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ॐ नमस्ते गणपतये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे यहां पर वैदिक ज्योतिष के आधार पर कुंडली , राज योग , वर्ष पत्रिका , वार्षिक कुंडली , शनि रिपोर्ट , राशिफल , प्रश्न पूछें , आर्थिक भविष्यफल , वैवाहिक रिपोर्ट , नाम परिवर्तन पर ज्योतिषीय सुझाव , करियर रिपोर्ट , वास्तु , महामृत्‍युंजय पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , शनि ग्रह शांति पूजा , केतु ग्रह शांति पूजा , कालसर्प दोष पूजा , नवग्रह पूजा , गुरु ग्रह शांति पूजा , शुक्र ग्रह शांति पूजा , सूर्य ग्रह शांति पूजा , पितृ दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रह शांति पूजा , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ , प्रेत बाधा निवारण पूजा , गंडमूल दोष निवारण पूजा , बुध ग्रह शांति पूजा , मंगल दोष (मांगलिक दोष) निवारण पूजा , केमद्रुम दोष निवारण पूजा , सूर्य ग्रहण दोष निवारण पूजा , चंद्र ग्रहण दोष निवारण पूजा , महालक्ष्मी पूजा , शुभ लाभ पूजा , गृह-कलेश शांति पूजा , चांडाल दोष निवारण पूजा , नारायण बलि पूजन , अंगारक दोष निवारण पूजा , अष्‍ट लक्ष्‍मी पूजा , कष्ट निवारण पूजा , महा विष्णु पूजन , नाग दोष निवारण पूजा , सत्यनारायण पूजा , दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ (एक दिन) जैसी रिपोर्ट पाए और घर बैठे जाने अपना भाग्य अभी आर्डर करे

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सनत्कुमार – व्यास संवाद 

सूत जी कहते है – हें मुनियों ! इस साधन का महात्म्य बताते समय मै एक प्राचीन वृत्तान्त का वर्णन करूँगा , जिसे आप ध्यान पूर्वक सुने |

बहुत समय पहले की बात हें , पराशर मुनि के पुत्र मेरे गुरु व्यासदेव जी सरस्वती नदी के तट पर तपस्या कर रहे थे | एक दिन सूर्य के समान तेजस्वी विमान से यात्रा करते हुए भगवान सनत्कुमार वहा पहुचे | मेरे गुरु ध्यान में मग्न थे | जागने पर अपने सामने संतकुमार जी को देखकर वे बड़ी तेजी से उठे और उनके चरणों का स्पर्श कर उन्हें अर्घ्य देकर योग्य आसन पर विराजमान किया | प्रसन्न होकर सनत्कुमार जी गंभीर वाणी में बोले – मुनि तुम सत्य का चिंतन करो | सत्य तत्व का चिंतन ही श्री प्राप्ति का मार्ग है | इसी से कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है | यही कल्याणकारी हे |  यह जब जीवन में आता है , तो सब सुंदर हो जाता है | सत्य का अर्थ है – सदैव रहने वाला | इस काल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता | यह सदा एक सामान रहता है |

 

सनत्कुमार जी ने महर्षि व्यास को आगे समझाते हुए कहा , महर्षे ! सत्य पदार्थ भगवान शिव ही हे | भगवान शंकर का श्रवण , कीर्तन और मनन ही उन्हें प्राप्त करने के सर्वश्रेष्ठ साधन है | पूर्वकाल में मै दूसरे अनेकानेक साधनों के भ्रम में पड़ा घूमता हुआ तपस्या करने मंदराचल पर जा पंहुचा | कुछ समय बाद महेश्वर शिव की आज्ञा से सबके साक्षी तथा शिवगणों के स्वामी नंदिकेश्वर वहा आए और स्नेहपूर्वक मुक्ति का साधन बताते हुए बोले – भगवान शंकर का श्रवण , कीर्तन , मनन ही मुक्ति का स्रोत  हे | यह बात मुझे स्वयम  देवाधिदेव भगवान शिव ने बताई हें | अतः तुम इन्ही साधनो का अनुष्ठान करो |

 

व्यास जी से ऐसा कहकर अनुगामियो सहित सनत्कुमार ब्रह्मधाम को चले गए | इस प्रकार इस उत्तम वृतांत का संक्षेप में  मेंने वर्णन किया है |

ऋषि बोले – सूत जी ! आपने श्रवण , कीर्तन , मनन को मुक्ति का उपाय बताया है , किन्तु जो मनुष्य इस तीनो साधनों में असमर्थ हो , वह मनुष्य कैसे मुक्त हो सकता है ? किस कर्म के द्वारा बिना यत्न के भी मोक्ष मिल सकता है ?

|| शिव पुराण ||

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