंद्र जाल की क्रीडा, यक्षिणी मंत्र साधना, गुटिका बनाना, आकाश में गमन करना, मरे हुए को जलाना इसके अतिरिक्त और भी भयंकर विद्याओं, उत्तम मंत्रों एवं उत्तम औषधियों तथा गुप्त कार्यों का वर्णन करूंगा | जो शंकर जी के कहे हुए उड्डीश को नहीं जानता वह क्रोधित होकर क्या कर सकता हैं | यह उड्डीश तन्त्र सुमेरु पर्वत को हिला देने वाला तथा पृथ्वी को सागर में डूबा देने वाला हैं | 
 
     यह तन्त्र शास्त्र नीच कुलोत्पत्र को, पापी को, मूर्ख को, भक्ति हीन को, भूख (दरिद्र को), मोह में फंसे हुए को, शंकित चित्त वाले को औए विशेष करके निंदा करने वाले प्राणी को कदापि न देना चाहिए | क्योंकि इनसे उड्डीश तन्त्र की क्रिया नहीं हो सकती हैं | फिर सिद्धि तथा फल तो दूर रहा | 
 
     यदि इस विद्या की प्रतिष्ठा एवं अपनी आत्मा की रक्षा चाहे तो देवता व गुरु-भक्त, सज्जन, बालक, तपस्वी, वृद्ध, उपकारी तथा सुमति वाले विद्वान के प्राप्त होने पर ही उन्हें यह विद्या प्रदान करें | इसी में इस शास्त्र की प्रतिष्ठा हैं | 
 
     इस तन्त्र शास्त्र के प्रयोग में तिथि, वार, नक्षत्र, व्रत, होम, काल बेला आदि का विचार नहीं किया जाता हैं | केवल तन्त्र के ही बल से औषधियां सिद्धि प्रधान करने वाली होती हैं | जिसका साधन करने से क्षण मात्र में ही सिद्धि प्राप्त हो जाती हैं | 
 
     जैसे चन्द्रमा से हीन रात्रि, सूर्य से हीन दिवस तथा राज से हीन राज्य सुखकर नही होता, उसी प्रकार गुरु से हीन मंत्र भी सुख तथा फल देने वाला नहीं होता हैं | अत: इसमें गुरु की अत्यंत आवश्यकता हैं | 
 
     जैसे इंद्र का वज्र दैत्यों का विनाशक हैं, वरुण का पाश महा बलवानों का भी बाधक हैं, जैसे यमराज का दंड सबको दंडित करता हैं एवं जैसे अग्नि देव सबको भस्म करने की शक्ति रखते हैं | 
 
     उसी प्रकार इस शास्त्र में विहित प्रयोग भी शक्ति रखते हैं | यह असत्य नहीं हैं, कहां तक कहा जाए इन मंत्रों की शक्ति तो ऐसी हैं कि ससुरी को पृथ्वी पर बुला ले | 
 
     अपकारी, दुष्ट, दुराचारी, पापी ऐसे व्यक्तियों पर यदि मारण का प्रयोग करें तो कोई दोष नहीं हैं | यदि बिना प्रयोजन किसी पर मारण प्रयोग किया जाए तो अपना ही नाश हो जाता हैं | जो इस तन्त्र शास्त्र पर विश्वास नहीं करते उनको सिद्धि भी नहीं मिलती हैं | 
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